हरियाणा में विपक्ष की ‘टूट-फूट की सियासी लूट’ पर भाजपा की नजर

Edited By ,Updated: 17 Oct, 2019 03:01 AM

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हरियाणा में भाजपा ने 90 में से 75 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। तमाम सर्वे भाजपा को 70 से ज्यादा सीटें दे रहे हैं। खुद भाजपा के नेता हरियाणा में आसान जीत की बात कर रहे हैं लेकिन भाजपा कुछ-कुछ आशंकित भी लगती है। यही वजह है कि मेवात में भाजपा ने दो...

हरियाणा में भाजपा ने 90 में से 75 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। तमाम सर्वे भाजपा को 70 से ज्यादा सीटें दे रहे हैं। खुद भाजपा के नेता हरियाणा में आसान जीत की बात कर रहे हैं लेकिन भाजपा कुछ-कुछ आशंकित भी लगती है। यही वजह है कि मेवात में भाजपा ने दो मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया। कुश्ती सितारों बबीता फौगाट और योगेश्वर दत्त को चुनाव मैदान में उतारा। हाकी के सूरमा संदीप सिंह को भी  आजमाया जा रहा है। टिक-टाक स्टार सोनाली फौगाट तक को भी टिकट दिया गया है। 

पहले बात करते हैं मेवात की। यहां नूंह और फिरोजपुर झिरका से पिछली बार चौटाला की पार्टी से जीते जाकिर हुसैन और नईम अहमद को भाजपा ने अपने साथ लिया और अब दोनों कमल चिन्ह पर चुनाव लड़ रहे हैं। पुन्हाना में पिछली बार निर्दलीय जीते रईस खान को भाजपा ने अपने साथ लिया लेकिन फिर टिकट काट दिया और 27 साल की नौक्षम चौधरी को मैदान में उतारा है। 

यह बताता है कि भाजपा एक-एक सीट के लिए दाव लगा रही है और प्रयोग करने से परहेज नहीं कर रही। जिस मेवात में 5 सालों में कभी सड़क पर नमाज पढऩे के मुद्दे पर हंगामा होता रहा हो, गौरक्षकों की कथित गुंडागर्दी से मेव परेशान होते रहे हों, गौमांस मिलाने के नाम पर बिरयानी बेचने वालों पर पुलिस प्रशासन का डंडा चलता रहा हो,हिंदुत्व कार्ड जोर पर चलाने की कोशिश होती रही हो, उसी मेवात में भाजपा को दो मुस्लिम विधायकों को दूसरी पार्टी से तोडऩा पड़ा है। 

पहलू खान का गांव
वैसे मेवात को समझने के लिए नूंह के जयसिंह पुर गांव जाना ही होगा। यह पहलू खान का गांव है, जिसका नाम दो साल पहले सुर्खियों में आया था, जब राजस्थान के बहरोड़ में गौरक्षकों ने पीट-पीट कर उसकी हत्या कर दी थी। वह जयपुर से गाय खरीद कर लौट रहे थे। पिछले दिनों अलवर की अदालत ने आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। हालांकि अदालत ने पुलिस को काफी लताड़ पिलाई थी। हैरानी की बात है कि पुलिस ने उस वीडियो रिकाॄडग को भी अदालत के सामने पेश नहीं किया था जिसमें पहलू खान की पिटाई होती साफ  तौर पर दिख रही थी। खैर, तफ्तीश के दौरान राजस्थान में भाजपा की सरकार थी और फैसला आया कांग्रेस सरकार के समय। 

दोनों के रवैये से पहलू खान की बेवा जेबुन्निसा नाराज दिखीं। कहने लगीं कि वह अब मरते दम तक लंबी अदालती लड़ाई लड़ेंगी चाहे घर ही क्यों न बिक जाए लेकिन पहलू खान को इंसाफ  दिलवा कर ही दम लेंगी। उनके बेटे मुबारक खान ने बताया कि अब गांव के मेवों ने गाय पालना लगभग बंद कर दिया है। दोनों भाजपा को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हैं जो गुंडे गौरक्षकों को संरक्षण देती रही है। मुबारक की बातों से जयसिंहपुर गांव के लोगों ने भी सहमति जताई। सबका कहना था कि मेवात में भाजपा ने हिंदू-मुस्लिम करने की कोशिश की और सदियों से साथ रहते आए मेव और हिंदुओं के बीच खाई बनाने का काम किया। 

मेवात की पांचों सीटों पर मेवों की बहुलता है। यहां इनकी आबादी 70 फीसदी है। पिछले विधानसभा चुनावों में 5 में से एक ही सीट भाजपा को मिली थी। लोकसभा की सभी 10 सीटों पर भाजपा जीती लेकिन मेवात में पिछड़ी थी। इस बार भाजपा ने नई रणनीति अपनाई है। इसी के तहत उसने नूंह से चौटाला की इनैलो से जीते जाकिर हुसैन को टिकट दिया है जहां से भाजपा का कभी खाता तक नहीं खुला। यहां से कभी कांग्रेस तो कभी चौटाला की पार्टी जीतती रही है। नूंह में लोग मोदी और खट्टर की आलोचना करते हैं लेकिन दिलचस्प बात है कि जाकिर हुसैन को अपना नेता मानते हैं जो भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसा ही कुछ फिरोजपुर झिरका में भी दिखता है जहां चौटाला की पार्टी से जीते नमीम अहमद को भाजपा ने टिकट दिया है। वैसे नीति आयोग का कहना है कि मेवात देश के सबसे पिछड़े जिलों में आता है लेकिन ऐसे जिले जो विकास की संभावना वाले हैं। 

मेवात की राजनीति समझने के लिए पहलू खान के घर जाना  जरूरी है तो हरियाणा में जाट राजनीति समझने के लिए 10 साल मुख्यमंत्री रहे भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के गढ़ी सांपला किलोई विधानसभा क्षेत्र में जाना जरूरी है जो रोहतक में पड़ता है। 5 सालों से गैर जाट मनोहर लाल खट्टर सत्ता में हैं और किलोई में बुजुर्ग जाट हुड्डा के विकास कामों की तारीफ  करते हुए चौधरी की वापसी की बात करते हैं। हालांकि इसके साथ ही हड्डा को सिर्फ जाटों का नेता न बताकर 36 कौमों का नेता भी बताना नहीं भूलते। सत्ता गंवाने का दर्द साफ  दिखता है और सत्ता में वापसी से जुड़ी आशा में उत्साह भी कम ही दिखता है। 

हुड्डा अपने राजनीतिक जीवन की सबसे कठिन लड़ाई लड़ रहे हैं। बेटे दीपेन्द्र सिंह रोहतक से लोकसभा चुनाव हार चुके हैं। पार्टी में कलह है। अशोक तंवर इस्तीफा दे चुके हैं। हरियाणा में 25 से 27 फीसदी जाट हैं। यहां विधानसभा की 90 सीटें हैं और औसत रूप से 26 जाट विधानसभा पहुंचते रहे हैं यानि करीब-करीब एक तिहाई। हम कह सकते हैं कि हरियाणा विधानसभा पहुंचने वाला हर तीसरा-चौथा विधायक जाट होता है। इस बार भाजपा ने 19 जाटों को ही टिकट दिया है जबकि पिछली बार 24 जाट उम्मीदवार उतारे थे। कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनावों में 28 जाटों को टिकट दिया था। इस बार 26 जाट प्रत्याशियों को टिकट दिया है। कहा जाता है कि यहां की 90 सीटों में से करीब 35 में जाट अपना निर्णायक असर रखते हैं। 

हुड्डा को जिम्मेदारी
कांग्रेस चुनाव प्रचार अभियान की जिम्मेदारी हुड्डा के पास है जो जाट हैं, जो 25 से 27 फीसदी हैं। कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा हैं जो दलित हैं, जो 20-22 फीसदी हैं। इसके अलावा 5 से 7 फीसदी मुसलमान हैं। कुल मिलाकर यह आंकड़ा 50 पार पहुंचता है जो चुनाव जीतने के लिए काफी है लेकिन जमीनी हकीकत अलग दिखाई देती है। जानकारों का कहना है कि युवा जाट वोटर की सोच बदली है। राजनीतिक चौधराहट की जगह वह विकास, रोजगार और आगे बढऩे के मौके तलाश रहा है। इनमें से एक बड़े वर्ग को भाजपा से परहेज नहीं है। 

हरियाणा में जाट मतलब किसान है। यहां प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत 13 लाख 37 हजार किसान रजिस्टर्ड हैं। इन्हें साल में 6,000 रुपया दो-दो हजार की तीन किस्तों में दिया जाना तय किया गया था। सरकार का दावा है कि तीसरी किस्त दी जा रही है लेकिन सरकारी आंकड़े ही बताते हैं कि 72,316 किसानों को पहली किस्त का ही इंतजार है। इसी तरह दो लाख 80 हजार किसानों को दूसरी किस्त नहीं मिली है। हैरानी की बात है कि चुनाव काल में भी 13 लाख 37 हजार किसानों में से 9 लाख 77 हजार को तीसरी किस्त का इंतजार है। जींद ठेठ ग्रामीण इलाका है। यहां हमें मिले रविद्र जिन्हें अभी दूसरी किस्त का इंतजार है। किस्त के साथ-साथ नरमा कपास के सही दाम नहीं मिलने का भी मलाल है। हरियाणा में 90 विधानसभा सीटों में से लगभग आधी ग्रामीण हैं। राज्य की जी.डी.पी. में कृषि का हिस्सा 15 फीसदी है लेकिन किसानों का दर्द चुनावों के समय खुलकर सामने आ रहा है। 

कुल मिलाकर हरियाणा में लोगों का कहना है कि भाजपा को खट्टर सरकार के काम का उतना लाभ नहीं मिलेगा जितना कि चौटाला परिवार में टूट और कांग्रेस में फूट का मिलेगा। खट्टर के काम की तारीफ करने वाले करनाल में बहुत लोग मिल जाते हैं जहां से वह फिर से चुनाव लड़़ रहे हैं  लेकिन खट्टर सरकार के कुछ मंत्रियों को लेकर जनता में भारी नाराजगी देखने को मिलती है। एक ने कहा कि भले ही भाजपा जीत जाए लेकिन टॉप की लीडरशिप हारेगी।-विजय विद्रोही

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