अपनी धरती पर सक्रिय पाक समर्थित खालिस्तानियों की अनदेखी न करे अमरीका

Edited By ,Updated: 20 Sep, 2021 05:44 AM

america should not ignore pakistan backed khalistanis operating on its soil

अमरीका में कुछ लोग मानते हैं कि अफगानिस्तान से अमरीकी सैनिकों की वापसी के साथ आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक युद्ध समाप्त हो गया है लेकिन एशिया में अपने सहयोगियों, विशेष रूप से भारत के लिए, आतंकवाद एक प्रमुख ङ्क्षचता के रूप में केंद्र बिंदू बना हुआ है।...

अमरीका में कुछ लोग मानते हैं कि अफगानिस्तान से अमरीकी सैनिकों की वापसी के साथ आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक युद्ध समाप्त हो गया है लेकिन एशिया में अपने सहयोगियों, विशेष रूप से भारत के लिए, आतंकवाद एक प्रमुख ङ्क्षचता के रूप में केंद्र बिंदू बना हुआ है। यदि वाशिंगटन चीनी आक्रमण का मुकाबला करने के लिए दिल्ली का समर्थन चाहता है तो दिल्ली को आतंकवाद से संबंधित कई खतरों, जिनका भारत सामना कर रहा है, का मुकाबला करने के लिए अमरीकी प्रशंसा और समर्थन की आवश्यकता है। 

सबसे हालिया, तालिबान द्वारा अफगानिस्तान का अधिग्रहण है, जो एक शून्य पैदा कर रहा है, जिसका इस्तेमाल क्षेत्र में कट्टरपंथी इस्लामी समूहों द्वारा किया जाएगा, जिनमें कश्मीर में शांति को बाधित करने वाले भी शामिल हैं। जबकि अमरीकी नीति निर्माता कभी-कभार कश्मीर में हिंसा की बात करते हैं, उन्होंने खालिस्तान के समर्थन को काफी हद तक नजरअंदाज कर दिया है, एक ऐसा अलगाववादी आंदोलन, जिसने 1970 के दशक के अंत से शुरू होकर एक दशक से अधिक समय तक पंजाब में एक अत्यंत हिंसक विद्रोह को उकसाया। 

उत्तरी अमरीका में बड़ी संख्या में रहते पंजाबी प्रवासियों में से खालिस्तानी आतंकवादी आतंकवाद के लिए जिम्मेदार थे, जैसे कि 1985 में एयर इंडिया के परिवहन विमान पर बमबारी और ऐसे आतंकवादियों को अनियंत्रित रूप से संगठित होने देने से फिर त्रासदी हो सकती है। यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि इस आंदोलन को पाकिस्तान के सुरक्षा प्रतिष्ठान, विशेष रूप से इसकी इंटर-सॢवसेज इंटैलीजैंस (आई.एस.आई.) से समर्थन मिला। यह समर्थन बंद नहीं हुआ है। हाल ही में हडसन इंस्टीच्यूट की रिपोर्ट में डा. क्रिस्टीन फेयर, माइकल रुबिन, सैम वेस्ट्रॉप, सेंट ओल्डमिक्सन और मेरे सहित अन्य लोगों द्वारा अमरीका स्थित खालिस्तान समूहों की गतिविधियों, पाकिस्तान समर्थक कश्मीरी अलगाववादी समूहों के साथ उनके संबंधों और भारत में स्थित आतंकवादी समूहों के साथ उनके संबंधों की जांच की गई। 

हमारी जांच से पता चलता है कि भारत में विद्रोही आंदोलनों के लिए पाकिस्तान का समर्थन 1950 के दशक से है और यह भारत की धार्मिक, राजनीतिक और जातीय दोष-रेखाओं का फायदा उठाने की रणनीति का हिस्सा है। मूल खालिस्तान आंदोलन के मानचित्रों में न केवल वर्तमान भारत के क्षेत्र शामिल हैं, बल्कि वर्तमान पाकिस्तान के बड़े हिस्से भी, जो सिखों के लिए धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण हैं। हालांकि पाकिस्तान से समर्थन और वित्त पोषण की मांग कर रहे खालिस्तानी समूहों ने अब अपनी क्षेत्रीय मांगों को भारतीय पंजाब तक सीमित कर दिया गया है। यह उन लोगों के समान है जो भारतीय कश्मीर में जनमत संग्रह की मांग करते हैं लेकिन वर्तमान में पाकिस्तान द्वारा नियंत्रित कश्मीर के कुछ हिस्सों के बारे में कुछ नहीं कहते। 

जहां पाकिस्तान ने अपने धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए अनिच्छा दिखाई है, उसने खालिस्तान के उद्देश्य का समर्थन करने के लिए सीमा के अपने हिस्से में सिख तीर्थस्थलों का उपयोग करने में कोई कमी नहीं दिखाई। उदाहरण के लिए, इवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड और पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का नेतृत्व पूर्व में सेवानिवृत्त सैन्य या खुफिया अधिकारियों ने किया है, जो यह दर्शाता है कि उन्हें पाकिस्तान की गुप्त योजनाओं में शामिल किया गया है। 

2018 में भारत और पाकिस्तान ने करतारपुर कॉरिडोर खोलने पर सहमति जताई, जो दोनों देशों के बीच एक वीजा-मुक्त गलियारा है तथा सिख तीर्थयात्रियों को पवित्र तीर्थ की यात्रा करने की अनुमति देता है। हालांकि उद्घाटन समारोह के दौरान एक आधिकारिक पाकिस्तानी वीडियो में 1984 में ऑप्रेशन ब्लू स्टार के दौरान भारतीय सेना द्वारा मारे गए तीन खालिस्तानी अलगाववादी नेताओं की तस्वीरें दिखाई गईं। खालिस्तान विद्रोह को भारत में कोई वास्तविक समर्थन नहीं है लेकिन इसे अभी भी कुछ भारतीय प्रवासियों का समर्थन हासिल है। वास्तव में पिछले कुछ वर्षों में अमरीका में खालिस्तान से संबंधित भारत विरोधी सक्रियता में वृद्धि देखी गई है। 

हमारे गहन शोध में कश्मीरी और खालिस्तानी कार्यकत्र्ताओं को पूरे अमरीका में एक साथ काम करते हुए दिखाया गया है। 2017 में खालिस्तानी और कश्मीरी समूहों ने अमरीका में संयुक्त विरोध प्रदर्शन किए और फिर अगस्त 2020 में उन्होंने मिल कर एक प्रदर्शन किया। यह कोई संयोग नहीं है कि यह बढ़ी हुई सक्रियता उसी समय हो रही है जब चीन के उदय का सामना करने के लिए अमरीका और भारत के बीच रणनीतिक सहयोग गहरा रहा है। चीन के एक महत्वपूर्ण सहयोगी पाकिस्तान का अमरीका के साथ भारत के घनिष्ठ संबंधों को कमजोर करने में निहित स्वार्थ है। अमरीका और उसके प्राथमिक दक्षिण एशियाई सहयोगी भारत के खिलाफ प्रतिद्वंद्वियों को लामबंद करने के रणनीतिक उद्देश्य को स्वीकार करते हुए, अमरीका में सबसे सक्रिय खालिस्तान अलगाववादी समूहों में से एक ने 2020 में रूस, चीन और पाकिस्तान के नेताओं को उनके उद्देश्य का समर्थन का अनुरोध करने के लिए खुले पत्र प्रकाशित किए। 

अगले सप्ताह वाशिंगटन में क्वाड (ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान, अमरीका) नेताओं की व्यक्तिगत उपस्थिति वाले पहले शिखर सम्मेलन के साथ, यह महत्वपूर्ण है कि अमरीका पाकिस्तान समॢथत आतंकवाद से संबंधित भारत की चिंताओं को गंभीरता से ले। अपनी अखंडता के लिए खतरों को लेकर भारत की चिंताओं को नजरअंदाज करना साम्यवादी नेतृत्व वाले चीन के आक्रामक इरादों का सामना करने में अमरीका के सहयोगी के रूप में कार्य करने के उसके संकल्प को कमजोर कर सकता है और यह अमरीका के लिए एक महत्वपूर्ण और खतरनाक नुक्सान होगा।-अपर्णा पांडे

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