कांग्रेस की राज्य सरकारें भी ‘खतरे’ में

Edited By ,Updated: 12 Jun, 2019 12:53 AM

congress  state governments are also in  danger

यह देखते हुए कि तेलंगाना, पंजाब, राजस्थान तथा कर्नाटक सहित कई राज्यों में पार्टी के साथ क्या हो रहा है, ऐसा लगता है कि कांग्रेस उच्च कमान के प्रभुत्व का धीरे-धीरे क्षरण हो रहा है। जहां राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस नेतृत्व के संकट से जूझ रही है, वहीं...

यह देखते हुए कि तेलंगाना, पंजाब, राजस्थान तथा कर्नाटक सहित कई राज्यों में पार्टी के साथ क्या हो रहा है, ऐसा लगता है कि कांग्रेस उच्च कमान के प्रभुत्व का धीरे-धीरे क्षरण हो रहा है। जहां राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस नेतृत्व के संकट से जूझ रही है, वहीं राज्यों में भी पार्टी का विघटन हो रहा है। वरिष्ठ पार्टी नेता महसूस करते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के पीछे हटने तथा इस बारे कोई स्पष्टता न होने से कि वह पद पर बने रहेंगे अथवा नहीं, कांग्रेस टूट रही है। ऐसी दुविधा में कोई हैरानी की बात नहीं कि 2019 के लोकसभा चुनावों में ऐसी हार के बाद पार्टी में अनुशासनहीनता तथा धड़ेबाजी बढ़ती जा रही है।

उदाहरण के लिए तेलंगाना में कांग्रेस पार्टी की दयनीय स्थिति को लेते हैं। कांग्रेस यहां तब लगभग टूट ही गई थी जब 2018 के विधानसभा चुनावों में चुने गए 18 विधायकों में से 12 इस सप्ताह सत्ताधारी तेलंगाना राष्ट्र समिति (टी.आर.एस.) में शामिल हो गए। उत्तम कुमार रैड्डी जैसे तेलंगाना के कांग्रेस नेता दावा करते हैं कि टी.आर.एस. ने 12 विधायकों को खरीद लिया है। बाकी 6 विधायकों को साथ जोड़े रखना कांग्रेस नेतृत्व के लिए एक कठिन कार्य होगा। 2019 के लोकसभा चुनावों में 3 सीटें प्राप्त करने के बावजूद कांग्रेस की राज्य इकाई गम्भीर संकट में है। गत विधानसभा चुनावों में टी.आर.एस. तेदेपा विधायक दल का अपने में विलय कराने में सफल रही थी। इसने 2014 के चुनावों में जीते 15 में से 12 विधायकों को अपनी ओर खींच लिया था। कांग्रेस नेतृत्व अभी स्थिति की गम्भीरता को समझ नहीं पाया है क्योंकि पार्टी लगभग खत्म हो गई है।

अनुशासनहीनता व धड़ेबाजी
राजस्थान तथा मध्य प्रदेश, जहां पार्टी ने दिसम्बर 2018 में भाजपा से सत्ता छीन ली थी, में इसे अनुशासनहीनता तथा धड़ेबाजी का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी में पहले से ही दरारें नजर आ रही हैं। उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट का समर्थन करने वाले कुछ विधायक मांग कर रहे हैं कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की जगह पायलट को दी जानी चाहिए। अशोक गहलोत ने जोधपुर में अपने बेटे की पराजय का दोष पायलट के सिर मढ़ा है। मध्य प्रदेश में भी यह मांग की जा रही है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए। 

यह सब उस समय हो रहा है जब इन दोनों राज्यों में खुद सरकार के लिए खतरा है क्योंकि बहुमत का अंतर बहुत कम है। अस्थिरता का सामना करने वाला तीसरा राज्य है कर्नाटक, जहां जद (एस)-कांग्रेस गठबंधन सही तरह से काम नहीं कर रहा। यहां सरकार के गिरने का खतरा है। यदि कर्नाटक में सरकार गिरती है तो इससे कांग्रेस की छवि को और नुक्सान पहुंचेगा।
कांग्रेस, जिसने आजादी के बाद के 72 वर्षों में से 55 वर्षों तक भारत पर शासन किया, को अब लगातार 10 वर्षों, 2024 तक विपक्ष में बैठना पड़ेगा, जो इसके लिए ऐसा सबसे लम्बा समय है। कांग्रेस ने इंदिरा गांधी, राजीव गांधी तथा सोनिया गांधी के नेतृत्व के कारण अभी तक पराजयों के बावजूद वापसी की।

नेतृत्व बारे असमंजस
ऐसी शर्मनाक पराजयों के कारण गांधी परिवार को सतर्कतापूर्वक कदम उठाने होंगे। पहली बात, जैसा कि वरिष्ठ कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली का कहना है, इसे नेतृत्व को लेकर असमंजस दूर करना होगा। दूसरी है वर्तमान कांग्रेस शासित राज्यों को अस्थिरता से बचाना। कम से कम तीन राज्य राजस्थान, कर्नाटक तथा मध्य प्रदेश अस्थिरता के संकेत दिखा रहे हैं। तीसरी है पार्टी में अनुशासनहीनता तथा धड़ेबंदी पर रोक लगाना जैसा कि तेलंगाना, कर्नाटक, राजस्थान तथा मध्य प्रदेश में प्रत्यक्ष है। कमजोर राष्ट्रीय नेतृत्व के कारण राज्य इकाइयां विद्रोह करने की हिम्मत दिखाती हैं। चौथी है तेलंगाना तथा अन्य स्थानों पर पार्टी में क्षरण पर रोक लगाना। बिना कप्तान के डूबते हुए जहाज को और अधिक लोग छोड़ सकते हैं। पांचवीं है पार्टी का पुनर्गठन करना क्योंकि पार्टी की शीर्ष नीति निर्माण इकाई कांग्रेस कार्य समिति ने राहुल गांधी को ऐसा करने के लिए अधिकृत किया है। बहुत से राज्य स्तरीय प्रमुखों ने भी पराजय की जिम्मेदारी लेते हुए अपने इस्तीफे सौंपे हैं और यदि पार्टी दोबारा उठना चाहती है तो एक नया नेतृत्व आवश्यक है। अंतिम, कांग्रेस नेतृत्व को पार्टी कार्यकत्र्ताओं के गिरे हुए मनोबल को उठाना चाहिए।

अभी सब कुछ नहीं गंवाया
आखिरकार अभी सब कुछ नहीं गंवाया गया है और अगले 5 वर्षों के दौरान कई और विधानसभा चुनावों का सामना करना है। सबसे करीबी चुनौती है हरियाणा, महाराष्ट्र तथा झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव। इन सबके साथ पार्टी को आने वाले संसद सत्र में प्रभावपूर्ण तरीके से कार्रवाई करनी चाहिए तथा सभी विपक्षी दलों के साथ तालमेल  बनाकर विपक्ष का नेतृत्व सम्भालना चाहिए। कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी को अभी नामांकित करना है कि लोकसभा में पार्टी का नेता कौन होगा। बहुत से ऐसे लोग हैं जो महसूस करते हैं कि राहुल गांधी को यह जिम्मेदारी सम्भालते हुए संसद में पार्टी को चलाना चाहिए। अभी तक वह सदन में नियमित रूप से उपस्थित नहीं हो रहे थे। कभी-कभार ही बोलते थे।

सोनिया गांधी ने गत सप्ताह कांग्रेस संसदीय दल की पहली बैठक में आह्वान किया था कि ‘एक अप्रत्याशित संकट में अप्रत्याशित अवसर होता है। यह हम पर निर्भर करता है कि अपनी पराजय से उचित सबक लेकर विनम्रता तथा आत्मविश्वास के साथ इसे अपनी मु_ी में कर लें...अपने सामने खड़ी बहुत-सी चुनौतियों के सामने डटे रह कर हम फिर से उठ खड़े होंगे।’ हाशिए पर पहुंच चुकी कांग्रेस पार्टी निश्चित तौर पर पुरानी है मगर अब भव्य नहीं रही। बहुत से लोगों ने कांग्रेस के लिए शोक संदेश लिखे हैं मगर खुद को एक नए अंदाज में पेश करने तथा एक अच्छे नेतृत्व के अंतर्गत  पुनर्जीवित होने के लिए अभी भी पार्टी के पास समय है।    - कल्याणी शंकर   kalyani60@gmail.com 

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