Edited By ,Updated: 21 Nov, 2025 06:19 AM

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सी.बी.आई.) की विशेष अदालत ने पिछले महीने आई.आर.सी.टी.सी. होटल घोटाला मामले में 14 आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए। सी.बी.आई. के अनुसार, राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव, उनकी पत्नी राबड़ी देवी और बेटे तेजस्वी प्रसाद यादव के अलावा...
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सी.बी.आई.) की विशेष अदालत ने पिछले महीने आई.आर.सी.टी.सी. होटल घोटाला मामले में 14 आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए। सी.बी.आई. के अनुसार, राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव, उनकी पत्नी राबड़ी देवी और बेटे तेजस्वी प्रसाद यादव के अलावा राज्यसभा सदस्य प्रेमचंद गुप्ता, उनकी पत्नी सरला गुप्ता, आई.आर.सी.टी.सी. अधिकारियों, कोचर ब्रदर्स समेत कुल 14 आरोपियों के खिलाफ आरोप तय कर दिए गए थे। यह खबर पूरे देश में पढ़ी-सुनी गई।
यदि किसी ने नहीं देखी तो वह है कांग्रेस पार्टी ने। कांग्रेस ने लालू यादव के भ्रष्टाचार और जंगलराज के अन्य मामलों की तरह इसे भी नजर अंदाज कर दिया। कांग्रेस यह भूल गई कि यदि ऐसे मामलों की अनदेखी की गई तो मतदाता भी उसे भूल जाएंगे। बिहार विधानसभा चुनाव में यही हुआ। मतदाता भूल गए कि कांग्रेस भी एक राष्ट्रीय और प्रमुख विपक्षी राजनीतिक दल है। कांग्रेस ने सत्ता के लिए भ्रष्टाचार से समझौता किया। मतदाताओं ने कांग्रेस के इस रवैये को मतों से ठुकरा दिया। सर्वाधिक आश्चर्य की बात यह है कि कांग्रेस ने पिछली गलतियों से जरा भी सबक नहीं सीखा। भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था आज भी देश में प्रमुख मुद्दा है। विकास और दूसरे मुद्दे इसकी नींव पर खड़े होते हैं यदि नींव ही कमजोर होगी तो विकास की इबारत नहीं लिख पाएगी। कांग्रेस ने बिहार में लालू यादव की पार्टी से सत्ता के लिए समझौता कर अपने पैरों पर फिर से कुल्हाड़ी मारने का काम किया है।
कांग्रेस को बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों में से मात्र 6 सीटें मिलीं। इस शर्मनाक हार की जिम्मेदार खुद कांग्रेस है। कांग्रेस अब इस जिम्मेदारी से भागने के लिए फिर से वही पुराना वोट चोरी, सरकारी मशीनरी के चुनाव में दुरुपयोग का आरोप लगा रही है। अभी भी कांग्रेस इस सच्चाई का सामना करने को तैयार नहीं है कि उसने एक महाभ्रष्ट लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल से सीटों का समझौता करके भारी भूल की है। बिहार के मतदाताओं ने इन दोनों दलों को तगड़ा सबक सिखाया है। कांग्रेस ने आकंठ तक भ्रष्टाचार में डूबे लालू परिवार के जरिए चुनावी वैतरणी पार करने का गलत निर्णय लिया। यह जानते हुए भी कि मतदाता इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। अपराधी परिवार के साथ चुनावी तालमेल की कीमत कांग्रेस को चुकानी पड़ गई। भाजपा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लालू यादव के कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार और जंगलराज को प्रमुख मुद्दा बनाया। कांग्रेस इसके बचाव में कोई दलील देकर मतदाताओं को संतुष्ट नहीं कर सकी। बिहार में चुनाव हो और चारा घोटाले से जुड़ी कहानियां सामने न आएं, ऐसा हो ही नहीं सकता।
ये घोटाला ही ऐसा था कि 30 साल बाद भी लोग इसके बारे में बात करते हैं और जानने की चाहत रखते हैं। कांग्रेस ने 950 करोड़ रुपए के घोटाले में अपने प्रमुख सहयोगी और राजद प्रमुख लालू प्रसाद को गिरफ्तारी से बचाने के लिए पर्दे के पीछे से राजनीतिक चालें चलीं लेकिन वे असफल रहीं। वर्ष 1990-96 के दौरान सामने आया चारा घोटाला बिहार पशुपालन विभाग में हुआ। यह घोटाला मुख्य रूप से 1990 के दशक में हुआ। इस समय लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री थे। भ्रष्टाचार के ऐसे ढेरों मामलों के अलावा कांग्रेस लालू यादव के शासन के दौरान जंगल राज को भूल गई। लालू राज के दौरान अपराध की घटनाओं में वृद्धि हुई। अपहरण (किडनैपिंग) की वारदातें बढ़ीं। सड़क पर बढ़ती असुरक्षा भी इसमें शामिल थी। गुंडागर्दी और बाहुबल का प्रभाव था। कई जगह दबंगों और बाहुबली नेताओं का वर्चस्व था। प्रशासन पर राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप लगे थे। अर्थव्यवस्था और विकास में गिरावट आंकी गई थी। उद्योग, शिक्षा और बुनियादी ढांचे की स्थिति कमजोर हुई थी। बिहार को देश के ‘सबसे पिछड़े राज्यों’ में गिना जाने लगा था। वर्ष 1992 से 2004 तक, अपहरण के कुल 32,085 मामले दर्ज किए गए थे। ऐसे कितने मामले दर्ज नहीं किए गए। बिहार पुलिस की वैबसाइट के अनुसार, 2001-2005 के बीच हत्याओं की संख्या 20,000 के करीब है। 90 के दशक में स्थिति का सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है।
बिहार में दूसरा जंगलराज चुनावों में होने वाली हिंसा, बूथ कैप्चरिंग और धांधली से जुड़ा था, जिसका अंत भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन.शेषन ने अपने कड़े चुनाव सुधारों से किया था। टी.एन.शेषन भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त 1990-1996 तक थे, तब उन्होंने इस सिस्टम को बदलने के लिए ऐतिहासिक कदम उठाए थे। बिहार में इन सुधारों का प्रभाव सबसे ज्यादा दिखा। इस दूसरे वाले जंगलराज में बदमाशों या राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं द्वारा पूरे बूथ पर कब्जा करना, वोटिंग मशीन-बैलेट पेटी उठा ले जाना या खुद वोट डाल देना, वोटरों को धमकाना या बूथ से भगा देना जैसी चीजें शामिल थीं। कांग्रेस यदि गंभीर होती तो अपने शासित राज्यों में किसी एक का उदाहरण देकर मतदाताओं को विश्वास दिला सकती थी कि वह भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरैंस की नीति पर अमल करती है। कांग्रेस को यह समझना होगा कि राजद जैसे दागदार क्षेत्रीय दलों की तुलना वह एक प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी है। सिर्फ एक राज्य में सत्ता के लिए भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों से समझौता करने की भारी कीमत पूरे देश में चुकानी पड़ सकती है। यही कीमत दूसरे राज्यों के अलावा अब कांग्रेस ने बिहार में चुकाई है।-योगेन्द्र योगी