क्या हम अपनी विरासतों की देखभाल करने में ‘सक्षम’ नहीं हैं

Edited By Pardeep,Updated: 26 May, 2018 02:17 AM

are we not able to take care of our heritage

मेरे कुछ मित्र इंगलैंड से आए थे और हमने लाल किला जाने का फैसला किया। वे हमारे देश के बहुत से ऐतिहासिक स्थलों को देखने के इच्छुक थे। जैसे ही हम लाल किला पहुंचे मैं वहां गंदगी, धूल, बड़बोले हॉकरों तथा दलालों को बड़ी संख्या में देखकर विश्वास ही नहीं कर...

मेरे कुछ मित्र इंगलैंड से आए थे और हमने लाल किला जाने का फैसला किया। वे हमारे देश के बहुत से ऐतिहासिक स्थलों को देखने के इच्छुक थे। जैसे ही हम लाल किला पहुंचे मैं वहां गंदगी, धूल, बड़बोले हॉकरों तथा दलालों को बड़ी संख्या में देखकर विश्वास ही नहीं कर सकी।

एक पल के लिए तो मुझे स्वयं के भारतीय होने पर शर्म महसूस हुई क्योंकि हमारे देश के एक सर्वाधिक शानदार स्मारक के आसपास इतनी गंदगी दिखाई दे रही थी। यह वही जगह है जहां गणतंत्र दिवस पर प्रधानमंत्री खड़े होते हैं। यह वह गौरवपूर्ण स्थान है जहां हमारे देश के करोड़ों लोग प्रधानमंत्री को तिरंगा फहराते देखते हैं। मैं आपको बयां नहीं कर सकती कि यहां कितनी गंदगी थी, इसका एहसास करने के लिए आपको खुद वहां जाना पड़ेगा। 

यह देखने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मंत्री एलफोंसे ने सी.एस.आर. परियोजना की मदद से लाल किले के बाहर सफाई करने के लिए एक उद्योगपति को इसे सौंपने का सही निर्णय लिया है। लोग लाल किले की दीवार पर पेशाब करते हैं, वहां से पेशाब की दुर्गंध आ रही थी। बाहर सड़क के किनारे छोटे-छोटे बच्चे मल त्याग कर रहे थे। वहां घूम रहे दलाल हमारा जीवन दयनीय बना देते हैं। हॉकर महिलाओं के छोटे हैंडबैग्स, मूंगफली, बिसलरी की फिर से भरी गई पानी की बोतलें और बहुत से अन्य पदार्थ बेचने का प्रयास करते हैं। 

यह देखना चिंताजनक है कि इस सब के बावजूद विदेशी इन स्थानों पर आते हैं। एक महिला बोली ‘‘वाह, यह है भारत का आकर्षण’’ लेकिन साथ वाला व्यक्ति बहुत घृणा महसूस कर रहा था और मैं भी। स्वाभाविक है कि कुछ विदेशी, जो पहली बार भारत आते हैं उन्हें यही एहसास होता है कि हम अभी भी सपेरों के पुराने समय में रह रहे हैं। हम अभी भी गरीबी में जी रहे हैं और यही एहसास पहली बार उनके मन में आता है। 

यही वह समय है कि हम स्मारकों तथा धार्मिक स्थलों के आसपास के क्षेत्र को साफ करें मगर हम खुद स्मारकों तथा मंदिरों को नहीं छूते। मैं दिल्ली में हुमायूं के मकबरे के ठीक पास रहती हूं और आपको विश्वास दिला सकती हूं कि जिस तरह का कार्य इनटैक तथा आगा खान ने मकबरे की देखरेख के लिए किया है, वह आश्चर्यजनक है। यह आज देश में सर्वाधिक खूबसूरत दिखाई देने वाले स्थलों में से एक है और खुद मकबरा चमकदार तथा साफ-सुथरा है। खूबसूरती से तराशे गए इस मकबरे के पुराने वैभव को बहाल रखा गया है। 

बहाली का अर्थ पुराने काम को बदलना नहीं बल्कि इसे गिरने अथवा खराब होने से बचाना है। इस काम की हमारे देश के कई ऐतिहासिक स्थलों के लिए अत्यंत जरूरत है। जिनमें ताजमहल तथा फतेहपुर सीकरी और इन जैसे कई अन्य किले शामिल हैं। जब आप मेरे देश में गुवाहाटी स्थित कामाख्या मंदिर से लेकर वैष्णो माता जैसे धार्मिक स्थलों पर जाते हैं तो यह देखकर दुख होता है कि वहां कोई चिकित्सा सहायता अथवा मदद उपलब्ध नहीं है बल्कि बड़ी संख्या में दलाल मिल जाएंगे जो सारा दिन आपको परेशान करते रहते हैं। कुछ दिन पहले वैष्णो देवी में मेरी एक मित्र का निधन हो गया क्योंकि उसे आक्सीजन की कमी हो गई थी और वहां कोई आक्सीजन सिलैंडर अथवा मास्क उपलब्ध नहीं था। हमारे देश के एक सर्वाधिक अमीर धार्मिक स्थल में चिकित्सा सहायता न उपलब्ध होना अत्यंत भयावह है। उन्हें वहां प्रशासन से कोई मदद नहीं मिली। नि:सहाय, दुखी लोगों की दिल्ली में कुछ जान-पहचान थी और उन्हें वहां से मदद भी मिली लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और मेरी मित्र चल बसी। 

इस देश में बिना किसी जान-पहचान के कुछ भी काम नहीं होता। यह शर्मनाक तथा दुखद है। सारी रात उन्हें दुख झेलना पड़ा। मुझे हैरानी होती है कि क्यों हमारे देश में चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े बड़े-बड़े घराने हमारे भीड़भाड़ वाले धार्मिक स्थलों पर चिकित्सा सहायता केन्द्र नहीं खोलते। यह बहुत पुण्य का काम है। बीमार श्रद्धालुओं के लिए यह बहुत जरूरी है। हमारे ऐतिहासिक स्थलों पर फस्र्टएड किट्स भी उपलब्ध होनी चाहिएं। विदेश में ये हर कहीं उपलब्ध हैं। ये भी उद्योगपतियों अथवा अस्पतालों के मालिकों की सी.एस.आर. परियोजनाओं का एक हिस्सा हो सकती हैं। कोई समिति बनाई जानी चाहिए और वह इन महत्वपूर्ण मुद्दों के सुगम संचालन पर ध्यान दे। अब ताजमहल को ही देखें। यह शर्म की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने ए.एस.आई. को टिकटों की बिक्री से होने वाली आय से इसकी साफ-सफाई का आदेश दिया है। उन्हें इसका इस्तेमाल स्मारक के वैभव को बढ़ाने के लिए करना चाहिए। इसकी छत पर काई जमी है। कई बार ताज सफेद की बजाय हल्के सलेटी रंग का दिखाई देता है। यह शर्म की बात है कि जब विदेशी आकर हमें यह पूछ कर शर्मसार कर देते हैं कि क्या हम अपनी विरासतों की देखरेख करने में सक्षम नहीं हैं।

मैं सरकार से सहमत हूं कि उसने बागीचे, टायलैट बनाने तथा दलालों व हॉकरों को अनुशासन में रखने के लिए लाल किले के बाहरी परिसर को एक औद्योगिक घराने को लीज पर दिया है। हमारे धार्मिक स्थलों तथा स्मारकों की स्वच्छता तथा देखरेख प्रोफैशनल्स तथा विशेषज्ञों के हाथ में होगी। मैं सारे देश में धार्मिक स्थलों पर बहुत आती-जाती रहती हूं, मुझे उन तक जाती सड़कों को साफ-सुथरा और अनुशासित देखकर बहुत खुशी होगी और वह भी हमारे इतिहास, समृद्ध संस्कृति तथा गौरवशाली विरासत को गंवाए बिना।-देवी चेरियन

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