वायु प्रदूषण की मार से बढऩे लगे जानलेवा रोग

Edited By ,Updated: 21 Oct, 2021 03:20 AM

deadly diseases started increasing due to air pollution

खेतों में पराली जलाने और दीवाली का धूम-धड़ाका नजदीक आने से इन दिनों दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश समेत उत्तर भारत के सभी प्रदेशों में प्रदूषण का प्रकोप बढऩे का अंदेशा बनने लगा है। हवा में खतरनाक धातु और तत्वों का तैरना

खेतों में पराली जलाने और दीवाली का धूम-धड़ाका नजदीक आने से इन दिनों दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश समेत उत्तर भारत के सभी प्रदेशों में प्रदूषण का प्रकोप बढऩे का अंदेशा बनने लगा है। हवा में खतरनाक धातु और तत्वों का तैरना लोगों को जानलेवा बीमारियों में झोंकने का काम करता है। 

द एनर्जी एंड रिसोर्सिज इंस्टीच्यूट (टेरी) ने अक्तूबर 2019 और मौजूदा वर्ष में दिल्ली, लुधियाना, पटियाला, पंचकूला, जैसलमेर और विशाखापट्टनम में वायु स्थिति पर व्यापक अध्ययन किया है। नतीजा सामने आया है कि दिल्ली की वायु में साल-दर-साल सेहत के लिए खतरनाक धातुओं की मात्रा बढ़ी है। साल 2019 में जिंक (जस्ता) 379 से बढ़ कर बीते साल 615 एन.जी./ एम3 (वायु के नैनोग्राम प्रति घन मीटर) पहुंच गया है। लेड (सीसा) 233 से 406, मोलिब्डेनम 123 से 278, कैडमियम 8 से 21, मैंगनीज (सुरमा जैसा) 8 से 16, आर्सेनिक (संखिया) 2 से 11, निक्कल 0 से 5, सैलेनियम 0.6 से 3 और पारा 0 से 0.2  एन.जी/ एम3 बढ़ गया था। 

उल्लेखनीय है कि हवा में जस्ते की अधिक मात्रा बुखार, सीसे से गुर्दे, नाड़ी तंत्र, दिल व प्रजनन सम्बंधित परेशानियों, कैडमियम से फेफड़ों के कैंसर, गुर्दे व अस्थि रोग, संखिया से सांस की तकलीफ, हाई ब्लड प्रैशर, त्वचा रोग व मधुमेह और निक्कल फेफड़े-गले का कैंसर व सांस के रोगों को बढ़ावा देता है। 

बता दें कि वायु गुणवत्ता सूचकांक के निर्धारित मानकों के मुताबिक 0 से 50 अंक अच्छे हैं। फिर 51 से 100 अंक संतोषजनक, 101 से 200 मध्यम, 201 से 300 खराब, 301 से 400 बेहद खराब, 401 से 500 गंभीर और 501 से ऊपर अंक आपात स्थिति मानी जाती है। दिल्ली के द्वारका, पंजाबी बाग, नेहरू प्लेस, पटपडग़ंज और मुंडका में खराब स्थिति ही है। दिल्ली एन.सी.आर. के फरीदाबाद, गाजियाबाद और ग्रेटर नोएडा में भी वायु प्रदूषण सूचकांक खराब हालात यानी 201 से 300 अंक के बीच चल रहा है। आगे की स्थिति गम्भीर और आपात में पहुंचने को नाकारा नहीं जा सकता। 

वैज्ञानिक बताते हैं कि कुछ धातुएं इंसानी सेहत के लिए अत्यंत घातक होती हैं। टेरी की ताजा रिपोर्ट से जाहिर होता है कि दिल्ली और आसपास की आबोहवा इस कदर घातक हो चुकी है कि 75.4 फीसदी बच्चों को सांस की तकलीफ है। यही नहीं, 24.2 फीसदी बच्चों को आंखों की तकलीफ और 20.9 फीसदी बच्चों को सुबह उठते ही खांसी की शिकायत होती है। अन्य रोगों की तरह जानलेवा कैंसर के मरीजों की तादाद बढऩे का भय भी बहुत हो जाता है। भारत में कैंसर पहले ही अपने पंजे पसार रहा है। हर साल कैंसर के नए मामलों में इजाफा हो रहा है। वास्तव में, देश में आयु सीमा बढऩे के साथ कैंसर के रोगियों की संख्या भी बढ़ी है। देश में हर साल कैंसर के 14 लाख नए मरीज सामने आते हैं और कैंसर से सालाना मरने वालों की तादाद 8 लाख के आसपास है। आंकड़ों के मुताबिक देश में हर समय कैंसर के 42 लाख मरीज मौजूद होते हैं। 

वायु प्रदूषण के साथ जागरूकता की कमी भी कैंसर रोगियों की तादाद बढ़ाने का काम करती है। प्रदूषण के चलते सबसे ज्यादा मरीज फेफड़ों के  कैंसर से ग्रसित होते हैं। करीब 40 फीसदी कैंसर रोगी तो तम्बाकू के सेवन से कैंसर के शिकार होते हैं। पटना के एम्स के कैंसर विशेषज्ञ और एसोसिएट प्रोफैसर डा. अभिषेक शंकर तो जोर देकर अफसोस जताते हैं कि देश के इतिहास में तंबाकू बंद करवाने के लिए दिल्ली के रामलीला मैदान या जंतर-मंतर पर कभी कोई धरना या प्रर्दशन न होना अत्यंत निराशाजनक है। तो क्या मान लिया जाए कि भारतीयों को अपनी सेहत दुरुस्त रखने से सरोकार नहीं है? और फिर प्रदूषण से तो 60 फीसदी कैंसर रोगियों का सीधा नाता है। भवन निर्माण, ट्रैफिक, रबड़- प्लास्टिक, रंग- डाई वगैरह काम-धंधों से जुड़े लोग वायु प्रदूषण से ज्यादा शिकार होते ही हैं। 

दिल्ली ने तो प्रदूषण के विरुद्ध युद्ध का बिगुल बजा दिया है। बीते सालों के हालात के मद्देनजर दीवाली पर पटाखे बेचने और चलाने पर कोर्ट ने पहले ही सख्त रोक लगा दी है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आगाह किया है कि पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने का सिलसिला चालू हो गया है, जिससे दिल्ली समेत उत्तरी राज्यों में प्रदूषण बढ़ रहा है। प्रदूषण कम करने के लिए दिल्ली में तो हफ्ते में किसी एक दिन निजी वाहन की बजाय पब्लिक ट्रांसपोर्ट जैसे बस, मैट्रो या कार पूल करके सफर करने का कहा गया है। ट्रैफिक सिग्नल पर लाल बत्ती होने पर वाहनों के इंजन को ऑफ यानी बंद करके भी प्रदूषण कम करने के उपाय पर अमल किया जाने लगा है। हालांकि गनीमत है कि मौजूदा साल में फिलहाल पराली 60 फीसदी से भी कम जली है। 

पर्यावरण वन मंत्रालय ने उपग्रह के जरिए मिली छवियों के आधार पर बताया है कि बीते साल इन दिनों पराली जलाने की 4,850 से ज्यादा घटनाएं सामने आई थीं, जबकि इसी अवधि के दौरान अब की बार आधे से भी कम, पराली जलाने के 1,795 मामले देखे गए हैं। इसी के चलते दिल्ली की आबोहवा अभी बदतर हालत में पहुंचने से बची हुई है। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से भी बीते साल से कम पराली जलाने की खबरें हैं-क्रमश: करीब 65 फीसदी, 18 फीसदी और 48 फीसदी कम। 

हर साल सर्दियों में वायु प्रदूषण अपने चरम पर पहुंच जाता है। मध्य अक्तूबर से स्थिति बदतर होने लगती है। प्रमुख कारण यह है कि पंजाब और हरियाणा के किसान खेती की पराली बढ़-चढ़ कर जलाने लगते हैं। मॉनसून के बाद हवा के बदले बहाव के चलते मोटी तहों में गहरा धुआं आकाश में छाने लगता है। अभी कहना मुश्किल है कि आने वाले दिन कितनी भयावह स्थिति पैदा करते हैं। दिल्ली का सरकारी तंत्र तो पुख्ता इंतजाम करने में जुट ही गया है, इससे सबक लेकर हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश को भी फौरन ऐसे कुछ कारगर उपायों को अमल में लाने के लिए तेज कदम उठाने होंगे।-अमिताभ स.
 

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