कीट नाशकों के बगैर कम पानी, कम खाद और कम बीज से भरपूर फसल पाएं

Edited By ,Updated: 09 Jun, 2016 01:29 AM

without pesticides less water less fertilizer and less plentiful harvest from seed may

समस्त जीवन सूर्य के ताप में ही निहित है जिससे सृष्टि पनपती है। अग्नि अर्थात ताप के कारण ही मौसम बदलते हैं और मौसम के अनुसार ही फसलें बोई जाती हैं।

समस्त जीवन सूर्य के ताप में ही निहित है जिससे सृष्टि पनपती है। अग्नि अर्थात ताप के कारण ही मौसम बदलते हैं और मौसम के अनुसार ही फसलें बोई जाती हैं। अग्नि की भांति ही भूमि, जल और वायु भी फसल के लिए आवश्यक है। 

 
कृषि के इन्हीं पहलुओं को जानने का अवसर मुझे गत वर्ष मिला जब जिला होशियारपुर में फोकल प्वाइंट कंग माई के निकट गांव घुगियाल में स्थित एन.जी.ओ. फार्मर्स प्रोड्यूस प्रमोशन सोसायटी के पदाधिकारियों डा. चमन लाल वशिष्ठ, अवतार सिंह व जसवीर सिंह के निमंत्रण पर मैं उनके फार्म और खेतों में गया और वहां सुगम एवं अलग तरह की खेती होती देखी।
 
प्राचीनकाल में पर्यावरण मित्र उपायों के अनुरूप खेती की जाती थी। इससे जैविक और अजैविक पदार्थों में आदान-प्रदान का चक्र निरंतर चलता रहने से भूमि, जल, वायु तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता था और न ही लोगों के स्वास्थ्य के लिए कोई खतरा पैदा होता था परंतु आज कृषि में तरह-तरह के रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग से वातावरण प्रदूषित होकर स्वयं किसानों और दूसरे लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है।
 
उन्होंने बताया कि भरपूर फसल के लिए  कृषि पांच तत्वों भूमि, आकाश, वायु, ताप और पानी पर आश्रित है। अत: इन पांचों का सही इस्तेमाल आवश्यक है। 
 
पृथ्वी में पौधों के पालन-पोषण के लिए आवश्यक पौष्टिïक तत्व तथा जैविक सामग्री मौजूद होती है परंतु यह कच्ची अवस्था में होती है। इन्हें इस्तेमाल करने के योग्य बनाने का काम सूक्ष्म जीव करते हैं तथा अच्छी फसल के लिए इन सूक्ष्म जीवों को बचाने की अत्यंत आवश्यकता है। 
 
पानी का मुख्य स्रोत बादल हैं। खेती के लिए पानी अनिवार्य है परंतु खेतों में अधिक पानी विष के समान है जबकि नमी अमृत है तथा फसल को पानी की नहीं सिर्फ नमी की जरूरत होती है अत: खेती में सिंचाई के समय फालतू पानी से बचने की आवश्यकता है। 
 
हवा और पानी जीवन के लिए जरूरी हैं परंतु एक ही समय पर दोनों एक-दूसरे के विरोधी हैं। पानी नीचे की ओर जाता है तो हवा ऊपर की ओर। जहां पानी होगा वहां हवा नहीं होगी और जहां हवा होगी वहां पानी नहीं होगा। 
 
पौधों को सभी पौष्टिक तत्व अपनी जड़ों से प्राप्त होते हैं जो पानी में घुल कर जड़ों के रास्ते पौधों में प्रवेश करते हैं तथा अपनी जैविक क्रिया जारी रखने के लिए पानी के साथ-साथ पौधे की जड़ों को हवा भी प्रदान करते हैं। 
 
फसलों को ज्यादा पानी देेने के तीन अपूर्णीय नुक्सान हैं- 1. इससे पौधों की जड़ों को वांछित हवा नहीं मिलती, 2. सूक्ष्म जीवों के लिए बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो जाती है और 3. सूक्ष्म जीवों द्वारा तैयार किया हुआ भोजन पौधों की जड़ों से बहुत दूर चले जाने से वे कमजोर रह जाते हैं।
 
इससे बचने के लिए ध्यान रखें कि पानी कभी भी पौधे के तने को स्पर्श न करे। इसके लिए खेती ‘बैड’ बना कर करें और पानी सिर्फ नीचे वाले हिस्से में खालों के माध्यम से कोषकी क्रिया द्वारा ही दें।
 
इससे सूक्ष्म जीवों का बैडों की ओर बढऩा यकीनी हो जाता है और सूक्ष्म जीवों द्वारा निर्मित सारा भोजन पौधों को ही मिलने से भूमि उपजाऊ बनती है और किसी प्रकार की रासायनिक खादों की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। 
 
जैसे सीलन नीचे से ऊपर जाती है, उसी तरह पानी ऊपर जाते हुए पौष्टिक तत्व भी अपने साथ ले जाता है जिससे सूक्ष्म जीवों द्वारा पौधों के लिए निर्मित भोजन पौधों की जड़ों को मिल जाता है। 
 
इसके विपरीत यदि हम ‘बैडों’ की बजाय समतल भूमि में बिजाई करेंगे तो यही भोजन पानी में घुल कर पौधों की जड़ों की पहुंच से दूर चला जाएगा जिसकी पूर्ति रासायनिक पदार्थों से करनी पड़ेगी। 
 
रासायनिक खादों से सूक्ष्म जीव मर जाते हैं। जो किसान अपनी फसल को जितना कम पानी लगाएगा, उसे रासायनिक खादों की आवश्यकता भी उतनी ही कम पड़ेगी। अत: जो किसान इन बातों को समझ जाएगा वह न सिर्फ एक सफल किसान सिद्ध होगा बल्कि कम खर्चों में अधिक फसल भी ले सकेगा। 
 
आज के दौर में जब बढ़े हुए खर्चों और सिर पर चढ़े कर्जे के कारण किसान बड़ी संख्या में आत्महत्याएं कर रहे हैं, इनके बताए हुए पांच तत्वों पर आधारित कृषि अपनाने से निश्चय ही किसानों को अपने खर्च घटाने और आय बढ़ाने में सहायता मिल रही है जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी और आत्महत्याओं का रुझान समाप्त होगा। 

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