काले धन वालों को नुक्सान भुगतने पर मजबूर नहीं कर सकी सरकार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 03 Sep, 2017 03:43 AM

government can not force black money to suffer loss

हर किसी को अपनी-अपनी राय बनाने का अधिकार है लेकिन अपने-अपने तथ्य नहीं गढ़े जा सकते...

हर किसी को अपनी-अपनी राय बनाने का अधिकार है लेकिन अपने-अपने तथ्य नहीं गढ़े जा सकते और आखिर तथ्य हमारे सामने आ गए हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने कानून के अंतर्गत अंतिम अनुमेय तिथि यानी 30 अगस्त, 2017 को अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित कर दी। 

रिपोर्ट ने हम में से अधिकतर लोगों द्वारा कही गई बातों की पुष्टि कर दी, यानी कि नोटबंदी नीति निर्धारण का निकृष्टतम उदाहरण थी। कुल 15,44,000 करोड़ रुपए की प्रवाहित मुद्रा में से लगभग 15,28,000 करोड़ यानी कीमत की दृष्टि से 99 प्रतिशत नोट आर.बी.आई. के पास लौट आए हैं। इसका अर्थ यह है कि  काले धन के स्वामी लोगों को नुक्सान भुगतने को मजबूर करने के उद्देश्य में  सरकार बुरी तरह विफल रही है। 

मूल लक्ष्य 
हमें बताया गया था कि लगभग 4-5 लाख करोड़ कीमत के नोट बैंकिंग तंत्र में वापस नहीं लौटेंगे। आर.बी.आई. अपने तुलन पत्र में इन देयताओं को निरस्त करते हुए सरकार के खाते में भारी-भरकम लाभ का हस्तातंरण करेगा जिसके फलस्वरूप काले धन वालों को छोड़कर अन्य हर कोई सदा के लिए मौज-मस्ती में जिएगा। अब इस परी कहानी की इतिश्री हो गई है। 

मैंने आगाह किया था कि सरकार ने आर.बी.आई. को भेजे 7 नवम्बर, 2016 के अपने पत्र में और इससे अगले दिन प्रधानमंत्री के भाषण में मूल रूप में जो लक्ष्य तय किए थे उनमें से एक के भी साकार होने की संभावना नहीं। जाली करंसी ने फिर से सिर उठा लिया है। आतंकी गतिविधियों में कोई कमी नहीं आई है और काला धन भी पहले की तरह न केवल सृजित हो रहा है बल्कि प्रयुक्त भी किया जा रहा है। लक्ष्य बहुत बढिय़ा थे लेकिन इन्हें हासिल करने के लिए जो उपकरण प्रयुक्त किए गए वे गलत और बेकार थे। चूंकि तथ्य मूल पटकथा के अनुसार नहीं थे इसलिए पटकथा को बार-बार बदला गया एवं प्रचार मशीनरी को जोर-शोर से प्रयुक्त किया गया। सच्चाई के लेशमात्र अंश के बिना सरकारी प्रोपेगंडा स्पष्ट रूप में एक नौटंकी ही सिद्ध हुआ है। ताजातरीन सरकारी प्रैस विज्ञप्तियों की कुछ बानगियां देखिए: 

खूबियों की तलाश 
1. ‘‘सरकार को यह उम्मीद थी कि बंद किए गए सभी नोट बैंकिंग तंत्र में लौट आएंगे और इस तरह फिर से प्रभावी तथा व्यावहारिक मुद्रा का रूप धारण कर लेंगे।’’ इस पर मेरा सवाल यह है कि क्या 500 और 1000 के पुराने नोट प्रभावी ढंग से प्रयुक्त योग्य मुद्रा नहीं थे? 2. ‘‘...सम्पूर्ण पुनर्मौद्रिकरण हो चुकने के बादआज केवल 83 प्रतिशत करंसी ही प्रभावी प्रचलन में है।’’ इस पर मेरा सवाल यह है कि सरकार ने करंसी की छपाई कम मात्रा में की है जिसके कारण इसकी कृत्रिम कमी पैदा की गई है। बहुत सेए.टी.एम. या तो काम नहीं कर रहे या फिर दिन में कुछ घंटों के लिए नकदी का आबंंटन करते हैं। 3. ‘‘यह तथ्य है कि बंद किए गए अधिकतर नोट बैंकिंग तंत्र में लौट आए हैं जो इस बात का प्रमाण है कि बैंकिंग तंत्र तथा आर.बी.आई. इतनी भारी संख्या में नोट संग्रहण की चुनौती से बहुत सीमित समय में अत्यंत प्रभावी ढंग से निपट सके हैं।’’ मेरी टिप्पणी है कि नकदी के संग्रहण को बहुत रोचक ढंग से एक उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है और इसके बाद अगले 9 महीनों में नोटों की गिनती को भी एक उपलब्धि के रूप में पेश किया जाएगा। 

4. ‘‘नवम्बर 2016 से मई 2017 के अंत तक कुल 17,526 करोड़ रुपए का ही अघोषित आय के रूप में खुलासा किया गया और केवल 1003 करोड़ रुपए के नोट ही पकड़े गए हैं। इन नोटों की जांच-पड़ताल अभी भी जारी है।’’ अघोषित आय कितनी थी और इस पर कितना टैक्स राजस्व बनेगा, उसकी गणना केवल आकलन और कानूनी दावों के निपटान के बाद ही हो सकेगी। बहुत से मामलों में शायद सरकार कानूनी पराजय का मुंह देखेगी। यानी कि अघोषित आय के स्वामियों की अंतिम संख्या शायद बहुत ही नगण्य होगी। 5. ‘‘सरकार ने पहले ही 37,000 से अधिक मुखौटा कम्पनियों की पहचान की है जोकि काला धन छुपाने तथा हवाला सौदों को अंजाम देने के काम करती थीं।’’ मेरा मानना है कि सरकार केवल इन बातों का आरोप ही लगा रही है लेकिन केवल टैक्स पंचाट और अदालतें ही यह निर्धारित कर सकती हैं कि क्या ये कम्पनियां सचमुच काला धन छुपाने और हवाला सौदों में संलिप्त थीं? 

6. ‘‘आयकर जांच निदेशालयों ने 23 मई, 2017 तक 400 से अधिक बेनामी सौदों की पहचान की थी और कुर्की दायरे में आई सम्पत्तियों का बाजार मूल्य 600 करोड़ रुपए से अधिक है।’’ लेकिन सवाल पैदा होता है कि जितने बड़े स्तर पर सरकार ने अर्थव्यवस्था में व्यवधान पैदा किया उसके मद्देनजर यह आंकड़ा क्या दयनीय हद तक छोटा नहीं है? 7. ‘‘500 और 1000 के नोटों के विमुद्रीकरण के फलस्वरूप आतंकी और नक्सलियों का वित्त पोषण लगभग पूरी तरह रुक जाएगा।’’ लेकिन इसका कुछ प्रमाण देखना बहुत रोचक होगा। जम्मू और कश्मीर के आंकड़ों में आतंकी घटनाओं और इनमें होने वाली मौतों में वृद्धि देखने को मिल रही है। गृह मंत्री ने कहा कि देश के 7 राज्यों के 35 जिले नक्सलवाद से प्रभावित हैं। 

8. ‘‘अक्तूबर 2016 में डिजीटल सौदों की संख्या 71.27 करोड़ थी लेकिन मई, 2017 समाप्त होने तक इनकी संख्या 56 प्रतिशत बढ़कर 111.45 करोड़ हो गई।’’ सरकार ने यह तो बता दिया कि डिजीटल सौदों में वृद्धि हुई है लेकिन यह नहीं बताया कि इन सौदों का कुल मूल्य लगभग नवम्बर 2016 के बराबर ही है। 9. ‘‘जी.एस.टी. के अंतर्गत प्रभावशाली टैक्स वसूली नोटबंदी अभियान की सफलता का साकार प्रमाण है।’’ लेकिन सरकार यह नहीं बता रही कि अप्रत्यक्ष कर संग्रहण पर नोटबंदी का कितना बुरा प्रभाव पड़ा है? 

प्रलयंकारी आघात
10. ‘‘कुछ लोगों को यह उम्मीद थी कि नोटबंदी के कारण आर्थिक वृद्धि पर बहुत बड़ा प्रहार होगा। उनकी उम्मीदें फलीभूत नहीं हुई हैं।’’ मैं पूछता हूं कि क्या आर्थिक वृद्धि में 3.1 प्रतिशत की गिरावट बहुत बड़ा प्रहार नहीं है? यू.पी.ए.-1 के शासन के दौरान जी.डी.पी. वृद्धि दर 8 और 9 प्रतिशत के बीच रहती थी जबकि यू.पी.ए.-2 और राजग शासन के प्रथम  2 वर्षों दौरान यह 7 और 8 प्रतिशत के बीच रही। नोटबंदी लागू होने के बाद त्रैमासिक वृद्धि (और इसके फलस्वरूप वार्षिक वृद्धि) दर 6 और 7 प्रतिशत के बीच ही अटकी हुई है। केन्द्रीय आंकड़ा संगठन (सी.एस.ओ.) के अनुसार 2017-18 की प्रथम तिमाही दौरान जी.डी.पी. का आंकड़ा 5.7 प्रतिशत, सकल मूल्य वृद्धि (जी.बी.ए.) का आंकड़ा 5.6 प्रतिशत तथा कारखाना निर्माण की जी.डी.पी. का आंकड़ा मात्र 1.2 प्रतिशत तक ही पहुंच पाया है। क्या यह अर्थव्यवस्था पर प्रलयंकारी आघात नहीं है?

ऐसे लोग भी होते हैं जो यह मानते हैं कि सत्तातंत्र अपनी वैधता खुद ही तय कर लेता है जबकि हम जैसे शेष लोग नीतियों के प्रभाव को वस्तुनिष्ठ दृष्टि से ही समझने में रुचि लेते हैं और इनका समर्थन तभी करेंगे यदि इनसे जनता और अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचता हो। नोटबंदी से लेकर यू.पी. में ध्रुवीकरण तक, गोवा और मणिपुर में जालसाजियों से लेकर यू.पी. और झारखंड में बच्चों की मौत  तथा हरियाणा में भीड़ द्वारा की गई हिंसा तक हमें केवल यह उम्मीद की जा रही है कि हमसे नालायकी सहन करें। राजग शासन राजनीति की एक ऐसी दुर्लभ प्राय: और चरमपंथी बानगी को लागू कर रहा है जो अंततोगत्वा हमारी अर्थव्यवस्था और सामाजिक सौहार्द दोनों को ही तबाह कर देगी।....

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