पाबंदी लगानी है तो भाजपा सरकार प्राइवेट शिक्षण संस्थाओं और निजी अस्पतालों पर लगाए

Edited By ,Updated: 19 Apr, 2017 11:28 PM

bjp government is imposed on private educational institutions private hospitals

आदित्यनाथ की सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश में लिए गए सबसे पहले फैसलों में बूचडख़ानों पर ...

आदित्यनाथ की सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश में लिए गए सबसे पहले फैसलों में बूचडख़ानों पर प्रतिबंध लगाने एवं एंटी-रोमियो स्क्वायड गठित करने के फैसले भी शामिल थे। पहले तो कहा गया था कि सभी बूचडख़ाने बंद कर दिए जाएंगे लेकिन बाद में सरकार पीछे हट गई और यह स्पष्ट किया गया कि केवल अवैध बूचडख़ानों को ही बंद किया जाएगा। लेकिन बिना सोचे-समझे लिए गए इस फैसले से भय का ऐसा वातावरण बना कि मीट की सामान्य दुकानें भी बंद हो गईं। इनमें बकरे और मुर्गे इत्यादि का मांस बेचने वाली दुकानें भी शामिल थीं। मीट उद्योग में भारी संख्या में कार्यरत लोग अचानक ही बेरोजगार हो गए। सबसे बुरा प्रभाव दिहाड़ीदार मजदूरों पर पड़ा था। 


एंटी-रोमियो गतिविधियों के नाम पर सामान्य दम्पतियों तक को तंग किया गया। नागरिकों के प्राइवेट जीवन में सरकार की दखलंंदाजी ने प्रदेश में निराशा का वातावरण पैदा कर दिया। इससे भी बुरी बात तो यह है कि अन्य भाजपा शासित प्रदेशों में भी यह सिलसिला फैलता जा रहा है। गुजरात में तो अब गौहत्या पर उम्रकैद की सजा हो सकती है। 


ङ्क्षहदुत्व की राजनीति का उत्थान शुरू होने के बाद एक नया रुझान पनप रहा है। बेशक गौहत्या से निपटने के लिए पहले से कानून मौजूद हैं लेकिन अब गौमांस  का कारोबार प्रतिबंधित करने के नाम पर उन लोगों पर भी निशाना साधा जा रहा है जो मुख्य तौर पर भैंसे का मीट बेचते हैं। रोमियो स्क्वायड गली-मोहल्ले की आम औरतों को भी परेशान करते हैं। कुछ ऐसे स्वयंभू गुट रातों-रात पैदा हो गए हैं जो कानून को अपने हाथों में लेने के लिए तत्पर रहते हैं और कभी-कभी इसके घातक नतीजे निकलते हैं। यू.पी. के मुख्यमंत्री अतीत में अपने भड़काऊ भाषणों के कारण इस प्रकार की ङ्क्षहसा भड़काने में संलिप्त रहे हैं। 


भाजपा सरकार तात्कालिक मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने में सफल रही है। भाजपा का प्रमुख चुनावी वायदा किसानों के ऋण माफ करना था और यह काम उसने काफी तेजी से अंजाम दिया है। लेकिन क्या इससे ध्रुवीकरण में सहायता मिलेगी? भाजपा और इसकी सरकार की कार्रवाइयां बहुत तेजी से देश में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ा रही हैं। योगी को मुख्यमंत्री बनाने के पीछे सम्भवत: यही उद्देश्य था। 


वैसे यू.पी. सरकार चाहे कुछ भी कर रही हो, यह प्रतिबंधों की राजनीति का शौक पालना चाहती है। कभी बड़े नोट बंद कर दो, कभी बूचडख़ाने जबकि वास्तव में इसे प्राइवेट स्कूलों और अस्पतालों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए क्योंकि ये दोनों ही आम जनता के लिए अभिशाप बन चुके हैं। बिहार और अन्य स्थानोंपर लागू की गई शराबबंदी से गरीबों को सहायता मिली है। लेकिन प्राइवेट शिक्षा तथा प्राइवेट स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रतिबंध लगाने से देश के सभी लोग लाभान्वितहोंगे। 


अमीर मां-बाप के बच्चे मुख्य तौर पर ऊंची फीस लेने वाले प्राइवेट शिक्षण संस्थानों में पढ़ते हैं और ये संस्थान एक या दूसरी गतिविधि के नाम पर इन अभिभावकों से पैसे ऐंठते रहते हैं। अकादमिक वर्ष में फीस बढ़ाने के मुद्दे पर ये स्कूल सरकार द्वारा निर्धारित मानकों का अनुसरण नहीं करते। बच्चों को बहुुत ही मुकाबले भरे वातावरण में पढ़ाई करवाई जाती है जिससे उनका व्यक्तित्व ही विकृत हो जाता है। ऊपर से प्राइवेट कोङ्क्षचग संस्थान रही-सही कसर पूरी कर देते हैं। ये संस्थान बच्चों और युवकों के भावात्मक स्वास्थ्य को गम्भीर रूप में आहत करते हैं। 


मुफ्त और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 लागू होने के बाद भी महंगे प्राइवेट स्कूल कमजोर और वंचित वर्गों के बच्चों को इस कानून की धारा 12 के अंतर्गत दाखिला देने से आनाकानी करते हैं। उदाहरण के तौर पर अपनी 20 से अधिक शाखाओं में 50 हजार से अधिक बच्चों को शिक्षा देने वाले लखनऊ स्थित सिटी मोंटेसरी स्कूल ने 2016-17 में 58 ऐसे छात्रों को प्रवेश देने से इंकार कर दिया था, जिनके दाखिले का आदेश जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा दिया गया था। इस हिमाकत के बावजूद इस स्कूल को आज तक आंच नहीं आई। 

 

ऊंची फीसें वसूल करने वाले प्राइवेट स्कूल तो जिला अधिकारियों तथा कई बार प्रदेश स्तरीय अधिकारियों से भी अधिक शक्तिशाली सिद्ध होते हैं तथा माफिया की तरह काम करते हैं। सभी शक्तिशाली व्यवसायियों की तरह वे भी जानते हैं कि सरकारों को अपने पक्ष में कैसे प्रभावित करना है। यही हाल प्राइवेट स्वास्थ्य संस्थानों का है। भाजपा सरकार यदि इस संबंध में कोई प्रतिबंध प्रभावी रूप में लागू करती है तो इससे निश्चय ही उन्हें लाभ मिलेगा। (मंदिरा पब्लिकेशन)

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