‘डांस बारों पर प्रतिबंध से मिलेगी देह व्यापार को शह’

Edited By ,Updated: 02 Mar, 2017 10:55 PM

incitement to prostitution ban on dance bars will

महाराष्ट्र की बार बालाओं ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है और तर्क दिया है कि....

महाराष्ट्र की बार बालाओं ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है और तर्क दिया है कि राज्य में प्रतिबंध जैसा माहौल बनाए जाने से उन्हें जिस्मफरोशी जैसे धंधों में धकेला जा सकता है। भारतीय बार गल्र्स यूनियन की सदस्याओं ने गत सोमवार को ‘अन्यायपूर्ण तथा तानाशाहीपूर्ण नए प्रतिबंधों’, जैसे कि नाचते समय जिस्म की हरकतों को काबू में रखना, उन पर पैसे लुटाना तथा नृत्य के क्षेत्र में शराब सर्व करना आदि के साथ-साथ सी.सी.टी.वी. कैमरे लगाना जरूरी करने के विरोध में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 

उन्होंने अदालत को याद दिलाया कि 2005 में बारों को बंद करने के बाद 75000 से अधिक महिला कर्मचारी बेरोजगार हो गई थीं। उन्होंने शीर्ष अदालत का ध्यान एक अन्य पीठ के फैसले की ओर दिलाया, जिसने एक ऐसे ही राज्य के कानून को रद्द कर दिया था। 

महाराष्ट्र सरकार ने एक दशक से भी पहले उन बारों तथा होटलों के लाइसैंस रद्द कर दिए थे, जहां युवा महिलाओं को पुरुष ग्राहकों के सामने अश्लील गीतों पर नाचने के लिए नियुक्त किया गया था। सरकार का दावा था कि इससे समाज पर बुरा असर पड़ेगा। मगर सुप्रीम कोर्ट ने गत वर्ष कह दिया कि बार फिर से लाइसैंस के लिए आवेदन कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक पहले के आदेश में कहा था कि उनके रिकार्ड में यह बात आई है कि उनमें से कइयों (बार बालाओं) को अपने परिवार चलाने के लिए जरूरतें पूरी करने हेतु देह व्यापार के लिए मजबूर होना पड़ता है। अदालत की राय में विरोधाभासी कानून परिणामपरक नहीं निकले और उन्हें जारी नहीं रखा जा सकता। 

ऐसा पहली बार हुआ है कि बार बालाएं महाराष्ट्र सरकार के कानून के विरोध में खुद आगे आई हैं। अब तक इसका विरोध केवल होटलों, रैस्टोरैंट तथा डांस बार के मालिकों द्वारा ही किया जा रहा था। ताजा याचिका में नए कानून को तानाशाहीपूर्ण तथा न्यायोचित तरीकों से अपनी रोजी-रोटी कमाने के अधिकार का उल्लंघन बताया गया है। बार बालाओं की यूनियन ने आरोप लगाया है कि कानून में ‘अश्लील नृत्य’ की धारा इसलिए जान-बूझकर जोड़ी गई है ताकि पुलिस को परफार्मर्स को प्रताडि़त करने का अधिकार मिल सके। 

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पहले महाराष्ट्र पुलिस को लताड़ लगाई थी। शीर्ष अदालत ने मुम्बई के डी.सी.पी. (लाइसैंसिंग) को सम्मन करके याद दिलाया कि महिलाओं के लिए डांस बारों में परफार्म करना बेहतर होगा, न कि अस्वीकार्य गतिविधियों में शामिल होना। जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि ‘‘तुम्हें अपनी मानसिकता बदलनी  होगी।’’     

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