शैक्षिक संस्थानों को ‘जेहादी-नक्सली गठजोड़’ से मुक्त करवाने की जरूरत

Edited By ,Updated: 02 Mar, 2017 10:49 PM

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देश में वैचारिक युद्ध चल रहा है एक तरफ अभिव्यक्ति की आजादी

देश में वैचारिक युद्ध चल रहा है। एक तरफ अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश विरोधी नारे लगाने वाले  ‘छद्म  आजादी ब्रिगेड’  के छात्र तथा उनके समर्थक हैं तो दूसरी तरफ ‘भारत माता की जय’ कहने वाले हैं। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पिछले साल लगे ‘कश्मीर मांगे आजादी’, ‘अफजल हम शॄमदा हैं’ तथा ‘तुम कितने याकूब मारोगे, हर घर से याकूब निकलेगा’  जैसे नारों से  यह जंग छिड़ी थी, जो थोड़े दिन ठंडी रहने के बाद रामजस कालेज प्रकरण से फिर भड़कउठी है। रामजस कालेज में  देशद्रोह के आरोपी छात्र नेता उमर खालिद को बुलाने के विरोध में विद्यार्थी परिषद ने प्रदर्शन किया जिसमें मारपीट हुई। 

यह हिंसा किसने शुरू की और कौन इसका जिम्मेदार है, इसका निर्णय तो न्यायालय करेगा, पर इस हिंसा के लिए विद्यार्थी परिषद को जिम्मेदार ठहराने वाला वीडियो पोस्ट कर एक छात्रा गुरमेहर कौर ने अभिव्यक्ति की आजादी का बिगुल बजा दिया। ‘लाल ब्रिगेड’  के लिए तो यह वीडियो एक वरदान बनके आया क्योंकि यह छात्रा एक शहीद की बेटी है। पिछले एक साल से अपने देश विरोधी नारों के कारण रक्षात्मक रुख अपनाने वाली यह ब्रिगेड एकदम आक्रामक हो गई क्योंकि अब उन्हें एक सुरक्षा कवच मिल गया था। 

देश के सारे वामपंथी, लाभ के पद गंवाने से कुंठित बुद्धिजीवी और राजनीतिक रसातल में जा चुके राजनीतिक नेता इस ब्रिगेड के हक में मैदान में आ डटे हैं। एक साल के बनवास के बाद अवार्ड वापसी और असहिष्णुता वाला गैंग भी पूरे जलाल पर है। मीडिया का एक बड़ा तबका जो विदेशी धन पर पलता है, ऐसा वातावरण बनाने में लग गया है जैसे इस देश में बोलने की आजादी को सच में कुचला जा रहा है। 

क्या सच में ऐसा है? आइए जरा विस्तार से चर्चा करते हैं। बात गुरमेहर से शुरू करूंगा जिसको केंद्र में रख कर यह पूरा युद्ध लड़ा जा रहा है। वैसे तो भारत  की हर बेटी सम्मान योग्य है पर एक शहीद की बेटी होने के नाते इसके लिए मन में सम्मान और बढ़ जाता है। मैं उसकी अभिव्यक्ति की आजादी का पुरजोर समर्थन करता हूं। जिन लोगों ने सोशल मीडिया पर उसको धमकी दी है उन्हें सख्त सजा मिलनी ही चाहिए और मुझे विश्वास है जरूर मिलेगी, जल्दी मिलेगी। मैं नहीं जानता  कि  जिस कार्यक्रम का वह अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर समर्थन कर रही है, उसमें लगने वाले नारे उसने सुने या नहीं। 

हाल ही में रामजस कालेज का वीडियो भी मीडिया में आया है जिसमें जे.एन.यू. की तर्ज पर ही ‘कश्मीर मांगे आजादी’, ‘बस्तर मांगे आजादी’ के नारे लग रहे हैं। किससे आजादी चाहिए इन्हें, निश्चित ही भारत से। जिस कश्मीर को बचाने की खातिर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों से लोहा लेते गुरमेहर के पिता कैप्टन मनदीप सिंह  शहीद हो गए, आज उस कश्मीर की आजादी के नारे लगाने वालों का समर्थन जाने-अनजाने वह कर रही है, इस बात से मन दुखी जरूर है। 

हाल ही में महाराष्ट्र के एक सैनिक का युवाओं के एक कार्यक्रम में दिए भाषण का वीडियो वायरल हुआ है। अपने दिल का दर्द बयान करते हुए यह सैनिक कह रहा है कि हम सीमा पर देश के लिए शहीद होने को तैयार रहते हैं पर दुख होता है जब जे.एन.यू. जैसे विश्वविद्यालय में देश विरोधी नारे लगते हैं और उससे भी ज्यादा दुख होता है जब लाखों लोग उनके पीछे खड़े हो जाते हैं। यह देश के हर सैनिक का दर्द है, आज कैप्टन मनदीप होते तो शायद उन्हें भी इसी दर्द को सहन करना पड़ता। गुरमेहर को यह वीडियो जरूर देखना चाहिए, बाकी निर्णय मैं उसकी समझदारी पर छोड़ता हूं। 

अब देश के उस बुद्धिजीवी वर्ग की बात करते हैं जो अभिव्यक्ति की आजादी का ढोल पीट रहे हैं। उनसे मेरा सीधा सवाल है कि  क्या यह आजादी सिर्फ देश विरोधी नारे लगाने वालों के लिए है? जावेद अख्तर जब देश का सम्मान बढ़ाने वाले योगेश्वर दत्त और बबिता फोगाट को अपनी राय देने के लिए अनपढ़ खिलाड़ी कह कर अपमानित करते हैं तो क्यों कोई आवाज नहीं उठती? माफ करें जावेद साहिब, देश के लिए मैडल जीतने वाले आप जैसे महानुभावों से कहीं ज्यादा सम्मान के हकदार हैं। 

जब तस्लीमा नसरीन जैसी विश्वविख्यात लेखिका को धमकियां मिलती हैं, बोलने नहीं दिया जाता तो क्यों यह असहिष्णुता ब्रिगेड सड़कों पर नहीं निकलती? महिला सम्मान के लिए मगरमच्छी आंसू बहाने वाले ट्रिपल तलाक के खिलाफ मुंह से एक शब्द क्यों नहीं निकालते? दो दिन पहले ही इस विषय पर जामिया मिलिया विश्वविद्यालय में एक सैमीनार में बोलने हेतु जाने पर शाजिया इल्मी का बहिष्कार जब हुआ तो क्यों इनकी आवाज नहीं निकली? क्या देश में अभिव्यक्ति की आजादी सिर्फ एक वर्ग विशेष का हक है? अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर जेहादियों और नक्सलियों को महिमामंडित करने का काम बंद होना चाहिए।

आखिर में ‘छद्म आजादी ब्रिगेड’ की बात करते हैं। उनको यह बात स्पष्ट समझ लेनी चाहिए कि ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह’ के नारे लगाने की आजादी उन्हें न थी, न है और न मिलेगी। जब भी यह नारा देश के किसी भी कोने में लगेगा, उसका जवाब निश्चित मिलेगा। अब मुझे कोई असहिष्णु कहे या फासीवादी, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन मैं पुरजोर यह बात कहूंगा कि देश विरोधी इन्फैक्शन को विश्वविद्यालयों और कालेजों में नहीं फैलने दिया जा सकता। हमारे शैक्षिक संस्थान राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक विषयों पर बहस करने के प्लेटफार्म बनने चाहिएं पर इन्हें देश विरोधी ताकतों के लिए समर्थन जुटाने का मंच नहीं बनने दिया जा सकता। शैक्षिक संस्थानों को इस जेहादी-नक्सली गठजोड़ से मुक्त करवाना ही होगा। (ये लेखक के निजी विचार हैं, इनसे हमारा सहमत होना जरूरी नहीं)     

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