Edited By Punjab Kesari,Updated: 01 Aug, 2017 10:41 PM
जवाहर लाल नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को पहचानने में बड़ी भूल की थी। वह शेख अब्दुल्ला पर अति विश्वास के शिकार थे, जिसका....
जवाहर लाल नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को पहचानने में बड़ी भूल की थी। वह शेख अब्दुल्ला पर अति विश्वास के शिकार थे, जिसका दुष्परिणाम निकलना ही था। शेख अब्दुल्ला के विघटनकारी और पाकिस्तान परस्ती बोल राष्ट्र की एकता और अखंडता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करते थे। शेख अब्दुल्ला के विघटनकारी बोलों के खिलाफ और नेहरू के कश्मीर के विशेषाधिकार के खिलाफ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को आंदोलन करना पड़ा था, जिनका कश्मीर में बलिदान भी हुआ था। तत्कालीन भारतीय सत्ता को शेख अब्दुल्ला पर गंभीर कार्रवाई के लिए बाध्य होना पड़ा था।
इतिहास गवाह है कि जब-जब भारतीय सत्ता अति उदार हो जाती है, समर्पणकारी हो जाती है, कश्मीरी कट्टरपंथियों के सामने झुक जाती है, तब-तब कश्मीर में विघटनकारी बोल कुछ ज्यादा ही राष्ट्र की एकता और अखंडता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर देते हैं। नेहरू की तरह नरेन्द्र मोदी ने भी कश्मीर के विघटनकारी मानसिकता के नेताओं को समझने की भूल की है। पी.डी.पी. का जन्म ही विघटनकारी मानसिकता से हुआ था। पी.डी.पी. के नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद भारत विरोधी बयानों से काफी हलचल पैदा करते थे। मुफ्ती मोहम्मद सईद की आतंकवादियों को लाभ देने वाली मरहम नीति काफी कुख्यात हुई थी। उस समय भाजपा मुफ्ती मोहम्मद सईद की आतंकवादियों के पक्षधर मरहम नीति के खिलाफ काफी मुखर अभियान चलाती थी। इसी मुफ्ती मोहम्मद सईद के साथ भाजपा ने जम्मू-कश्मीर में सरकार बना डाली।
मुफ्ती मोहम्मद सईद के साथ भाजपा का गठबंधन ठीक-ठाक चल रहा था पर मुफ्ती मोहम्मद सईद की मृत्यु के बाद सब कुछ बदल गया और पी.डी.पी. के साथ ही साथ मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी महबूबा पर विघटनकारी मानसिकताएं सवार हो गईं। महबूबा मुफ्ती के दो बयान काफी खतरनाक और जहरीले हैं, जो भारत की अस्मिता को लहूलुहान करने वाले, आतंकवादियों को खुश करने वाले, पाकिस्तान परस्ती को आगे बढ़ाने वाले हैं। महबूबा मुफ्ती का पहला बयान यह है कि अगर कश्मीर के विशेषाधिकार पर कोई निर्णय हुआ तो फिर तिरंगे झंडे को लहराने वाला कोई नहीं होगा, उन्होंने तिरंगे झंडे को भारतीय झंडा कहा। महबूबा मुफ्ती का दूसरा बयान हुर्रियत नेताओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के विरुद्ध आया है। महबूबा ने कहा है कि हुर्रियत नेताओं के खिलाफ कार्रवाई से आतंकवाद को बढ़ावा मिलेगा तथा कश्मीर समस्या और उलझ जाएगी। इन दोनों बयानों को अगर भारतीय दृष्टि से देखा जाए तो फिर इसे बगावत की कसौटी पर ही रखना होगा।
कश्मीर में विशेषाधिकार के खिलाफ भारतीय सत्ता का कोई एक्शन प्लान नहीं है। यह सही है कि भारतीय सत्ता पर बैठी भाजपा के मूल में कश्मीर के विशेषाधिकार की समाप्ति है। यह सही है कि भाजपा धारा 370 के खिलाफ आवाज उठाती रही है और उसके खिलाफ जनमत तैयार कर सत्ता में भी आती रही है, पर सत्ता में आने के बाद भाजपा ने धारा 370 पर कोई नीति नहीं तैयार की है। कश्मीर में पी.डी.पी. के साथ सरकार बनाने के बाद भाजपा कह चुकी थी कि वह धारा 370 के खिलाफ कोई छेड़छाड़ नहीं करेगी। धारा 370 देश के लिए हानिकारक तो है ही, कश्मीर की जनता के लिए भी कोई लाभकारी नीति नहीं है। धारा 370 के कारण कश्मीर का विकास बाधित है, बाहर की आबादी वहां बस नहीं सकती है, व्यापार नहीं कर सकती है, उद्योग-धंधे स्थापित नहीं कर सकती है। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे जगमोहन ने अपनी पुस्तक में धारा 370 को कश्मीर के विकास के लिए हानिकारक करार दिया है। अब शांति पसंद कश्मीरी भी धारा 370 को विकास में बाधक मानने लगे है।
जहां तक हुर्रियत नेताओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का प्रश्न है तो किसी को भी देश के कानूनों से छेड़छाड़ करने और देश के कानूनों का उपहास बनाने की अनुमति कैसे दी जा सकती है, पाकिस्तानी पैसे पर पत्थरबाजी करने, हिंसा फैलाने की अनुमति कैसे दी जा सकती है? यह कौन नहीं जानता कि हुर्रियत के सभी नेता किसी न किसी समय खूंखार आतंकवादी रहे हैं। वे भारत सरकार की सुविधाओं पर राज करते रहे हैं और उन्हें भारतीय कानूनों का खौफ तक नहीं रहा है। वे सरेआम पाकिस्तान परस्ती करते रहे हैं। अब भारतीय सत्ता होश में आई है और हुर्रियत नेताओंको भारतीय कानूनों का पाठ पढ़ाने के लिए आगे आई है।
महबूबा मुफ्ती की हुर्रियत नेताओं के प्रति सहानुभूति समझ से परे है। महबूबा की आपत्ति पर राजनाथ सिंह का यह कहना सही है कि भारतीय कानूनों की सक्रियता होनी चाहिए और कानूनों को अपना काम करने देना चाहिए। महबूबा को समझ में आना चाहिए कि गुलाम कश्मीर के लोग अब भारत की ओर देख रहे हैं, उनके लिए पाकिस्तान एक खतरनाक देश साबित हुआ है। लद्दाख और जम्मू की जनता न तो पी.डी.पी. को चाहती है और न ही शेख अब्दुल्ला खानदान को। अपने बल पर जम्मू-कश्मीर में महबूबा या शेख खानदान भी सत्ता में नहीं आ सकता है। इसलिए ऐसे विघटनकारी बोल महबूबा के लिए लाभकारी भी नहीं हो सकते हैं। भारतीय सत्ता पहली बार बहादुरी और सही एक्शन में चल रही है।