भारतीय अदालतों में छुट्टियों की बहुतायत

Edited By ,Updated: 15 Jan, 2024 05:09 AM

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वर्तमान में, सुप्रीम कोर्ट  में सालाना 193 कार्य दिवस, उच्च न्यायालयों में 210 दिन और ट्रायल कोर्ट में साल में 245 दिन कार्य दिवस होते हैं।

वर्तमान में, सुप्रीम कोर्ट  में सालाना 193 कार्य दिवस, उच्च न्यायालयों में 210 दिन और ट्रायल कोर्ट में साल में 245 दिन कार्य दिवस होते हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की 13 अदालतों में से एक अदालत छुट्टियों के दौरान जरूरी मामलों की सुनवाई के लिए बैठती है। जनहित याचिका में कहा गया है कि शीर्ष अदालत के नियम भी निॢदष्ट करते हैं कि न्यूनतम 225 कार्य दिवस होने चाहिएं तो कोर्ट अपने द्वारा बनाए नियमों की खुद ही अवहेलना क्यों कर रहे हैं।

अब  सुप्रीम कोर्ट  में लगभग 60,000 मामले लंबित हैं, व  उसके वाॢषक कैलेंडर में 5 छुट्टियां हैं। 45 दिन का ग्रीष्मकालीन अवकाश, 15 दिन का शीतकालीन अवकाश और एक सप्ताह का होली अवकाश। इसके अलावा  दशहरा और दिवाली के दिनों में कोर्ट का कार्य 5-5 दिनों के लिए बंद रहता है। भारत के विविध धार्मिक और सांस्कृतिक परिदृश्य के कारण भारतीय अदालतों में छुट्टियों की एक बड़ी संख्या होती है। देश में अनेक त्यौहार और छुट्टियां मनाई जाती हैं, जिनमें विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों के लिए विशिष्ट त्यौहार भी शामिल हैं।

ये छुट्टियां लोगों की धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाओं का सम्मान करने और उन्हें समायोजित करने के लिए मनाई जाती हैं, और अदालत के कर्मचारियों और अधिकारियों को इन महत्वपूर्ण अवसरों में भाग लेने की अनुमति देने के लिए उन्हें अदालत के कैलेंडर में दर्शाया जाता है। हरेक प्रदेश की उच्च न्यायालय द्वारा हर वर्ष अपने प्रदेश के त्योहारों को मध्यनजर रखते हुए नए वर्ष के प्रारंभ होने से पहले अदालत के काम काज के दिनों व छुट्टियों का कैलेंडर जारी किया जाता है। इसके अतिरिक्त, भारत में कानूनी प्रणाली में नए न्यायिक वर्ष की शुरूआत जैसी घटनाओं के लिए विशिष्ट छुट्टियां भी होती हैं, (जिसे स्पैसिफिक हॉलीडेज फॉर इवैंट्स) का नाम दिया गया है।

उक्त छुट्टियों के कारण हमारी अदालतों में लंबित केसों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। हर वर्ष गर्मियों और सॢदयों में होने वाली छुट्टियों की अवधि कम होनी चाहिए। न्यायाधीशों व वकीलों की बार को उक्त लंबित होते जा रहे केसों के निपटारे  बारे पब्लिक की भावनाओं की कदर करते हुए निश्चित समय अवधि (लिमिटेशन पीरियड) में केसों का निपटारा करवाने में योगदान प्रदान करना चाहिए।

न्यायालयों द्वारा कोर्ट में कार्य करने संंबंधी स्वयं के नियम बनाए जाते हैं व पिछले कुछ सालों से वकीलों द्वारा इन छुटियों के अलावा ‘नो वर्क डे’ (वकीलों की हड़ताल को दिया गया नाम) आम चलन में हैं। हर दूसरे दिन या तो सरकारी छुट्टी आ जाती है और अगर सरकारी छुट्टी न हो और न ही कोई जलसा जलूस हो और वर्किंग-डे (काम काज का) दिन हो तो वकील ‘नो वर्क डे’ का ऐलान करके अदालती काम में बाधा डाल देते हैं।

वैसे तो कई मुख्य न्यायाधीशों और विधि आयोगों ने अदालतों की छुट्टियों की संख्या में कटौती का प्रस्ताव दिया है, लेकिन उन सभी को न्यायाधीशों और बार एसोसिएशनों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। अब उक्त विषय पर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी तरह की पहली जनहित याचिका (पी.आई.एल.) दायर की गई है जिसमें मांग की गई है कि लंबित मामलों की बढ़ती संख्या को कम करने के लिए ब्रिटिश काल की प्रथा  उचित नहीं है सो अदालत की छुट्टियों में कटौती की जाए जो वर्तमान में भारी संख्या में हैं।

देशभर में 3.3 करोड़ केस पैंडिंग पड़े हैं। कानून मंत्रालय को विधि आयोग की रिपोर्ट संख्या (लॉ कमीशन की रिपोर्ट संख्या) 221, 230 और 245 की सिफारिशों को लागू करने के लिए उचित कदम उठाने का निर्देश देना चाहिए और प्रति वर्ष कम से कम 225 दिन और प्रति दिन 6 घंटे काम करें, उक्त मांग जनहित याचिका में भी रखी गई है। -रजनीश मधोक (एडवोकेट)

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