अमृतसर रेल हादसे की जांच रिपोर्ट में अनावश्यक देरी न हो

Edited By Pardeep,Updated: 25 Oct, 2018 04:42 AM

amritsar railway accident investigation report delayed

अमृतसर में दुर्भाग्यपूर्ण रेल दुर्घटना के एक सप्ताह बाद भी इस बात को लेकर स्पष्टता नहीं है कि क्या समारोह के लिए आज्ञा दी गई थी और दुर्घटना के लिए कौन जिम्मेदार है? जहां एक-दूसरे पर दोषारोपण का खेल जारी है, वहीं सामने आ रहे नए चौंकाने वाले तथ्य...

अमृतसर में दुर्भाग्यपूर्ण रेल दुर्घटना के एक सप्ताह बाद भी इस बात को लेकर स्पष्टता नहीं है कि क्या समारोह के लिए आज्ञा दी गई थी और दुर्घटना के लिए कौन जिम्मेदार है? जहां एक-दूसरे पर दोषारोपण का खेल जारी है, वहीं सामने आ रहे नए चौंकाने वाले तथ्य विभिन्न सरकारी विभागों की बेरुखी तथा लापरवाही को दर्शाते हैं। सामने आए तथ्यों में से एक यह है कि अमृतसर में आयोजित 29 दशहरा कार्यक्रमों में से 25 के पास नगर निगम अथवा शहर की पुलिस से आवश्यक अनुमति नहीं थी।

और भी अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि जिले के शीर्ष अधिकारी अनिश्चितता की स्थिति में ही रहे और यहां तक कि अपनी खुद की जिम्मेदारियों से अनजान थे। यह न केवल उनकी जानकारी के घटिया स्तर बारे बताता है बल्कि इस बारे में भी कि किस तरह से ऐसे निर्णय लिए जाते हैं और अनुमतियां प्रदान की जाती हैं। स्पष्ट है कि जनता की सुरक्षा से जुड़े सभी महत्वपूर्ण मुद्दों को सुनिश्चित करने के लिए कोई निगरानी तथा जांच नहीं की जाती। 

उदाहरण के लिए नगर निगम, जिसने अब स्वीकार कर लिया है कि अमृतसर में दशहरा समारोह आयोजित करने के लिए केवल 4 आयोजकों ने अनुमति ली थी, ने अन्य 25 के खिलाफ कोई कार्रवाई करने का प्रयास नहीं किया जो स्वाभाविक रूप से समारोह आयोजित करने के लिए कई दिनों से सार्वजनिक तौर पर तैयारी कर रहे थे। इनमें धोबीघाट पर आयोजित दुर्भाग्यशाली समारोह भी शामिल है, जहां रावण के पुतले को आग लगाए जाने के बाद ट्रेन से कुचल कर 60 से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवा दी। क्यों उनके परिसरों पर छापे नहीं मारे गए और क्यों उन्हें समारोह आयोजित करने से नहीं रोका गया? 

जिला प्रशासन ने यह कह कर अपने हाथ झाड़ लिए कि उसकी कोई भूमिका नहीं है क्योंकि अमृतसर में पुलिस कमिश्नरेट प्रणाली है। इस प्रणाली के अन्तर्गत ऐसी सभी अनुमतियां पुलिस कमिश्रर द्वारा दी जाती हैं जो निषेधाज्ञा लगाने के आदेश तथा हथियारों के लाइसैंस आदि दे सकता है। यद्यपि एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि वह जांचेंगे कि क्या ‘अंतिम’ अनुमति पुलिस द्वारा दी जाती है या जिला प्रशासन द्वारा। नि:संदेह उन्हें अनुमति की सही प्रक्रिया की भी जानकारी नहीं है। जहां धोबीघाट पर आयोजित दुर्भाग्यशाली दशहरे का आयोजक, जो गायब है मगर एक वीडियो रिकाॄडग के माध्यम से सामने आया है, ने दावा किया है कि उसके पास सभी अनुमतियां थीं और उसके इस दावों को नगर निगम चुनौती दे रहा है। 

यदि यह विवादास्पद भी है तो जो विवादास्पद नहीं है वह यह कि आयोजन स्थल पर अग्रिशमन गाडिय़ां, पानी के टैंकर तथा पुलिस मौजूद थी। स्वाभाविक है कि ये संबंधित अधिकारियों द्वारा अनुमति मिले बगैर किसी विशेष आयोजन स्थल पर नहीं होतीं। मगर आयोजकों को क्लीन चिट नहीं दी जा सकती और उन्हें बहुत से प्रश्रों के उत्तर देने हैं। क्यों उन्होंने रेल लाइनों के इतने करीब एल.ई.डी. स्क्रीन्स लगाईं और क्यों बैरीकेड्स नहीं लगाए अथवा रेलवे लाइनों के नजदीक स्वयंसेवकों को तैनात क्यों नहीं किया गया। 

रेलवे को निश्चित तौर पर इस दुर्घटना के लिए दोष नहीं दिया जा सकता, यद्यपि ऐसे सार्वजनिक उत्सवों के दौरान ड्राइवरों को सतर्क करने के लिए एक सबक सीखना चाहिए। यद्यपि यह सारी घटना दुर्भाग्यशाली थी, इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि इसके शिकार बने लोग अपनी खुद की सुरक्षा के प्रति लापरवाह थे। यह दुखद है कि जिस पल रावण के पुतले को आग लगाई गई और इसमें भरे गए पटाखे फूटने लगे, उसी समय ट्रेन ने उन लोगों को कुचल दिया जिनका ध्यान बंट गया था। इसके साथ ही निजी सुरक्षा की भावना का अभाव सरकार को इसकी सभी नागरिकों के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी से दोषमुक्त नहीं करता। यह एक ऐसी दुर्घटना थी, जो होने का इंतजार कर रही थी। सरकार ने अब एक जांच आयोग का गठन किया है और आशा करनी चाहिए कि इसकी रिपोर्ट में अनावश्यक देरी नहीं की जाएगी। आयोग को आवश्यक तौर पर ऐसे सार्वजनिक समारोहों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देशों के साथ आगे आना होगा।-विपिन पब्बी

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