‘रेगिस्तान’ जैसी अर्थव्यवस्था में ‘हरियाली’ ढूंढ रही सरकार

Edited By ,Updated: 06 Sep, 2020 03:58 AM

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सरकार द्वारा 2019-20 तथा उसके बाद की बातों के माध्यम से एक झूठी कहानी गढ़ी गई। इसके बारे में केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सी.एस.ओ.) ने खुलासे किए हैं। इस लेख में कुछ कड़े शब्द होंगे मगर वास्तविकताएं इससे भी ज्यादा कड़ी हैं। ध्यान न देने वाली सरकार की...

सरकार द्वारा 2019-20 तथा उसके बाद की बातों के माध्यम से एक झूठी कहानी गढ़ी गई। इसके बारे में केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सी.एस.ओ.) ने खुलासे किए हैं। इस लेख में कुछ कड़े शब्द होंगे मगर वास्तविकताएं इससे भी ज्यादा कड़ी हैं। ध्यान न देने वाली सरकार की अवहेलना बहुत ज्यादा उत्तेजक हो चली है तथा लोगों की मुसीबतें इतनी बढ़ गई हैं कि लोगों को कड़े शब्दों के इस्तेमाल के प्रति बाध्य होना पड़ रहा है। ऐसी मंशा किसी अपराध को करने की नहीं बल्कि उनके लिए बिगुल फूंकने जैसा है जो सत्ता में हैं तथा जो लोग सत्ता में बैठे लोगों का समर्थन कर रहे हैं। 

सी.एस.ओ. द्वारा जारी अप्रैल-जून 2020 तिमाही के लिए जी.डी.पी. का अनुमान एक विकट कहानी के बारे में बताता है। पहली तिमाही में जी.डी.पी. भारी-भरकम दर 23.9 प्रतिशत द्वारा गिर गई। इसका मतलब है कि 30 जून 2019 तक पहली तिमाही ग्रॉस डोमैस्टिक आऊटपुट पिछले 12 माह के दौरान बिल्कुल चौपट हो गई। यह ध्यान देने योग्य बात है कि जब आऊटपुट खत्म हो जाती है तो रोजगार जो उस उत्पादन को उत्पन्न करता है वह भी खत्म हो जाता है। आय जो रोजगार उपलब्ध करवाती है वह भी खत्म हो जाती है और उस आय पर आश्रित परिवारों को भी सब झेलना पड़ता है। 

एक अनुमान के अनुसार सी.एम.आई.ई. द्वारा जुटाए गए अनुमान जोकि आॢथक मंदी तथा महामारी के बीच के हैं अपने शिखर पर थे। इस दौरान 121 मिलियन नौकरियां चली गईं। इसमें नियमित वेतन वाले रोजगार, अस्थायी नौकरियां तथा स्व-रोजगार शामिल था। यदि आप वास्तविकता चाहते हैं तब आपको अपनी गली या फिर पड़ोस के घरेलू लोगों से सवाल पूछने होंगे। 

भारत में 23.9 प्रतिशत पर सबसे ज्यादा प्रभावित अर्थव्यवस्था अप्रैल-जून 2020 के दौरान रही। इसका दोष परमात्मा पर न मढ़ें। वह क्षेत्र जिसने वृद्धि पाई केवल कृषि, वन तथा मछली पालन था। इनकी वृद्धि दर 3.4 प्रतिशत की रही। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जिन्होंने आर्थिक ढलान के लिए परमात्मा को जिम्मेदार ठहराया, किसानों तथा देवताओं का धन्यवाद और आभारी होना चाहिए जिन्होंने किसानों को आशीर्वाद दिया। अर्थव्यवस्था का प्रत्येक क्षेत्र तेजी से धड़ाम हुआ। विनिर्माण 39.3 प्रतिशत की दर से गिर गया, निर्माण 50.3 प्रतिशत तथा ट्रेड, होटल, परिवहन तथा संचार 47.0 प्रतिशत की दर से गिर गया। ऐसे अनुमान उस व्यक्ति को आश्चर्यचकित नहीं करेंगे जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था की निकट से समीक्षा की है। कई अर्थशास्त्रियों तथा आर.बी.आई. ने अपनी वाॢषक रिपोर्ट जोकि पिछले सप्ताह जारी की, द्वारा भविष्यवाणी की गई थी। आर.बी.आई. के कुछ निष्कर्षों पर नजर दौड़ाएं : 

-उच्च आवर्ती सूचक जो अभी तक व्यय में कमी के ङ्क्षबदुओं को दर्शाते हैं वह इतिहास में अभूतपूर्व हो चुके हैं। 
-जी-20 देशों के लिए कुल प्रोत्साहन पैकेज (नकदी और वित्तीय उपाय) जी.डी.पी. का 12.1 प्रतिशत है। भारत का वित्तीय प्रोत्साहन करीब 1.7 प्रतिशत है। 
-उपभोग में झटका बहुत ज्यादा घातक है और कोविड-19 से पहले वाली गति पाने के लिए इसे कुछ समय लगेगा।
-ज्यादातर प्रतिवादियों (आर.बी.आई. के सर्वे में) ने आम आॢथक हालातों, रोजगार, मंदी तथा आय से संबंधित निराशा जताई है। 

ढोंग करती है मोदी सरकार
भारत की स्थिति अन्य  देशों की तुलना में अलग है क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था में गिरावट कोविड-19 के पहले केस के पाए जाने से पहले ही शुरू हो गई थी। यह गिरावट नोटबंदी के साथ शुरू हुई थी। 2018-19 तथा 2019-20 में लगातार 8 तिमाहियों के लिए जी.डी.पी. वृद्धि प्रत्येक तिमाही में गिर गई। यह 8.2 प्रतिशत की ऊंचाई से 3.2 प्रतिशत तक आ गई।  इस प्वाइंट को असंख्य बार दर्शाया गया है मगर सरकार ढोंग करती है कि भारत की विश्व में सबसे तेजी से वृद्धि करने वाली अर्थव्यवस्था है। 

ऐसे रेगिस्तान में जहां पर दूर-दूर तक पानी दिखने का कोई संकेत नहीं है, वित्त मंत्री तथा प्रमुख आॢथक सलाहकार हरियाली ढूंढ रहे हैं। हम अभी भी एक अंधेरी सुरंग में हैं। कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि हमें इसी में से अपनी राह को तलाश करना है। सरकार ने गिरावट, मांग/उपभोग में तेजी लाना तथा रोजगार के उत्पादन को पुनर्जीवित करने के लिए कुछ वित्तीय उपाय किए। यहां पर खर्च महत्वपूर्ण है जोकि सरकारी तथा प्राइवेट उपभोग खर्च कहा जा सकता है। जब तक पैसा खोजा जाता है या खर्च किया जाता है यह नहीं मायने रखता कि किसके नेतृत्व के अधीन कितना खर्च किया गया। सरकार पैसे के स्रोत जैसे विनिवेश, एफ.आर.डी.एम. एक्ट के तहत लिमिट में छूट देकर ज्यादा ऋण मांग कर खोज सकती है। आई.एम.एफ., वल्र्ड बैंक ग्रुप, ए.डी.बी. तथा अन्य द्वारा जुटाए फंडों से महामारी से लड़ सकते हैं। 

तीन बड़े कदम
पैसे का हिस्सा गरीबों को कैश में स्थानांतरित किया जाए। मूलभूत ढांचे में सरकारी पूंजी खर्चे का इस्तेमाल होना चाहिए। पैसे के कुछ हिस्से का इस्तेमाल जी.एस.टी. मुआवजे गैप को भरने के लिए हो। पैसे के कुछ हिस्से का इस्तेमाल बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के लिए किया जाए। गरीब परिवारों के घरों तक खाद्यान्न पहुंचाया जाए जिसके कि ऊंचे-ऊंचे पहाड़ बन चुके हैं। लोक कार्यों को शुरू करने के लिए मजदूरी का भुगतान किया जाए। इस वर्ष अच्छी फसल होने के चलते हमारे खाद्यान्न गोदाम फिर से भर जाएंगे। 

तीसरा बड़ा कदम शक्तियों का विकेंद्रीयकरण हो। राज्यों को और शक्तियां दी जाएं और उन्हें वित्तीय रूप से सुदृढ़ किया जाए। केंद्र सरकार को कृषि उत्पादन, मार्कीटिंग, जरूरी वस्तुओं की निरंतर सप्लाई तथा डिस्ट्रिक सैंट्रल तथा अर्बन को-आप्रेटिव बैंकों पर नियंत्रण में दखलअंदाजी के प्रयास को खत्म करना चाहिए। एक राष्ट्र सब कुछ एक-एक बहुत बुरा विचार है।-पी. चिदम्बरम
 

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