सी.बी.आई. अपनी ‘विश्वसनीयता’ बहाल करे

Edited By Pardeep,Updated: 22 Nov, 2018 04:31 AM

cbi restore your  credibility

एक समय था जब लोग तथा राजनीतिक दल विभिन्न मामलों की जांच केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सी.बी.आई.) को सौंपने के लिए दबाव बनाने हेतु धरने देते थे। ऐसे भी कुछ उदाहरण हैं जब सी.बी.आई. से ‘स्वतंत्र’ जांच करवाने में आनाकानी करने वाले राज्यों को बाध्य करने के...

एक समय था जब लोग तथा राजनीतिक दल विभिन्न मामलों की जांच केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सी.बी.आई.) को सौंपने के लिए दबाव बनाने हेतु धरने देते थे। ऐसे भी कुछ उदाहरण हैं जब सी.बी.आई. से ‘स्वतंत्र’ जांच करवाने में आनाकानी करने वाले राज्यों को बाध्य करने के लिए प्रदर्शन हिंसक हो जाते थे। 

सी.बी.आई. से जांच करवाने तथा देश की प्रमुख केन्द्रीय जांच एजैंसी में अपना विश्वास बनाए रखने के पीछे कारण ये थे कि लोगों को विश्वास था कि राज्य पुलिस का राज्य में सत्ताधारी पार्टी के प्रति झुकाव होता है क्योंकि कानून व्यवस्था तथा पुलिस राज्य सरकार के अधीन होते हैं। नि:संदेह राज्य सरकारें पुलिस जांचों को प्रभावित करने के लिए अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करती हैं। कई राज्यों में तो पुलिस बल को भी साम्प्रदायिक होने के लिए जाना जाता है। 

यद्यपि राज्य सरकारें ऐसी स्थिति में नहीं होतीं कि वे सी.बी.आई. को जांच के लिए मामले अपने हाथ में लेने का निर्देश दे सकें, वे सी.बी.आई. को ऐसा करने का आग्रह कर सकती हैं। ऐसे भी बहुत से उदाहरण हैं जहां अदालतों ने सी.बी.आई. को कुछ मामलों की जांच करने के लिए कहा, जो न्यायपालिका के ध्यान में लाए गए। 

दोष सिद्धि की दर बहुत कम
यह इस तथ्य के बावजूद है कि सी.बी.आई. द्वारा जांचे तथा मुकद्दमे चलाए गए मामलों में दोष सिद्धि की दर बहुत ही कम रही है। जहां सी.बी.आई. यह दावा करती है कि उसकी दोष सिद्धि दर 60 प्रतिशत से अधिक है, वहीं उसके आंकड़े गुमराह करने वाले हैं। केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सी.वी.सी.) ने इंगित किया है कि जहां छोटे केसों में दोष सिद्धि की दर ऊंची थी, वहीं प्रमुख मामलों में एजैंसी की 9.96 प्रतिशत की घटिया अभियोग दर है। केवल 2017 में भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के अन्तर्गत दर्ज 538 मामलों में 755 आरोपियों को बरी किया गया, जबकि देश भर में अदालतों द्वारा 184 मामले खारिज कर दिए गए। 

हालिया समय के दौरान अदालतों में सी.बी.आई. द्वारा हारे गए प्रमुख मामलों में कुख्यात 2जी घोटाला, चारा घोटाला तथा आरूषि तलवाड़ हत्या मामला शामिल है। दरअसल सी.बी.आई. द्वारा किए गए घटिया कार्य के परिणामस्वरूप बरी किए जाने वाले लोगों की संख्या में अत्यंत वृद्धि हुई है जिनमें से अधिकतर भ्रष्टाचार में संलिप्त थे। 

फिर भी लोगों का यह मानना है कि यह खुले रूप में पक्षपाती और यहां तक कि साम्प्रदायिक राज्य पुलिस बलों से बेहतर है। लेकिन सी.बी.आई. के दो शीर्ष अधिकारियों के बीच नवीनतम आंतरिक लड़ाई अप्रत्याशित है और इसने इस संगठन की विश्वसनीयता को अत्यंत क्षति पहुंचाई है। इसके निदेशक तथा विशेष निदेशक ने एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। विडम्बना यह है कि भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करना सी.बी.आई. का एकमात्र सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य है। जहां यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, वहीं तथ्य यह है कि सी.बी.आई. की विश्वसनीयता अपने निम्रतम स्तर पर पहुंच गई है और इसे एक अपूर्णीय क्षति पहुंचाई है। कोई सी.बी.आई. से जांच की मांग कैसे कर सकता है जब इसके वरिष्ठतम अधिकारियों ने एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं? 

गम्भीर परिणाम हो सकते हैं
जहां देश के एक अन्य महत्वपूर्ण संस्थान का इस तरह से पतन होते देखना दुखद है, वहीं वर्तमान संकट गम्भीर परिणामों की ओर ले जा रहा है, जिन पर अभी देश ने अपना ध्यान केन्द्रित नहीं किया है। गत सप्ताह प. बंगाल तथा आंध्र प्रदेश की सरकारों ने अपने राज्यों में सी.बी.आई. को स्वतंत्र रूप से जांच करने के लिए दी गई ‘आम सहमति’ को वापस ले लिया। इसका अर्थ यह हुआ कि अपनी कार्रवाइयां करने के लिए सी.बी.आई. को इन राज्य सरकारों से आज्ञा लेनी होगी। स्वाभाविक है कि दोनों राज्य सरकारें यह महसूस करती हैं कि सी.बी.आई. केवल केन्द्र सरकार के पक्ष में कार्य करती है। हालांकि यह एक अच्छा कदम नहीं है और संघीय ढांचे के खिलाफ जाता है। 

अपने तौर पर सी.बी.आई. को अपनी विश्वसनीयता बहाल करने की जरूरत है, जहां यह सच है कि सी.बी.आई. के निदेशक की नियुक्ति एक समिति द्वारा की जाती है जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष का नेता तथा देश के चीफ जस्टिस शामिल होते हैं, वहीं यह महत्वपूर्ण है कि अन्य नियुक्तियां भी एक स्वतंत्र समिति द्वारा की जाती हैं। वर्तमान संकट के लिए सारी समस्या तब शुरू हुई जब केन्द्र ने निदेशक की सहमति के बिना अस्थाना की विशेष निदेशक के तौर पर नियुक्ति कर दी। ब्यूरो में डैपुटेशन पर अधिकारियों की चयन प्रक्रिया को सुधारने की जरूरत है जिसके लिए बलों में शामिल किए जाने वाले अधिकारियों की पृष्ठभूमि की पूरी जांच होनी चाहिए। विभिन्न राज्यों तथा अलग पृष्ठभूमियों के अधिक अधिकारियों को नियुक्त किए जाने और उन्हें खुला हाथ देने की जरूरत है। सी.बी.आई. को खुद को एक ऐसी एजैंसी में परिवर्तित करना चाहिए, जिसे पक्षपातहीनता के लिए सम्मान तथा ख्याति मिले।-विपिन पब्बी

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