‘अर्थव्यवस्था सुस्त होने के कारण रोजगार की संभावनाएं कम’

Edited By ,Updated: 05 Jan, 2021 05:05 AM

low employment prospects due to sluggish economy

पुनरुद्धार के संकेतों के बावजूद दिसम्बर में बेरोजगारी दर 6 माह के उच्चतम स्तर पर थी। आंकड़े दर्शाते हैं कि अर्थव्यवस्था अभी भी सुस्त है और श्रम बाजार में सभी को रोजगार देने में तैयार नहीं। बेरोजगारी की ऊंची दर दर्शाती है कि सभी क्षेत्रों के

पुनरुद्धार के संकेतों के बावजूद दिसम्बर में बेरोजगारी दर 6 माह के उच्चतम स्तर पर थी। आंकड़े दर्शाते हैं कि अर्थव्यवस्था अभी भी सुस्त है और श्रम बाजार में सभी को रोजगार देने में तैयार नहीं। बेरोजगारी की ऊंची दर दर्शाती है कि सभी क्षेत्रों के खुलने के बावजूद भी रोजगार की संभावनाएं अभी क्षीण हैं। 

सैंटर फार मॉनिटरिंग इंडियन इकोनमी (सी.एम.आई.ई.) के अनुसार, राष्ट्रीय बेरोजगारी दर दिसम्बर माह में 9.6 प्रतिशत उच्च दर पर आ गई जो नवम्बर माह में 6.51 प्रतिशत थी। इसके अलावा ग्रामीण बेरोजगारी की दर भी 15 प्रतिशत हो गई जोकि नवम्बर माह में 6.26 प्रतिशत थी। राष्ट्रीय तथा ग्रामीण बेरोजगारी दोनों के स्तर जुलाई से लेकर ऊंचे स्तर पर थे। जून में जब कोरोना महामारी देश में अपनी चरम सीमा पर थी तथा अनेकों क्षेत्र लॉकडाऊन के तहत थे तब मासिक बेरोजगारी 10.18 प्रतिशत राष्ट्रीय स्तर पर तथा ग्रामीण भारत में 9.49 प्रतिशत थी। जुलाई में ये आंकड़े क्रमश: 7.4 प्रतिशत तथा 6.51 प्रतिशत थे। 

दिलचस्प बात यह है कि शहरी बेरोजगारी दर जोकि ग्रामीण तथा राष्ट्रीय औसत की तुलना में पिछले 7 महीनों के दौरान 8.84 प्रतिशत की ऊंची उड़ान भर रही थी, दिसम्बर में कम आंकी गई। हालांकि यह अभी भी नवम्बर के आंकड़ों से ज्यादा है और पिछले 4 माह में उच्चतम दर पर है। इससे यह भी उम्मीद जताई जाती है कि शहरी भारत अन्य क्षेत्रों की तुलना में बेहतर आकार ले रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि नौकरियों पर निरंतर बढ़ते दबाव ने केंद्र सरकार को और अधिक ग्रामीण रोजगार स्कीम पर खर्च करने को मजबूर किया है। अगले माह पेश किए जाने वाले वार्षिक बजट में नौकरियों को पैदा करने के लिए और ज्यादा खर्च करने की संभावना है। 

भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार मनरेगा ने 236 मिलियन लोगों को नवम्बर में कार्य प्रदान किया। ये दिसम्बर माह में 188.07 मिलियन था जिसका मतलब यह है कि 48 मिलियन लोगों की गिरावट देखी गई। इंस्टीच्यूट आफ इकनोमिक ग्रोथ, नई दिल्ली में अर्थशास्त्र के एक प्रोफैसर अरूप मित्रा का कहना है कि सरकार को भी मांग पुनर्जीवित करने के लिए और अधिक खर्चना होगा। सरकार को मूलभूत निर्माण पर और खर्च करने की जरूरत है। इसके अलावा मनरेगा तथा अन्य नौकरियां उत्पन्न करने वाले संस्थानों पर अधिक खर्च करने की जरूरत है। मित्रा ने आगे कहा कि शहरी श्रम विस्तृत निर्माण तथा खुदरा क्षेत्र धीरे-धीरे बेहतर कर रहे हैं। 

भारत के रोजगार बाजार में स्थिति जटिल है। मांग कम है तथा अर्थव्यवस्था में ज्यादा सुधार नहीं देखा जा रहा। खुली बेरोजगारी (ऐसी हालत जब एक व्यक्ति शिक्षित तो है और कार्य करने के लिए भी तैयार है लेकिन उसे नौकरी नहीं मिलती) भी एक हिस्सा है। दूसरा पक्ष यह है कि लोगों को काम पर कैसे लाया जाए, विशेष कर महिला कर्मचारियों को जो रोजगार क्षेत्र से बाहर आ चुकी हैं। अजीम प्रेम जी यूनिवर्सिटी (कर्नाटक) में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफैसर अमित बासोल का कहना है कि नीतियां ऐसी होनी चाहिएं जो मांग को उत्पन्न करें। उनका आगे कहना है कि कृत्रिम मांग कम रोजगार का कारण है तथा यह लोगों को श्रम बाजार से बाहर धकेलती है। एक तत्काल उपाय यह है कि लोगों के हाथों में जनधन खातों के माध्यम से ज्यादा पैसा दिया जाए। 

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीम में निरंतर ऊंचे आबंटन से ग्रामीण भारत को मदद मिल सकेगी और इससे माइक्रो, लघु तथा मध्यम उद्यम (एम.एस. एम.ईज) भी प्रफुल्लित होगा। बासोल ने आगे कहा कि हम अभी भी झटके से उभरने में संघर्ष कर रहे हैं। एम.एस.एम.ईज अभी भी क्षमता से कम दिखाई दे रहा है। नकदी पूरी तरह से उनके हाथों में नहीं पहुंच पाई, इसके अलावा कुछ अन्य भी मुद्दे हैं जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है।-प्रशांत के. नंदा 

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