बगदादी के बाद भी ‘आई.एस. की हिंसा’ खत्म होने की उम्मीद नहीं

Edited By ,Updated: 29 Oct, 2019 01:04 AM

even after baghdadi  is  violence not expected to end

हिंसा बरपाने, निर्दोष जिंदगियों को मौत की नींद सुलाने, मुस्लिम हिंसा से दुनिया को दहलाने, अपने आप को अल्ला के अलावा और किसी से न डरने व झुकने का दावा करने वाले मुस्लिम आतंकवादी, आतंकवादी सरगना खुद अपने अंत से डरते हैं और अपनी औलादों को सुरक्षित रखने...

 हिंसा बरपाने, निर्दोष जिंदगियों को मौत की नींद सुलाने, मुस्लिम हिंसा से दुनिया को दहलाने, अपने आप को अल्ला के अलावा और किसी से न डरने व झुकने का दावा करने वाले मुस्लिम आतंकवादी, आतंकवादी सरगना खुद अपने अंत से डरते हैं और अपनी औलादों को सुरक्षित रखने के प्रति सचेत रहते हैं। यह सब उस समय भी सच साबित हुआ था जब अमरीका ने अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता को उखाड़ फैंका था। 

अमरीकी सैनिकों के डर से तालिबान बिना लड़े अफगानिस्तान से भाग खड़ा हुआ था और बाद में उसके नेता मुल्ला उमर की गुमनामी के दौर में मौत हो गई थी। यह सब उस समय भी सच साबित हुआ था जब पाकिस्तान की सैनिक छावनियों के बीच छिपकर रहने वाला अलकायदा का सरगना ओसामा बिन लादेन अमरीका के हाथों मारा गया था जोकि अपनी दो बीवियों और बच्चों के साथ भयभीत जिंदगी बिता रहा था। 

ठीक इसी प्रकार अभी-अभी अमरीका के हाथों मारा गया अल बगदादी कायर निकला जो अपनी जिंदगी बचाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रहा था। जब अमरीकी सैनिकों ने उसे एक आप्रेशन के दौरान घेरा तो वह अपनी दो बीवियों और तीन बच्चों के साथ एक सुरंग में जा छिपा। वह जानता था कि अमरीकी सैनिक उसे जिंदा छोडऩे वाले नहीं हैं, वह अपनी जिंदगी बचाने के लिए लगातार रो रहा था। अमरीकी सैनिकों का उसने सामना करने का साहस नहीं दिखाया और बीवी-बच्चों सहित उसका अंत हो गया। 

अमरीका की उपलब्धि
मुल्ला उमर, ओसामा बिन लादेन, अल जवाहिरी के बाद अल बगदादी का मारा जाना अमरीका की महान उपलब्धि है। दुनिया के नकारात्मक समूह अमरीका की जितनी भी आलोचना कर लें पर एक बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि जहां भी लोकतंत्र को खारिज किया जाता है, हिंसा सिर उठाती है, वहां पर किसी न किसी तौर पर अमरीका इसके खिलाफ खड़ा होता है। मुस्लिम आतंकवाद को ही ले लीजिए। 

दुनिया में जहां भी मुस्लिम आतंकवाद हिंसापूर्ण ढंग से शांति का दुश्मन बन बैठा है, निर्दोष जिंदगियों को गाजर-मूली की तरह काटने के लिए सक्रिय है वहां पर अमरीका की दमदार उपस्थिति मुस्लिम आतंकवाद के लिए एक अवरोधक, एक संहारक के तौर पर खड़ी है। यह उदाहरण हमने अफगानिस्तान, लीबिया और सीरिया में अभी-अभी अल बगदादी के अंत के तौर पर देखा है। अपनी अर्थव्यवस्था की परवाह नहीं करते हुए मुस्लिम आतंकवाद के खिलाफ अमरीका लगातार संघर्ष कर रहा है। अमरीकी गुप्तचर कामयाबी भी बेजोड़ है, उसकी वीरता का ही प्रमाण है कि मुस्लिम आतंकवाद के सरगना लगातार मारे जा रहे हैं। अमरीका ने पहले ईराक में आई.एस. को जमींदोज किया और अब सीरिया में भी आई.एस. का सफाया करने के लिए पराक्रम का प्रदर्शन कर रहा है। 

प्रत्यारोपित मानसिकताएं मुस्लिम आतंकवाद की प्रेरणास्रोत, ढाल बन जाती हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि ऐसी मानसिकताएं जानबूझ कर प्रत्यारोपित कराई जाती हैं। मानसिकताएं पसारी जाती हैं कि यह अमरीका और यूरोप की उपनिवेशवाद के खिलाफ लड़ाई है, जबकि सच्चाई यह है कि मुस्लिम आतंकवाद इस्लाम की काफिर मानसिकता से निकली हिंसा, राजनीति है। 

तालिबान का सरगना मुल्ला उमर, अलकायदा का सरगना ओसामा बिन लादेन, अल जवाहिरी और आई.एस. का अभी-अभी मारा गया सरगना अल बगदादी सभी बार-बार कहते थे कि उनकी लड़ाई अल्ला के शासन यानी कि इस्लाम की सत्ता स्थापित करने की है। दुनिया को एक न एक दिन इस्लाम के झंडे के नीचे आना ही होगा, जो नहीं आएगा उसके खाते में सिर्फ और सिर्फ मौत आएगी। फिर मुस्लिम आतंकवाद के प्रति हमारा नजरिया किन्तु-परन्तु में भटकता क्यों है? 

खुश होने की जरूरत नहीं
अमरीका या फिर लोकतांत्रिक दुनिया को अल बगदादी के अंत से भी ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है। यह भी नहीं मान लेना चाहिए कि बगदादी के मारे जाने से उसके मुस्लिम आतंकवादी संगठन आई.एस. का अंत हो जाएगा। इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती। खास कर सीरिया की जो स्थिति है उसके अनुसार आई.एस. की समाप्ति की उम्मीद नहीं बनती है। इसके पीछे दुनिया का कूटनीतिक स्वार्थ है। कुछ स्वार्थी कूटनीतिज्ञ आई.एस. को संरक्षण देने और उसे विस्तार देने में भूमिका निभा रहे हैं। सीरिया आज दुनिया के लिए एक कूटनीतिक स्वार्थ वाला देश बन गया है। सीरिया में आज कोई एक नहीं बल्कि कई देशों की सेनाएं और उसके गुर्गे ङ्क्षहसक लड़ाई लड़ रहे हैं। एक ओर अमरीका है तो दूसरी ओर ईरान, तुर्की, सऊदी अरब, रूस जैसे देश भी हैं। 

सीरिया का शासक शिया मूल का है और जहां ईरान शिया देशों का स्वयंभू नेता होने के कारण सीरिया के शासक के साथ खड़ा है, वहीं रूस अपनी अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति के कारण सीरिया के तानाशाही शासन के लिए सेना की सक्रियता जारी रखे हुए है। तुर्की अपने दुश्मन कुर्दों के सफाए के लिए सैनिक अभियान पर है। जानना यह भी जरूरी है कि कुर्दों की वीरता का ही प्रमाण है कि अल बगदादी और उसके आतंकवादी संगठन आई.एस. को चुनौती मिली थी और उसका विस्तार रुका था। 

कुर्दों की सेना ने पहले ईराक से अल बगदादी और आई.एस. को खदेड़ा और फिर  सीरिया में बगदादी के आतंकवादियों को चुन-चुन कर मारा और उसके विस्तार पर रोक लगाई थी। पर अब समस्या तुर्की के हस्तक्षेप के कारण खडी हुई है। तुर्की ने सीरिया में कुर्दों के खिलाफ भयंकर सैनिक अभियान छेड़ रखा है। तुर्की के सैनिक अभियान के कारण अमरीका और तुर्की के बीच कूटनीतिक संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई है। तुर्की सीरिया में एक वफर जोन बनाना चाहता है जहां पर न तो सीरिया के शासक की सेना की उपस्थिति हो और न ही कुर्दों की सेना की। 

अब यहां प्रश्न उठता है कि क्या अल बगदादी के मारे जाने के बाद सीरिया में लड़ाई समाप्त हो जाएगी, आई.एस. जमींदोज हो जाएगा? आई.एस. कमजोर होगा ऐसी उम्मीद हो सकती है लेकिन आई.एस. के आतंकवादी दूसरे इस्लामिक आतंकवादी संगठनों में प्रवेश कर सकते हैं। कोई मुस्लिम आतंकवादी संगठन कमजोर होता है तो फिर कोई दूसरा खड़ा हो जाता है। जहां से इस्लामिक आतंकवाद के जीवाणु निकलते हैं उस पर वार किए बिना दुनिया को सभ्य नहीं बनाया जा सकता। इस्लामिक आतंकवाद को संरक्षण देने वाली मानसिकताओं का अंत भी जरूरी है, इस पर सिर्फ अमरीका ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को एकजुट होकर सोचना होगा, अभियानरत रहना होगा।-विष्णु गुप्त
 

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