‘असंतोष ने राष्ट्रों के इतिहास को आकार दिया है’

Edited By ,Updated: 14 Feb, 2021 05:48 AM

dissatisfaction has shaped the history of nations

1970 में जब सर्वोच्च न्यायालय ने रियासतों के पूर्व शासकों को दिए जाने वाले वित्तीय लाभ को वापस लेने के कार्यकारी आदेश को रद्द कर दिया तो एक अन्य युवा अधिवक्ता और मैं तमिलनाडु कांग्रेस में शामिल हो गए। चेन्नई में भगवान मुनरो की प्रतिमा के निकट हमने...

1970 में जब सर्वोच्च न्यायालय ने रियासतों के पूर्व शासकों को दिए जाने वाले वित्तीय लाभ को वापस लेने के कार्यकारी आदेश को रद्द कर दिया तो एक अन्य युवा अधिवक्ता और मैं तमिलनाडु कांग्रेस में शामिल हो गए। चेन्नई में भगवान मुनरो की प्रतिमा के निकट हमने फैसले के खिलाफ हुए प्रदर्शन में भाग लिया। हमें गिरफ्तार किया गया और कुछ समय बाद रिहा कर दिया गया। जब वित्तीय लाभों को अंतिम तौर पर संविधान में संशोधन के द्वारा समाप्त कर दिया गया था तो हमने माना कि हमारे विरोध (और गिरफ्तारी) ने संशोधन का नेतृत्व किया था और हम आक्रोषित हो गए थे। 

हमारा विरोध सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ था। देश के विभिन्न भागों में इसी तरह के विरोध-प्रदर्शन हुए थे। सर्वोच्च न्यायालय ने हमें अदालत की अवमानना के लिए दोषी नहीं ठहराया था। न ही किसी ने हमें राष्ट्रविरोधी करार दिया था और किसी भी पुलिस एजैंसी ने हम पर देश द्रोह का आरोप नहीं लगाया। उन्हें आशीर्वाद दिया जाना चाहिए। 

असंतोष की प्रकृति
एक संतुष्ट मन एक सोच वाले व्यक्ति से संबंध रखता है। महान न्यायाधीश अंसतुष्ट बन रहे हैं-जस्ट्सि फ्रैंकफ्रटर, जस्ट्सि सुब्बा राव, जस्ट्सि एच.आर. खन्ना और अन्य असंतुष्ट बन चुके हैं। खंडपीठ के न्यायाधीश जो कभी-कभी पीठ पर अन्य न्यायाधीशों में शामिल हो जाते हैं एक अल्पसंख्यक निर्णय लिखते हैं। जिसे कानून की पाश्विक भावना, भविष्य के दिनों की बुद्धिमता के लिए अपील के रूप में वॢणत किया गया था। खेल के क्षेत्र में एक झुकी हुई मुट्ठी को उठाकर असंतोष व्यक्त किया जाता है। एक व्यावसायिक उद्यम में असंतोष कार्य नियम या हड़ताल का रूप ले लेता है। 

राजनीति और सार्वजनिक जीवन में असंतोष को विरोध के रूप में व्यक्त किया जाता है। कुछ विरोध व्यापक समर्थन हासिल करते हैं और एक आंदोलन बन जाते हैं। कई बार हजारों की गिनती में लोग एक आंदोलन में आ जाते हैं। सभी आंदोलनकारी एक कारण के लिए भावुक होते हैं। कई लोग पीड़ित होने और अपना बलिदान करने के लिए तैयार रहते हैं। कुछेक स्वार्थी होते हैं तथा एक मु_ीभर लोग रणनीति तैयार करते हैं। अंतिम नाम ‘आंदोलनजीवी’ का जुड़ा है जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 8 फरवरी को राज्यसभा में बोलते हुए इस तरह के रूप में नामांकित किया था। 

महान आंदोलनकारी
20वीं सदी के पहले भाग में आंदोलनजीवी बिना सवाल के महात्मा गांधी थे। उन्होंने सहज रूप से सही कारणों को उठाया जिनमें नील की खेती (इंडिगो) और नमक कर शामिल थे। गांधी एक शब्द शाही थे और उन्होंने शब्दों के साथ एक सशक्त संदेश ‘भारत छोड़ो’ और ‘सत्याग्रह’ दिया। गांधी चिन्हों की शक्ति में विश्वास करते थे जिनमें एक मुठ्ठी नमक और खादी (हाथ से काता हुआ और हाथ से बुना हुआ) कपड़े शामिल थे। स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने नए हथियार बनाए जो अनिश्चितकालीन उपवास और डांडी मार्च था। उन्होंने भजन और प्रार्थना सभाओं का इस्तेमाल किया। स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का नेतृत्व करने के लिए उनके मन में बहुत सारे विचार आए होंगे। महात्मा गांधी मूल आंदोलनजीवी थे इसीलिए हमें गर्व है कि हम उन्हें राष्ट्रपिता के नाम से बुलाते हैं। 

अंसतोष ने राष्ट्रों के इतिहास को आकार दिया है। असंतोष ने नए धर्मों को जन्म दिया है। असंतोष ने ही लाखों लोगों को मुक्त किया है। जार निकोलस द्वितीय के त्याग के बाद स्थापित अंतरिम सरकार के खिलाफ लेनिन ने विद्रोह किया और पहले कम्युनिस्ट राष्ट्र का जन्म हुआ। सिद्धार्थ, गौतम, गुरु नानक  देव जी तथा माॢटन लूथर उस धार्मिक व्यवस्था से विमुख हो गए जिसमें वह पैदा हुए और उन्होंने एक नए सुधारवादी धार्मिक व्यवस्था की स्थापना की। उनके लिए बौद्ध धर्म, सिख धर्म और प्रोटैस्टैंटवाद के जन्म को मानते हैं। मार्टिन लूथर किंग जूनियर के प्रचलित सामाजिक व्यवस्था पर असंतोष और आंदोलन से लाखों अश्वेत अमरीकियों को मुक्त करवाया गया। उनका कहना ‘‘मेरे पास एक सपना है’’ अमरीकियों के विवेक के लिए एक अपील थी। 

20वीं शताब्दी के पहले भाग : 1920, 1930 और 1942 के पहले भाग में भारत ने कम से कम 3 जल विभाजन देखे। प्रत्येक एक वर्ष में एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन चिन्हित किया गया था जो मूल रूप से एक आंदोलन बन गया और स्वतंत्रता के संघर्ष में बदल गया। असहयोग आंदोलन सविनय अवज्ञा आंदोलन में विकसित हुआ और भारत छोड़ो आंदोलन में बदल गया जो ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत के लिए अंतिम कील साबित हुआ। आंदोलन का सही अर्थ प्रदर्शन नहीं बल्कि आंदोलन है। 

अन्य देशों में भी लोगों के आंदोलनों के उदाहरण हैं। अमरीका में (1968) विश्व विद्यालय परिसरों में हुए वियतनाम के खिलाफ युद्ध विरोधों ने अमरीकी सरकार के झूठ का पर्दाफाश किया और कुछ ही वर्षों में अमरीका ने दक्षिण वियतनाम से शर्मनाक वापसी की और इसके बाद वियतनाम एकजुट हुआ। 

वैल्वेट क्रांति और रोमानियाई क्रांति 1989 ने लम्बे समय तक चले सत्तावादी शासन को उखाड़ फैंकने में सफलता हासिल की। मिस्र में (2011) अरब स्प्रिंग जैसे कुछ आंदोलन असफल हुए। इन आंदोलनों का स्थायी सबक यह है कि मानवीय आत्मा बेहतरी के लिए बदलाव चाहती है और इसे हमेशा के लिए दबाया नहीं जा सकता। 

स्वतंत्रता कायम रहेगी
यहां पर नागरिकों के राजनीतिक अधिकारों, नागरिक स्वतंत्रता और प्रैस स्वतंत्रता के बीच एक दिलचस्प संबंध है। ऐसा देश जो नागरिकों के अधिकारों के मामले में उच्च रैंक रखता है उसके पास एक बेहतर प्रैस स्वतंत्रता स्कोर भी होगा। यह निष्कर्ष तर्कसंगत है क्योंकि यह मीडिया है जो नागरिकों के अधिकारों के दावे को दर्शाता है और उन्हें आगे बढ़ाता है (या विकृत करता है और या कम करता है)। दोनों स्कोर कार्ड के मामले में फिनलैंड और अनेकों यूरोपियन देश शीर्ष पर हैं। निचले पायदान पर चीन और भारत कहीं मध्य में है। 

उम्मीद है कि भारत का स्कोर बढ़ेगा और डर यह है कि इसमें गिरावट होगी। एडिटर्ज गिल्ड या प्रैस क्लब ऑफ इंडिया से पूछें। प्रत्येक 15 दिनों या उसके बाद वे पत्रकारों की गिरफ्तारी या फिर मीडिया संगठन पर छापेमारी के खिलाफ शिकायत करते हैं और अंतत: वे अपने ‘मास्टर की आवाज’ बन जाते हैं और आत्मसमर्पण कर जाते हैं। रामनाथ गोयंका एक समाचार पत्र के अंतिम निडर मालिक थे और एक आंदोलनजीवी थे। आंदोलनजीवी उन सब पर प्रबल होंगे जो बोलने, लिखने, अभिव्यक्ति, असंतोष, प्रदर्शन और आंदोलन को दबाना चाहते हैं।-पी. चिदम्बरम

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