सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए भारत का दावा मजबूत

Edited By ,Updated: 28 Sep, 2021 03:45 AM

india s claim for permanent seat in security council strong

भारत काफी लम्बे समय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट पाने की प्रतीक्षा में है। यह मुद्दा गत सप्ताह वाशिंगटन में अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच द्विपक्षीय बैठक में एक बार फिर उठा। अब से कुछ वर्ष पहले...

भारत काफी लम्बे समय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट पाने की प्रतीक्षा में है। यह मुद्दा गत सप्ताह वाशिंगटन में अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच द्विपक्षीय बैठक में एक बार फिर उठा। अब से कुछ वर्ष पहले तक हमारा जो भी नेता विदेश गया या किसी भी राष्ट्राध्यक्ष ने भारत का दौरा किया, भारत की विस्तारित सुरक्षा परिषद के लिए उम्मीदवारी के मुद्दे को समर्थन मिला। 

कम से कम 4 अमरीकी राष्ट्रपति-जॉर्ज बुश, बराक ओबामा, डोनाल्ड ट्रम्प तथा अब जो बाइडेन ने खुलकर शक्तिशाली संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के लिए भारत की उम्मीदवारी का समर्थन किया है। नवम्बर 2010 में भारत की अपनी पहली आधिकारिक यात्रा के दौरान बराक ओबामा ने भारतीय संसद को संबोधित करते हुए कहा कि वह उस दिन की प्रतीक्षा में है जब भारत सुधरी हुई यू.एन.एस.सी. का एक स्थायी सदस्य बन जाएगा। अब नए राष्ट्रपति जो बाइडेन ने परमाणु आपूर्ति समूह तथा सुधरी हुई संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद  में स्थायी सदस्यता के लिए भारत के लिए प्रवेश के अपने समर्थन को फिर दोहराया है। 

भारत जून 2020 में 2 वर्षों के लिए शक्तिशाली सुरक्षा परिषद का गैर-स्थायी सदस्य चुना गया था। इससे पहले भारत 8 बार 2 वर्षीय कार्यकाल की सेवा दे चुका है। संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्य होने के नाते हमारा मामला मजबूत है। भारत विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या है तथा विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र। भारत ने संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों के लिए अपना निरंतर योगदान दिया है और 2007 में एक सर्व महिला बल सहित लगभग 2 लाख सैनिक भेज चुका है। यदि भारत स्थायी सदस्य बनता है तो इसके पास वैश्विक संस्थाओं तथा शासनों को एक नई आकृति देने की क्षमता होगी। गत सितम्बर में सुधारवादी प्रक्रिया की धीमी गति से निराश होकर मोदी ने यू.एन.जी.ए. को संबोधित करते हुए पूछा था कि ‘‘हमें कब तक प्रतीक्षा करनी होगी?’’ 

वर्तमान में परिषद विकासशील जगत तथा वैश्विक जरूरतों का प्रतिनिधित्व नहीं करती-क्योंकि नीतियों का महत्व इसके 5 स्थायी सदस्यों -अमरीका, ब्रिटेन, रूस, चीन तथा फ्रांस के हाथों में है। इनमें से कोई एक भी अपनी वीटो की ताकत के साथ किसी प्रस्ताव को नाकाम कर सकता है। 5 स्थायी सदस्यों में से 4 यू.एन.एस.सी. के लिए भारत के दावे का समर्थन करते हैं मगर 5 ‘पी’ में से कोई भी परिषद में अपनी वीटो ताकत वाली सीट को त्यागने की जल्दी में नहीं है। भारत, ब्राजील, जर्मनी तथा जापान, जो जी-4 नामक दबाव समूह बनाते हैं, परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए मजबूत दावेदार हैं। 

परिषद के लिए भारतीय दावेदारी की कहानी प्रधानमंत्री नेहरू के समय तक पीछे जाती है। नेहरू के आलोचक, तब और अब, उन पर अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता के आधार पर भारत के राष्ट्रीय हितों की बलि देने का आरोप लगाते हैं। रिपोर्ट्रस में दावा किया गया है कि 1950 में संयुक्त राष्ट्र ने चुपचाप नई दिल्ली को परिषद में ताईवान के बदल बारे चौकस कर दिया था। नेहरू ने इसमें हिचकिचाहट दिखाई तथा सुझाव दिया कि यह चीन को जानी चाहिए। इसी तरह ऐसा बताया जाता है कि उन्होंने 1955 में सोवियत रूस के प्रस्ताव से भी इंकार कर दिया था। नेहरू ने अपनी बहन विजयलक्ष्मी पंडित को लिखा था, ‘‘भारत कई कारकों से निश्चित तौर पर सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट का पात्र है लेकिन हम चीन की कीमत पर इसके लिए नहीं जा रहे।’’ स्वाभाविक है कि उन्होंने चीन के भविष्य के विकास का अनुमान नहीं लगाया था। 

वर्तमान रुझान को देखते हुए यह वैश्विक संस्था सुधारों के लिए जल्दी में नहीं है। यद्यपि अमरीका तथा अन्य देश सुधार की बात करते हैं, संयुक्त राष्ट्र के लिए यह एक प्राथमिकता नहीं है। पूर्व महासचिव कोफी अन्नान (2015) ने बिल्कुल सही कहा था कि यदि यू.एन.एस.सी. नए स्थायी सदस्यों की नियुक्ति नहीं करती, इसकी प्रधानता को कुछ नए उभरते हुए देशों द्वारा चुनौती दी जा सकती है। उनका मानना था कि परिषद इस तरह से एक संगठन बन जाएगी जो कमजोर देशों के खिलाफ मजबूत प्रस्ताव, मजबूत देशों के खिलाफ कमजोर प्रस्ताव पारित कर सकता है। यह इस विषय में पी-5 के साथ निपटने में संयुक्त राष्ट्र की असहायता को दर्शाता है। 

इससे हम यह सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं कि क्या संयुक्त राष्ट्र ने गत 75 वर्षों में अपनी भूमिका निभाई है? संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव बाध्यकारी नहीं हैं। वैश्विक संगठन का उद्देश्य झगड़ों तथा युद्धों को रोकना था मगर इसके आरंभ से ही 80 झगड़े शुरू हो गए। अमरीकी राष्ट्रपति, बुश से लेकर ट्रम्प तक, सभी ने इसकी कार्यप्रणाली की आलोचना की है। संयुक्त राष्ट्र को स्रोतों की कमी का सामना भी करना पड़ रहा है क्योंकि अमरीका सहित इसके सदस्य समय पर अपना योगदान नहीं चुकाते। 

सभी शिकायतों तथा आलोचनाओं के बावजूद संयुक्त राष्ट्र एकमात्र ऐसा अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जहां विभिन्न देशों के नेता वैश्विक समस्याओं पर काम करने के लिए साथ आते हैं। इस जैसी वैश्विक इकाई बनाने में समय लगता है। इसे नष्ट करने की बजाय सुधारा जाना चाहिए। इसी कारण से भारत संयुक्त राष्ट्र में अपने अधिकारपूर्ण स्थान के लिए लॉबिंग कर रहा है। इसमें सुधार कौन करेगा, वास्तव में एक प्रश्रचिन्ह है जिसका उत्तर पी-5 द्वारा दिया जाना चाहिए।-कल्याणी शंकर
  

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