गठबंधन सरकार के ‘बंधन’

Edited By Pardeep,Updated: 13 Aug, 2018 03:40 AM

bond  of coalition government

कर्नाटक में नए गठबंधन सहयोगी पहले ही गठबंधन सरकार चलाने की वास्तविकता से जूझ रहे हैं। बाबुओं का तबादला भी अब कांग्रेस और जे.डी. (एस) के बीच संघर्ष का मुद्दा बन गया है। एच.डी. कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली सरकार ने हाल के दिनों में कई तबादलों को...

कर्नाटक में नए गठबंधन सहयोगी पहले ही गठबंधन सरकार चलाने की वास्तविकता से जूझ रहे हैं। बाबुओं का तबादला भी अब कांग्रेस और जे.डी. (एस) के बीच संघर्ष का मुद्दा बन गया है। 

एच.डी. कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली सरकार ने हाल के दिनों में कई तबादलों को प्रभावित किया है। कहा जाता है कि सिद्धारमैया समेत कांग्रेस नेताओं के एक वर्ग को यह अधिक अच्छा नहीं लगा है और कहा जा रहा है कि इन तबादलों को लेकर पार्टी से परामर्श नहीं किया गया था। मिसाल के तौर पर, राज्य सरकार ने मुख्य सचिव रत्न प्रभा के विस्तार को लेकर केंद्र से अपना अनुरोध वापस लिया, जिनका कार्यकाल 30 जून को समाप्त हो गया है। सिद्धारमैया के नेतृत्व वाले पिछले कांग्रेस शासन द्वारा शीर्ष पद के लिए उन्हें चुना गया था। 

कुमारस्वामी ने सिद्धारमैया के कार्यकाल के दौरान नियुक्त अधिकारियों को स्थानांतरित करके मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) का भी नक्शा बदला गया है। वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी एल.के.अतीक, जिन्होंने सिद्धारमैया के मुख्य सचिव के रूप में कार्य किया, को बिना किसी नई पोस्टिंग के स्थानांतरित कर दिया गया। एक अन्य सीनियर आई.ए.एस. अधिकारी तुषार गिरिनाथ, जो सिद्धारमैया के प्रधान सचिव भी थे, को बाहर ले जाया गया और बी.डब्ल्यू.एस.एस.बी. चेयरमैन के रूप में तैनात किया गया। एक और आई.ए.एस. अधिकारी बी.एस. शेखरप्पा, जो मुख्यमंत्री के अतिरिक्त सचिव थे, को भी स्थानांतरित कर दिया गया है। गठबंधन समन्वय और निगरानी समिति के प्रमुख सिद्धारमैया के बारे में कहा जा रहा है कि वे शेखरप्पा को कमांड एरिया डिवैल्पमैंट अथॉरिटी के निदेशक के रूप में हस्तांतरण किए जाने को लेकर नाखुश हैं। सिद्धारमैया को इस बात का भी गुस्सा है कि अतीक और दयानंद को नई पोसिं्टग नहीं दी गई है। सवाल यह है कि दरारें प्रकट होने से पहले कितना समय लगेगा? 

इस सरकारी घर निकाला के पीछे हैं पूर्व बाबू: उत्तर प्रदेश के 6 पूर्व मुख्यमंत्री को हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने सरकारी बंगलों को खाली करने के लिए कहा गया था। लेकिन  बाबू सॢकल से परे कुछ लोग जानते हैं कि बेदखल अभियान का नेतृत्व लोकप्रहरी नामक गैर सरकारी संगठन ने किया था, जिसमें पूर्व आई.ए.एस., आई. पी.एस. अधिकारी और न्यायाधीश हैं। यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि अभियान 14 साल पहले शुरू किया गया था! 

सूत्रों का कहना है कि लोकप्रहरी ने 2004 में सरकारी बंगलों के बारे में पहली बार याचिका दायर की थी। यह याचिका 1997 में बनाए गए नियम के खिलाफ थी, जिसके तहत पूर्व मुख्यमंत्री को सरकारी आवास प्रदान करने के लिए व्यवस्था की गई थी। लोकप्रहरी अध्यक्ष और सेवानिवृत्त आई.ए.एस. अधिकारी नितिन मजूमदार कहते हैं कि यह संगठन की एकमात्र उपलब्धि नहीं है। इस फैसले से पहले, लोकप्रहरी  ने कई बड़े फैसलों में योगदान दिया था। उदाहरण के लिए, 2013 में उन्होंने एक याचिका दायर की थी जिसके बाद आर.जे.डी. के लालू प्रसाद यादव और तीन सांसदों को 62 वर्षीय प्रावधान को खत्म  करते हुए अभियुक्तों को अयोग्य घोषित किया गया था।-दिलीप चेरियन

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