एक महान ‘संगठनकत्र्ता’ थे दत्तोपंत ठेंगड़ी जी

Edited By ,Updated: 21 Sep, 2020 03:35 AM

dattopant thengdi was a great  organizer

जिस समय दिवंगत दत्तोपंत ठेंगड़ी जी, ने भारतीय मजदूर संघ की स्थापना की वह साम्यवाद के वैश्विक आकर्षण, वर्चस्व और बोलबाले का समय था। उस परिस्थिति में राष्ट्रीय विचार से प्रेरित शुद्ध भारतीय विचार पर आधारित एक मजदूर आंदोलन की शुरूआत करना तथा अनेक...

जिस समय दिवंगत दत्तोपंत ठेंगड़ी जी, ने भारतीय मजदूर संघ की स्थापना की वह साम्यवाद के वैश्विक आकर्षण, वर्चस्व और बोलबाले का समय था। उस परिस्थिति में राष्ट्रीय विचार से प्रेरित शुद्ध भारतीय विचार पर आधारित एक मजदूर आंदोलन की शुरूआत करना तथा अनेक विरोध और अवरोधों के बावजूद उसे लगातार बढ़ाते जाना यह पहाड़-सा कार्य था। श्रद्धा, विश्वास और सतत परिश्रम के बिना यह काम संभव नहीं था। तब उनकी कैसी मनोस्थिति रही होगी, समझने के  लिए एक दृष्टांत कथा का स्मरण होता है। 

अभी बसंत की बयार बहनी शुरू भी नहीं हुई थी। आम पर बूर भी नहीं आया था। तभी सर्द पवन के झोंकों के थपेड़ों को सहता हुआ एक जन्तु अपनी बिल से बाहर निकला। उसके रिश्तेदारों ने उसे बहुत समझाया कि अपने बिल में ही रह कर आराम करो। ऐसे समय बाहर निकलोगे तो मर जाओगे। पर उसने किसी की एक न सुनी। बड़ी ही मुश्किल से वह तो आम वृक्ष के तने पर चढऩे लगा। उधर आम के वृक्ष की डाल पर झूमते हुए एक तोते ने उसे देखा। अपनी चोंच नीचे झुकाते हुए उसने पूछा, ‘‘अरे ओ जंतु इस ठंड में कहां चल दिए?’’ 

‘‘आम खाने।’’ जंतु ने उत्तर दिया 
तोता हंस पड़ा। उसे वह जंतु मूर्खों का सरदार लगा। उसने तुच्छता से कहा, ‘‘अरे मूर्ख आम का तो अभी इस वृक्ष पर नामो-निशान नहीं है। मैं ऊपर-नीचे सभी जगह देख सकता हूं न।’’ ‘‘तुम भले ही देख सकते होगे’’ जंतु ने अपनी डगमग चाल चलते हुए कहा। ‘‘पर मैं जब तक पहुंचूंगा तब वहां आम अवश्य होगा।’’ इस जंतु के जवाब में किसी साधक की सी जीवन दृष्टि है। वह अपनी क्षुद्रता को नहीं देखता। प्रतिकूल संयोगों से वह घबराता नहीं है। धैर्य का कोई चिन्ह दिखाई नहीं देने के बावजूद उसे अपनी धैर्य प्राप्ति के विषय में सम्पूर्ण श्रद्धा है। अपने एक-एक कदम के साथ फल भी पकते जाएंगे। इस विषय में उसे रत्ती भर संदेह नहीं है। उसके रिश्तेदार या तोता चाहे कुछ भी कहें उसकी उसे परवाह नहीं है। उसके अंतर्मन में तो बस एक ही लग्र है और एक ही रटन। हरि से लागी रहो मेरे भाई, तेरी बनत बनत बन जाई। 

और आज हम देखते हैं कि भारतीय मजदूर संघ भारत का सर्वाधिक बड़ा मजदूर संगठन है। अच्छे संगठक का यह गुण होता है कि आप कितने भी प्रतिभावान क्यों न हों, अपने सहकारियों के विचार और सुझाव को खुले मन से सुनना और योग्य सुझाव का सहज स्वीकार भी करना। ठेंगड़ी जी ऐसे ही संगठक थे। जब श्रमिकों के बीच कार्य प्रारंभ करना तय हुआ तब उस संगठन का नाम भारतीय श्रमिक संघ ऐसा सोचा था। परन्तु जब इससे संबंधित कार्यकत्र्ताओं की पहली बैठक में यह बात सामने आई कि समाज के जिस वर्ग के बीच हमें कार्य करना है उनके लिए ‘श्रमिक’ शब्द समझना आसान नहीं होगा। कुछ राज्यों में तो इसका सही उच्चारण करने में भी दिक्कत आ सकती है इसलिए श्रमिक के स्थान पर ‘मजदूर’ जैसे आसान शब्द का प्रयोग करना चाहिए। उसे तुरन्त स्वीकार किया गया और संगठन का नाम ‘भारतीय मजदूर संघ’ तय हुआ। 

संगठन में काम करने का मतलब ‘मैं’ से ‘हम’ की यात्रा करना होता है। कत्र्तव्यवान व्यक्ति के लिए यह आसान नहीं होता है। वह अपने ‘मैं’ के प्रेम में पड़ता है। किसी तरह यह मैं व्यक्त होता ही रहता है। संतों ने ऐसा कहा है कि इस ‘मैं’ की बात ही कुछ अजीब है। वह अज्ञानी को छूता तक नहीं। पर ज्ञानी का गला ऐसे पकड़ लेता है कि इससे छूटना बड़ा कठिन होता है। पर संगठन में, संगठन के साथ और संगठन के लिए काम करने वालों को इससे बचना ही पड़ता है। ठेंगड़ी जी की एक और बात लक्षणीय थी कि वह सामान्य से सामान्य मजदूर से भी इतनी आत्मीयता से मिलते थे, उसके कंधे पर हाथ रख कर चहलकदमी करते हुए उससे बातें करते थे, किसी को भी नहीं लगता था कि वह एक अखिल भारतीय स्तर के नेता, विश्वविख्यात ङ्क्षचतक से बात कर रहा है बल्कि ऐसी अनुभूति होती थी कि वह अपने किसी अत्यंत आत्मीय बुजुर्ग, परिवार के ज्येष्ठ व्यक्ति से मिल रहा है। 

उनका अध्ययन भी बहुत व्यापक और गहरा था। अनेकों पुस्तकों के संदर्भ और अनेकों किस्से उनके साथ बातचीत में आते थे मगर एक बात जो मेरे मन को छू जाती है वह यह कि कोई एक किस्म का चुटकुला जो ठेंगड़ी जी ने अनेकों बार अपने वक्तव्य में बताया होगा वही किस्सा या चुटकुला यदि मेरे जैसा कोई अनुभवहीन, कनिष्ठ कार्यकत्र्ता उनको कहने लगता तो वह कहीं पर भी उसे ऐसा जरा-सा भी आभास नहीं होने देते थे कि वह यह किस्सा पहले से ही जानते हैं। अपना कार्य बढ़ाने की उत्कंठा, इच्छा और प्रयास रहने के बावजूद अनावश्यक जल्दबाजी नहीं करना यह भी श्रेष्ठ संगठक का गुण है। परम पूज्य श्री गुरु जी कहते थे कि धीरे-धीरे जल्दी करो। जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।

श्री ठेंगड़ी जी श्रेष्ठ संगठक के साथ-साथ एक दार्शनिक भी थे। भारतीय चिंतन की गहराइयों के विविध पहलू उनके साथ बातचीत में सहज खुलते थे। भारतीय मजदूर संघ और भारतीय किसान संघ इन संगठनों के अलावा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, स्वदेशी जागरण मंच, प्रज्ञा प्रवाह, विज्ञान भारती आदि संगठनों की रचना की नींव में ठेंगड़ी जी का योगदान और सहभाग रहा है। उन्होंने भारतीय कलादृष्टि पर जो निबंध प्रस्तुत किया  वह आगे जाकर संस्कार भारती का वैचारिक अधिष्ठान बना। श्री ठेंगड़ी जी की जन्मशती के मंगल अवसर पर उनकी पावन स्मृति को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।(लेखक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह-सरकार्यवाह हैं)-मनमोहन वैद्य

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