‘मानवता पर कलंक : दो युद्ध’

Edited By Updated: 05 Oct, 2025 05:19 AM

a blot on humanity two wars

मैं पोप पॉल छठे की प्रशंसा करता हूं जिन्होंने 1965 में कहा था, ‘‘अब और युद्ध नहीं, फिर कभी युद्ध नहीं।’’ युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं करते। ये केवल आक्रोश पैदा करते हैं और शत्रुता को गहरा करते हैं। दुनिया के 51 देशों ने 1945 में उच्च...

मैं पोप पॉल छठे की प्रशंसा करता हूं जिन्होंने 1965 में कहा था, ‘‘अब और युद्ध नहीं, फिर कभी युद्ध नहीं।’’ युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं करते। ये केवल आक्रोश पैदा करते हैं और शत्रुता को गहरा करते हैं। दुनिया के 51 देशों ने 1945 में उच्च उद्देश्यों के साथ संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की थी। सभी देश शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व में रहें, समृद्ध हों और अपने लोगों के जीवन को बेहतर बनाएं। यह निष्कर्ष निकला है कि संयुक्त राष्ट्र विफल है। इसके नेतृत्व में, पिछले 80 वर्षों में कई युद्ध हुए हैं। इस समय दुनिया में दो युद्ध चल रहे हैं।

रूस-यूक्रेन : यूक्रेन युद्ध 24 फरवरी, 2022 को शुरू हुआ जब रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया। सोवियत संघ के सुनहरे दिनों में, यूक्रेन सोवियत संघ का एक गणराज्य था। यूक्रेन नामक क्षेत्र में कई रूसी और रूसी भाषी लोग रहते थे। 1991 में जब सोवियत संघ का विघटन हुआ तो यूक्रेन एक संप्रभु गणराज्य बन गया। 2014 और 2022 के बीच, रूस ने क्रीमिया, डोनेट्स्क और लुगांस्क पर जबरन कब्जा कर लिया। यह कब्जा एक नियति प्रतीत होता है। यूक्रेन पर आक्रमण के लिए रूस का तर्क यह था कि यूक्रेन ने नाटो का सदस्य बनने के लिए आवेदन किया था और नाटो देश अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करने और रूस को घेरने के लिए यूक्रेन का इस्तेमाल कर रहे थे।

यूक्रेन एक संप्रभु देश है। चाहे वह नाटो का सदस्य बने या नहीं, उसे अस्तित्व का अधिकार है और दुनिया को उसकी स्वतंत्रता और सुरक्षा की गारंटी देनी चाहिए। यह युद्ध यूक्रेन के अस्तित्व के लिए खतरा है। 10 सितंबर, 2025 तक, यूक्रेन में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार निगरानी मिशन ने कम से कम 14,116 नागरिकों के मारे जाने और 36,481 के घायल होने का रिकॉर्ड दर्ज किया है। यूक्रेन एक तबाह भूमि है। अस्पताल, स्कूल, आवास, उद्योग आदि सब कुछ तहस-नहस कर दिया गया है। लाखों नागरिक देश छोड़कर भाग गए हैं (5.6 मिलियन) या अपने ही देश में विस्थापित हो गए हैं (3.7 मिलियन)। दोनों पक्षों के सैनिकों की कुल हताहत संख्या 10 लाख से ज्यादा है, जिनमें उत्तर कोरियाई सैनिक भी शामिल हैं।

पश्चिमी देशों द्वारा अरबों डॉलर के हथियार और सैन्य उपकरण मुहैया कराए जाने के बावजूद जो प्रत्यक्ष रूप से इसमें शामिल नहीं होना चाहता, ऐसा लगता है कि यूक्रेन एक हारा हुआ युद्ध लड़ रहा है। अप्रत्याशित राष्ट्रपति ट्रम्प, राष्ट्रपति पुतिन को युद्ध रोकने के लिए मजबूर कर सकते हैं  लेकिन वह ऐसा करने को तैयार नहीं हैं। यूक्रेन इस युद्ध में नैतिकता और वैधता के मामले में सही पक्ष में है लेकिन एक अस्थिर संयुक्त राज्य अमरीका और एक नपुंसक संयुक्त राष्ट्र के कारण असहाय है। इतिहास यूक्रेन युद्ध को 2 देशों के बीच लड़े गए सबसे निरर्थक, अनैतिक और आसमान युद्धों में से एक के रूप में दर्ज करेगा।

इसराईल-हमास : दूसरा युद्ध हमास द्वारा शुरू किया गया था जो एक उग्रवादी समूह है और फिलिस्तीन के एक हिस्से गाजा पर शासन करता है। इस क्षेत्र ने कई युद्ध देखे हैं। इतिहास के बावजूद, 7 अक्तूबर, 2023 को हमास द्वारा इसराईल पर किया गया हमला पूरी तरह से अकारण और ङ्क्षनदनीय था। इस हमले में 1200 इसराईली (ज्यादातर नागरिक) मारे गए थे। हमास ने 251 इसराइलियों को भी बंधक बना लिया है। कुछ अभी भी हमास की हिरासत में हैं। इसराईल एक कठोर राज्य है। उसने सभी लोगों को बेदखल करने और पूरे फिलिस्तीन पर कब्जा करने के उद्देश्य से गाजा पर लगातार बहु-पक्षीय हमला किया है। यह पहले से ही फिलिस्तीन के दूसरे हिस्से, पश्चिमी तट के अधिकांश हिस्से पर नियंत्रण रखता है। इसराईल द्वि.राज्य सिद्धांत का कट्टर विरोधी है। गाजा में 67,000 लोग मारे गए हैं, जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे है और बुनियादी ढांचा लगभग पूरी तरह से नष्ट हो गया है। लोग भोजन, पानी और दवाओं के बिना मर रहे हैं। 

जब मैं यह लिख रहा हूं, यह ज्ञात नहीं है कि हमास राष्ट्रपति ट्रम्प की 20-सूत्रीय ‘शांति योजना’ को स्वीकार करेगा या नहीं जो इसराईल की मांगों का पर्याप्त समर्थन करती प्रतीत होती है। अगर हमास को तबाह फिलिस्तीनियों को तुरंत राहत देनी है तो उसके पास शायद कोई विकल्प नहीं है। ‘शांति योजना’ को स्वीकार करने का मतलब होगा फिलिस्तीन के भविष्य को बाहरी नियंत्रण में सौंपना और यह स्पष्ट नहीं होगा कि 157 देशों द्वारा मान्यता प्राप्त फिलिस्तीन कभी एक संप्रभु राज्य बनेगा भी या नहीं। हमें हमास और फिलिस्तीनी जनता के बीच अंतर करना होगा। 

निरर्थक युद्ध : भारत ने यूक्रेन युद्ध में कुल मिलाकर एक सैद्धांतिक रुख अपनाया है। प्रधानमंत्री मोदी ने शांतिदूत की भूमिका निभाने की कोशिश की है लेकिन उनके पास वह नैतिक अधिकार और दृढ़ता नहीं है जो भारत को 1950 और 1960 के दशक में हासिल थी। इसराईल-हमास युद्ध में भारत बुरी तरह लडख़ड़ा गया था। सरकार ने भारत के इस दीर्घकालिक दृष्टिकोण को तोड़ा कि इसराईल और फिलिस्तीन दोनों को ‘द्वि.राष्ट्र’ योजना के तहत अस्तित्व में रहने का अधिकार है। हालांकि, हाल ही में, सरकार को अपनी मूर्खता का एहसास हुआ है और उसने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं। इस लेख का उद्देश्य केवल उन विनाशकारी युद्धों की ओर ध्यान आकर्षित करना नहीं है जो ‘मजबूत’ दिखने वाले देश कमजोर विरोधियों के खिलाफ  लड़ रहे हैं। दुनिया को जवाहरलाल नेहरू, डैग हैमरशॉल्ड, माॢटन लूथर किंग जूनियर और नेल्सन मंडेला जैसे नैतिक अधिकार वाले नेताओं की जरूरत है। दुनिया को ऐसे राष्ट्रों की ज़रूरत है जो एकजुट होकर झगड़ते देशों पर प्रभाव डाल सकें और महाशक्तियों पर लगाम लगा सकें।  फिलहाल सिर्फ अंधेरा है और भौर का कोई आसार नजर नहीं आ रहा।-पी. चिदम्बरम

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