बंदरों की समस्या से कैसे निपटा जाए

Edited By Pardeep,Updated: 16 Nov, 2018 04:40 AM

how to deal with the problem of monkeys

आगरा में सड़क पर जाती एक मां की गोद से बंदर बच्चा छीन ले गया। उसने बच्चे को जमीन पर पटक दिया। 12 दिन के इस बच्चे की मौत हो गई। मथुरा, वृंदावन के मंदिरों के आसपास बहुत बंदर  हैं। ये लोगों के हाथ से चश्मा, मोबाइल...

आगरा में सड़क पर जाती एक मां की गोद से बंदर बच्चा छीन ले गया। उसने बच्चे को जमीन पर पटक दिया। 12 दिन के इस बच्चे की मौत हो गई। मथुरा, वृंदावन के मंदिरों के आसपास बहुत बंदर  हैं। ये लोगों के हाथ से चश्मा, मोबाइल, पर्स छीन ले जाते हैं। 

वृंदावन के निधि वन या हिमाचल के जाखू मंदिर में जब आप मंदिर के अंदर प्रसाद लेकर जा रहे होते हैं, तब ये कुछ नहीं कहते, मगर लौटते वक्त यदि आपने इन्हें प्रसाद में से हिस्सा नहीं दिया तो आपकी खैर नहीं। कमोबेश यही स्थिति भारत भर में बड़े मंदिरों और तीर्थ स्थानों के आसपास भी है। 

चूंकि जंगल भारी मात्रा में काटे गए हैं, इसलिए बंदरों के लिए भोजन नहीं मिलता और ये भोजन की तलाश में शहरों का रुख करते हैं। मथुरा की सांसद हेमा मालिनी ने एक बार कहा था कि वह इस इलाके में बंदरों का अभयारण्य बनाना चाहती हैं। इस योजना का क्या हुआ पता नहीं, लेकिन इन स्थानों पर बंदर एक भारी मुसीबत बन चुके हैं। बंदरों को पालने या इनका नाच दिखाने पर रोक है। इन्हें मारा भी नहीं जा सकता। इससे लोगों की धार्मिक भावनाएं भी आहत होती हैं। सवाल यही है कि इन शरारती बंदरों से कैसे निपटा जाए? 

संसद भी बंदरों से मुक्त नहीं
इसी साल अगस्त के महीने में दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट में कहा था कि राजधानी में इस वक्त 50 हजार से ज्यादा बंदर हैं। इन्हें पकडऩे के लिए साढ़े 23 करोड़ रुपए चाहिएं। पर्यावरण मंत्रालय ने इस राशि को बहुत ज्यादा माना और कहा कि सरकार अपने प्रपोजल को दोबारा बनाए। यहां तक कि अपनी संसद भी बंदरों के आतंक से मुक्त नहीं है। यहां बंदर भगाने के लिए पहले लंगूर रखे जाते थे लेकिन मेनका गांधी के विरोध के बाद अब लंगूर नहीं रखे जाते। प्रशिक्षित लोग लंगूरों की आवाज निकालकर बंदर भगाते हैं। कई लोग निजी तौर पर लंगूर पालते हैं। इनकी सेवाएं भी ली जाती हैं। 

हालांकि कभी-कभी यह कारगर भी नहीं होता। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू भी इस बारे में चिंता प्रकट कर चुके हैं। अब संसद के नए अधिवेशन के लिए एडवाइजरी जारी की गई है कि संसद के भीतर बंदरों को खिलाएं-पिलाएं नहीं और बंदरों के हमले से बचने के लिए उनसे नजरें न मिलाएं। अगर बंदर से अपका वाहन टकरा जाए तो रुकें नहीं। कई बार सांसद बंदरों के डर से रुक जाते हैं और संसद में इस कारण देर से पहुंचते हैं। 

बंदरों के लिए स्कूल बनाने की मांग
पंजाब सरकार ने सैंट्रल जू अथॉरिटीज से 2009 में बंदरों के लिए एक स्कूल स्थापित करने की मांग की थी। सरकार का कहना था कि पंजाब में बंदरों की आबादी 50 हजार से अधिक है। इनमें से 10 हजार अकेले पटियाला में हैं। हर हफ्ते ये एक-दो लोगों को काटते हैं, प्रॉपर्टी को नुक्सान पहुंचाते हैं और बच्चों को डराते हैं। इसलिए पटियाला में बंदरों का एक स्कूल बनाया जाए, जिसमें इन्हें अच्छे व्यवहार के लिए प्रशिक्षित करके भेजा जा सके। ऐसा स्कूल बन पाया कि नहीं, इस बारे में जानकारी नहीं है लेकिन चीन के डोंगिग स्थान पर बंदरों का एक ऐसा स्कूल है जहां उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है। बंदरों की जनसंख्या नियंत्रण हेतु जानवरों के लिए काम करने वाले एन. जी.ओज उनके बंध्याकरण की सलाह देते रहते हैं, मगर एक-एक बंदर को पकड़कर उनका बंध्याकरण करना एक मुश्किल काम है। तब तो और भी, जब बंदर पकडऩे वाले आसानी से नहीं मिलते। 

अब शोध के लिए अमरीका नहीं भेजे जाते
बहुत पहले अमरीका में शोध के लिए हर साल भारत से 50 हजार बंदर भेजे जाते थे लेकिन अमरीका में जानवरों के अधिकार के लिए काम करने वाले संगठनों ने इसका भारी विरोध किया। भारत में भी इसका विरोध हुआ क्योंकि कहा जाता था कि इन बंदरों पर प्रयोग और शोध के नाम पर बेहद अत्याचार किए जाते थे। अंतत: इसे रोक दिया गया। यह अच्छा भी हुआ लेकिन बंदरों के कारण मनुष्य परेशान न हों, यह कैसे हो, इसे जरूर सोचा जाना चाहिए। सवाल तो यही है कि एक ओर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई है, जंगलों का विनाश है, तो दूसरी तरफ  इन जानवरों का शहरों की तरफ आना, तमाम दुर्घटनाओं की वजह बन रहा है। होता यह है कि एक जगह से बंदरों को पकड़ भी लिया जाए तो फिर उन्हें दूसरी जगह छोड़ दिया जाता है। इससे अगर एक शहर की समस्या हल होती है, तो दूसरी जगह बढ़ जाती है। 

हरियाणा के हेली मंडी नामक कस्बे में कुछ साल पहले एक भी बंदर नहीं दिखता था, मगर अब हालत यह है कि बंदर ही बंदर दिखाई देते हैं। ये मनुष्यों से लेकर पालतू जानवरों तक पर हमला बोल देते हैं। घरों में जहां पेड़-पौधे लगे होते हैं, उन्हें उखाड़ देते हैं। घर का सामान भी उठा ले जाते हैं। फरीदाबाद में भी ऐसी घटनाएं बहुत देखने में आती हैं। ऐसा लगता है कि जैसे पूरे भारत में लोग बंदरों से परेशान हैं।-क्षमा शर्मा

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