Edited By ,Updated: 27 Sep, 2025 05:02 AM

भारत से हर साल बड़ी संख्या में युवा पढ़ाई और रोजगार के लिए विदेश इसलिए जाते हैं कि उनकी योग्यता, प्रतिभा का मूल्यांकन यहां नहीं होता, पढ़ाई-लिखाई की सुविधाएं जैसी वहां हैं, यहां नहीं हैं और सबसे बड़ी बात कि पैसा अधिक मिलता है, उस देश के निवासियों से...
भारत से हर साल बड़ी संख्या में युवा पढ़ाई और रोजगार के लिए विदेश इसलिए जाते हैं कि उनकी योग्यता, प्रतिभा का मूल्यांकन यहां नहीं होता, पढ़ाई-लिखाई की सुविधाएं जैसी वहां हैं, यहां नहीं हैं और सबसे बड़ी बात कि पैसा अधिक मिलता है, उस देश के निवासियों से कम होता है पर यहां से ज्यादा होता है। वर्तमान में लगभग 18 लाख भारतीय छात्र अमरीका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। विदेशों में भारतीयों की संख्या का कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है लेकिन माना जाता है कि वे करोड़ों में होंगे और उन देशों को समृद्ध बनाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
कोई क्यों आएगा?: हमारे प्रधानमंत्री का संकल्प है कि चिप से लेकर शिप तक का निर्माण भारत में हो और चाहे जहां बने, कोई भी बनाए ‘भारत में बना’ लेबल लगा होना चाहिए। यही आत्मनिर्भर भारत की पहचान बने। इसमें विदेशों में बसे भारतीयों का योगदान हो और वे अपने देश लौट आएं। प्रश्न यह है कि क्या वे भारत आएंगे? इसका विश्लेषण करना और वास्तविकता को समझना तथा इसे लेकर देश भर में चर्चा होना आवश्यक है। अक्सर जब हम अपने ही देश में व्यापार, व्यवसाय अथवा रोजगार या फिर घूमने फिरने यानी पर्यटन के लिए जाते हैं तो बहुत सी चीजें अलग पाते हैं और उनकी तुलना करते हैं। उदाहरण के लिए कोई ऐसी सड़क जो 20-30 साल पहले बनी होगी पर आज भी एकदम चमचमाती हुई दिखेगी। तुरंत आप सोचने लगते हैं कि आपके शहर, कस्बे और गांव में सड़क है, लेकिन टूटी हुई, बरसों बिना मुरम्मत, बरसात में गड्ढा, फिसलन और काई कीचड़ से भरी नालियां, गलियों में क्या मुख्य सड़क पर भी पानी का भराव और निकासी का कोई इंतजाम नहीं और अखबार टी.वी. पर यह सूचना कि यह तो पिछले दिनों ही बनी थी और पहली बरसात भी नहीं झेल पाई। विशेष यह कि यह स्थिति महानगर से लेकर नगर निकायों तक की है।
दूसरी बात पुलिस, प्रशासन और क़ानून व्यवस्था की है। अपने ही देश में कहीं तो एकदम दुरुस्त, चाक चौबंद, शांतिपूर्ण जीवन की झलक, दुर्भाग्य से बहुत कम स्थानों पर, अधिकतर अस्त-व्यस्त, जिसकी लाठी उसकी भैंस का उदाहरण, लूट-खसूट का वातावरण, प्रदूषण और पर्यावरण का संकट, चौराहों, बाजारों, सार्वजनिक स्थानों पर अंधेरे का साम्राज्य, खुले मैनहोल, पैदल चलना हो तो फुटपाथ पर दुकानदारों, व्यापारियों का कब्जा, ट्रैफिक का यह हाल कि दस मिनट की दूरी तय करने में घंटों तक लग जाना, महिलाओं से छेड़छाड़ और वृद्ध लोगों को धकियाने से लेकर उन्हें दुर्घटना का शिकार बनते हुए अपने सामने देखना सामान्य और सबसे बड़ी चुनौती है। यदि अधिकारियों तक अपनी परेशानी पहुंचाने का जुगाड़ कर भी लिया तो असामाजिक तत्वों से अपनी जान बचाने तक का जोखिम उठाने के लिए तैयार रहना होगा।
जब यह हालात हों और देश में ही एक से दूसरे स्थान पर जाने से पहले सौ बार सोचता है तो फिर विदेश से यहां बसने के इरादे से गए व्यक्ति का लौटने की बात सोचना जोखिम उठाने की तरह है।
इसके लिए मानसिक और व्यावहारिक तौर पर अपने आप को मजबूत करना भारत आने की पहली शर्त है। यदि सरकार चाहती है कि विदेशों में बेस बना चुके भारतीय वापसी करें तो यह तब तक संभव नहीं जब तक उनके लिए वैसी प्रशासनिक प्रक्रिया शुरू नहीं होती जैसी उन्हें विदेशों में मिलती है। बावजूद इसके कि अमरीका जैसे देशों में जाना और बसना बहुत महंगा होता जा रहा है, यह निश्चित है कि यदि थोड़े से भी लोग भारत वापस आते हैं तो यह एक क्रांतिकारी बदलाव होगा क्योंकि वे अपने साथ अपनी पूंजी के अतिरिक्त उन देशों में काम करने की सोच और तरीके भी लाएंगे।
जाने पर प्रतिबंध और लौटने का करार : कुछ लोग सुझाव देते रहते हैं कि भारत के जो युवा पढ़ाई करने जाते हैं, उन्हें इस प्रतिबंध के साथ जाने दिया जाए कि वे अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद भारत वापस आएंगे और यहां नौकरी, रोजगार, व्यवसाय करेंगे। क्या ऐसा करना व्यावहारिक होगा? कतई नहीं क्योंकि देश में जो शिक्षा और रोजगार का माहौल है, विदेशों में पढ़े-लिखे युवा बोझ ही साबित होंगे। लोग कहने लगे हैं कि कुछ देशों की तरह युवाओं के विदेश जाने पर ही रोक लगा दी जाए ताकि उनकी प्रतिभा का देश में ही इस्तेमाल हो। यह सुझाव ही बचकाना है। सबसे पहले तो संविधान में विश्व में कहीं भी जाने की स्वतंत्रता है, इसलिए यह पाबंदी लगाई नहीं जा सकती। दूसरे विदेशों से कमाई का जो हिस्सा विदेशी मुद्रा के रूप में भारत आता है, वह बंद हो जाएगा।
तीसरे बेरोजगारी बढ़ेगी जिससे पहले ही हमारा देश त्रस्त है। चौथी बात यह है कि जो लोग विदेशी रहन-सहन अपना चुके हैं और वहां उपलब्ध सुविधाओं के आधार पर जीवन शैली में अपने को ढाल चुके हैं, उनके लिए यहां घुटन ही होगी, निराशा और तनाव बढ़ेगा और फायदा होने के स्थान पर नुकसान अधिक होगा। उदाहरण के लिए पंजाब में यह पहल शुरू हुई है कि वहां विदेशों से आकर कृषि, पशुपालन जैसे क्षेत्रों में विदेशी टैक्नोलाजी और उद्यमिता के साथ उत्पादन बढ़ाने की दिशा में काम हो रहा है।
प्रवासी भारतीयों का स्वागत कैसे हो : पुराने नियमों में बदलाव कर पारदर्शी व्यवस्था को सुनिश्चित करना होगा और जिन लोगों की आदत बिना किसी लेन-देन कोई काम न होने देने और हरेक काम में अड़चन पैदा करने की है उन्हें कड़ी सजा देनी होगी और यह केवल एन.आर.आई. लोगों के लिए नहीं बल्कि प्रत्येक भारतीय उद्यमी के लिए होना चाहिए। यह वास्तविकता है कि यदि प्रवासी भारतीयों का आंशिक रूप से भी भारत आगमन हो जाए तो निश्चित रूप से प्रधानमंत्री का संकल्प पूरा करने में मदद मिल सकती है अन्यथा कितने भी गाल बजाते रहिए, ढोल पीटते रहिए या अनर्गल घोषणाएं करते रहिए, चीन जैसे देशों से आगे निकलना संभव नहीं है।-पूरन चंद सरीन