दिल्ली पुलिस ‘साम्प्रदायिक’ बन चुकी है

Edited By ,Updated: 01 Mar, 2020 04:11 AM

delhi police has become communal

यदि मैं कमिश्नर होता तो मैं तत्काल ही अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा तथा कपिल मिश्रा को गिरफ्तार कर लेता। दिल्ली पुलिस साम्प्रदायिक बन चुकी है तथा यह सरकार के दिशा-निर्देश के अंतर्गत कार्य कर रही है। यह कहना है दिल्ली पुलिस के पूर्व कमिश्नर तथा...

यदि मैं कमिश्नर होता तो मैं तत्काल ही अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा तथा कपिल मिश्रा को गिरफ्तार कर लेता। दिल्ली पुलिस साम्प्रदायिक बन चुकी है तथा यह सरकार के दिशा-निर्देश के अंतर्गत कार्य कर रही है। यह कहना है दिल्ली पुलिस के पूर्व कमिश्नर तथा बी.एस.एफ. के पूर्व महानिदेशक अजय राज शर्मा का, जिन्होंने एक साक्षात्कार के दौरान ये बातें कहीं। उनका यह साक्षात्कार सरकार को गुस्सा दिला सकता है, दिल्ली पुलिस के कान खड़े कर सकता है। 

दंगों के दौरान बनाए गए वीडियोज के आधार पर ऐसा प्रतीत होता है कि दिल्ली पुलिस साम्प्रदायिक बन रही है। पुलिस के व्यवहार के वीडियो जो कि सोशल मीडिया में बांटे गए हैं, स्पष्ट तौर पर इस बात की व्याख्या करते हैं। उन्होंने कहा कि पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक ने एक कठिन समय झेला है मगर परीक्षा की इस घड़ी में वह असफल ही हुए हैं। शर्मा ने कहा कि पुलिस ने दिल्ली दंगों से प्रभावी ढंग से नहीं निपटा। हालातों से निपटने में असफल रहने का दिल्ली पुलिस का इतिहास पिछले दिसम्बर से दिखाई पड़ा जब उसने जामिया की घटनाओं को सही ढंग से नहीं निपटा। 

‘द वायर’ के लिए दिए गए साक्षात्कार के दौरान उन्होंने मुझसे कहा कि जस्टिस जोसफ पूरी तरह सही हैं जब उन्होंने 26 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि यहां पर बड़ी परेशानी पुलिस में व्यवसायिक विशेषता की कमी होना है। शर्मा ने आगे कहा कि पुलिस ने स्थिति को और बिगडऩे दिया तथा यह दंगों का रूप धारण कर गया। यदि पुलिस ने तत्काल कार्रवाई की होती तब इन दंगों को भड़कने से बचाया जा सकता था। पहली गलती जो पुलिस से हुई, वह यह थी कि उसने शाहीन बाग में प्रदर्शनकारियों को इकट्ठे होने की अनुमति दी। लोगों का इस तरह इकट्ठे होना कानून की उल्लंघना थी। यह सरकारी सम्पत्ति के ऊपर किया गया। किसी को अधिकार नहीं है कि वह सड़कों पर जाम लगाए तथा दूसरों के लिए रुकावट बने। यदि पुलिस ने पहले ही दिन शाहीन बाग प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई की होती तब स्थिति इतनी न बिगड़ती। शर्मा ने इस बात को पुलिस की दूसरी गलती माना। उन्होंने कहा कि यदि वह पुलिस कमिश्नर होते तब उन्होंने अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा तथा कपिल मिश्रा को तत्काल ही गिरफ्तार कर लिया होता। 

अनुराग ठाकुर के मामले में उन्होंने कहा कि गृह मंत्रालय को वह इसके बारे में सूचित करते। प्रवेश वर्मा के मामले में दिल्ली विधानसभा के स्पीकर को सूचित किया जाना चाहिए था, वहीं कपिल मिश्रा को लेकर उन्होंने कहा कि उनके बारे में किसी को सूचित करने की जरूरत ही नहीं थी।  डी.सी.पी. (उत्तर पूर्व) वेद प्रकाश सूर्य जोकि कपिल मिश्रा का पक्ष ले रहे थे जब मिश्रा आग उगलने वाली टिप्पणियां कर रहे थे, के बारे में बोलते हुए कहा कि उन्होंने उनको रोकने का कोई प्रयास नहीं किया। शर्मा ने कहा कि मैं सूर्य से तत्काल ही स्पष्टीकरण की मांग करता, यदि जवाब तसल्लीबख्श न मिलता तब मैं उन्हें तत्काल ही बर्खास्त कर देता। शर्मा ने यह भी माना कि पुलिस भाजपा से डरती है तथा यह सरकार के दबाव में कार्य कर रही है। 

साम्प्रदायिक दंगे दुश्मनों के हमले के बाद देश के लिए सबसे अहम चुनौती 
जस्टिस मुरलीधर पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि पुलिस ने दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस मुरलीधर के सवालों का अनुकूल जवाब नहीं दिया कि उसने अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा तथा कपिल मिश्रा के नफरत वाले भाषण के भड़काऊ वीडियो को नहीं देखा। शर्मा ने कहा कि स्पष्ट तौर पर यह गलत जवाब था। यदि कोई विशेष व्यक्ति अथवा कमिश्नर ऐसे वीडियोज को स्पष्ट तौर पर नहीं देखता तो बाकी का पुलिस बल इसे देखता। उन्होंने पुलिस के दावे को माना कि उसने वीडियो को नहीं देखा। इसका मतलब है कि पुलिस ने दिल्ली हाईकोर्ट को सच्चाई बयां नहीं की। शर्मा ने आगे कहा कि साम्प्रदायिक दंगे दुश्मनों के हमले के बाद देश के लिए सबसे अहम चुनौती हैं। यदि पुलिस ने तत्काल ही शनिवार शाम या फिर रविवार सुबह जब जाफराबाद में ङ्क्षहसा भड़की थी कार्रवाई की होती तो दंगों को रोका जा सकता था। यह स्पष्ट तौर पर पुलिस की अनदेखी तथा गैर जिम्मेदाराना रवैया है। 

जब उनसे पूछा गया कि सोशल मीडिया में ऐसे वीडियो के बारे में उनका क्या कहना है जिसमें दंगाई मुसलमानों की दुकानों को आग लगा रहे हैं और पुलिस मूकदर्शक बन उन्हें जन, गण, मन गाने के लिए बोल रही है, इसके बारे में शर्मा ने कहा कि उन्होंने हालांकि ऐसे वीडियोज को अभी तक नहीं देखा और यदि उनमें कोई सच्चाई है तो वह सही है जो यह सुझाता है कि दिल्ली में पुलिस साम्प्रदायिक हो चुकी है। उन्होंने कहा कि यह बात इसकी गवाह है कि दिल्ली पुलिस में परेशानी है जोकि इसे प्रभावित कर रही है। वर्तमान पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक  के बारे में शर्मा ने कहा कि उन्होंने बड़ी कठिन परीक्षा को झेला है मगर इसमें सफल नहीं हुए। पुलिस नेतृत्व के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस के पास नैतिक चरित्र की कमी है। 

पुलिस को राजनीतिक दखलअंदाजी से अलग रखना चाहिए
शर्मा ने एन.एस.ए. डोभाल की बात को भी माना कि लोग वर्दीधारी लोगों पर भरोसा नहीं करते। पुलिस ने जामिया तथा जे.एन.यू. में सही ढंग से स्थिति से नहीं निपटा। हाल ही के दिन दिल्ली पुलिस के लिए कठिन समय के दिन थे। उन्होंने आगे कहा कि पुलिस को राजनीतिक दखलअंदाजी से अलग रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि उनकी राय में मुख्यमंत्री को अपने चहेतों की डी.जी.पी. पद पर नियुक्ति नहीं करनी चाहिए। दूसरी बात यह है कि प्रत्येक पुलिस अधिकारी का एक निश्चित कार्यकाल होना चाहिए जिसे कि कुछ विशेष कारणों से ही छोटा किया जा सकता हो। उन्होंने आगे कहा कि यदि 2006 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देशों को सही तथा प्रभावी ढंग से लागू किया गया होता तो पुलिस बल की स्वतंत्रता में एक बड़ा बदलाव आया होता। 

पुलिस को राजनीतिक समर्थन नहीं चाहिए और उसकी ट्रेनिंग भी सही ढंग से होनी चाहिए। सबसे अहम बात यह है कि स्थानीय पुलिस थानों में कार्यरत पुलिस कांस्टेबलों से ही लोगों का पहला संबंध स्थापित होता है। उन्हें सही ढंग से शिक्षित तथा प्रशिक्षित किया जाना चाहिए ताकि वे दोस्ताना व्यवहार से लोगों से पेश आएं। इसकी तुलना में उन्होंने ब्रिटिश पुलिस कर्मियों का उदाहरण दिया जिन्हें कि बॉबीज कहा जाता है जबकि भारतीय पुलिस कर्मी को शक तथा डर की निगाह से देखा जाता है।-करण थापर
            

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