जनसंख्या वृद्धि नियंत्रित करने के लिए अधिक सकारात्मक कदमों की जरूरत

Edited By Updated: 20 Jul, 2021 05:47 AM

more positive steps needed to control population growth

भारत में जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने को लेकर जोरदार बहस चल रही है। संसद के मानसून सत्र से पहले भाजपा शासित तीन राज्यों उत्तर प्रदेश, असम तथा कर्नाटक ने प्रोत्साहनों तथा प्रोत्साहन न देने के नियमों

भारत में जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने को लेकर जोरदार बहस चल रही है। संसद के मानसून सत्र से पहले भाजपा शासित तीन राज्यों उत्तर प्रदेश, असम तथा कर्नाटक ने प्रोत्साहनों तथा प्रोत्साहन न देने के नियमों के साथ दो बच्चों की नीति लाने का इरादा दर्शाया है। हालांकि उन्होंने खुल कर यह इशारा नहीं दिया है कि इसका मकसद मुस्लिम समुदाय को संकेत देना है, मगर संदेश स्पष्ट है। कुछ भाजपा सांसद मानसून सत्र के दौरान निजी सदस्यों के बिलों के माध्यम से राष्ट्रीय जनसंख्या नियंत्रण कानून को आगे बढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं।

1976 में संविधान के 42वें संशोधन के अंतर्गत सातवीं अनुसूची की तीसरी सूची में जनसं या नियंत्रण तथा परिवार नियोजन को शामिल किया गया था। इसने केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों को जनसंख्या नियमित करने के लिए कानून बनाने के योग्य बनाया। कम से कम एक दर्जन राज्यों ने किसी न किसी समय 2 बच्चों के नियम बनाए फिर भी हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा हिमाचल प्रदेश जैसे कुछ राज्यों ने नीति को रद्द कर दिया। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2017 में अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में इस मुद्दे को उठाया तथा जनसंख्या वृद्धि का सामना करने की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने लाल किले की प्राचीर से घोषणा की कि ‘अपने परिवार को छोटा रखना देश भक्ति का कार्य है। समय आ गया है कि हम इस चुनौती का सामना करें।’ 

एक के बाद एक आने वाली सरकारों ने जनसंख्या वृद्धि को नियमित करने का प्रयास किया है। फिर भी 1975 में आपातकाल के दौरान आवश्यक नसबंदी अभियान के बाद यह एक संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा बन गया। ‘पी’ यानी पॉपुलेशन शब्द। बहुत से राजनीतिक दलों के लिए ‘न-न’ है। कोई भी राजनीतिज्ञ उस समय के बलात  नसबंदी अभियान के बाद इसे नहीं छूना चाहता। यहां तक कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने परिवार नियोजन विभाग का नाम बदल कर परिवार कल्याण विभाग कर दिया। 

भारतीय जनसंख्या, जो स्वतंत्रता के समय मात्र 30 करोड़ थी, अब 1.34 अरब हो गई है। इसकी तुलना में इसी समय के दौरान चीन की जनसं या दोगुनी हुई है। भारत की जनसं या वृद्धि की र तार, जो अब 1.5 करोड़ प्रतिवर्ष है, विश्व में सर्वाधिक है। ऐसी संभावना जताई गई है कि 2050 तक यह 1.80 अरब हो जाएगी। लाखों लोगों की अभी भी स्वच्छ पानी, उचित भोजन, स्वास्थ्य सेवाओं तथा शिक्षा तक पहुंच नहीं है। अप्रबंधित सं या तथा अधिक मुंहों का अर्थ है स्रोतों पर और अधिक दबाव। यहां तक कि यदि 1947 से जनसं या दोगुनी भी हुई होती, इसका प्रबंधन किया जा सकता था मगर इसकी वृद्धि लगभग 5 गुणा हुई है जो चिंता का विषय होना चाहिए। 

जनसंख्या नीति का विरोध करने वालों का कहना है कि राष्ट्रीय उर्वरता दुखद रूप से गिर रही है। गत दशकों के दौरान पुनर्उत्पादन दर में निरंतर गिरावट देखी गई है जिसमें उत्तरी राज्यों के हिन्दी पट्टी इलाकों के मुकाबले दक्षिण राज्यों में अधिक तीव्र गिरावट दर्ज की गई है। विपक्षी जनसंख्या नियंत्रण के लिए किसी भी तरह के कड़े उपायों के खिलाफ हैं। उनका तर्क है कि एक अरब से अधिक जनसं या का जनसां ियकी लाभ है। गरीब परिवारों के लिए अधिक हाथों का मतलब है अधिक आय। इसके साथ ही यह प्रति व्यक्ति उच्च आय पात्रता भी लाता है। इससे भी बढ़ कर उत्तरी तथा पूर्वी राज्यों के लोगों के प्रवास ने दक्षिण तथा पश्चिम में वृद्धि बनाए रखने में मदद की है जहां पूर्वोत्तर दर कम है। 

हालांकि जनसंख्या वृद्धि का प्रबंधन करना आवश्यक है। भोजन के लिए अधिक मुंहों के होने का क्या मतलब है यदि स्रोत कम हैं? उल्लेखनीय है कि टैलीविजन तथा इंटरनैट के आविष्कार के साथ आकांक्षावान वर्ग भी बढ़ रहा है। जनसं या वृद्धि नियंत्रित करने के लिए अधिक सकारात्मक कदमों की जरूरत है। ऐसा करने के लिए बेहतरीन रास्ता जागरूकता पैदा करना, समाज के निम्र वर्ग को शिक्षा उपलब्ध करवाना तथा स्वैच्छिक परिवार नियोजन के लिए अधिक प्रोत्साहन देना होना चाहिए। यह किसी भी कीमत पर बाध्य नहीं होना चाहिए अन्यथा यह 1975 की पुनरावृत्ति होगी। 

यह याद रखा जाना चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र की 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत द्वारा अब तथा 2050 के बीच लगभग 27.30 करोड़ लोग शामिल किए जाने की संभावना है। यदि कोई कदम नहीं उठाया गया तो सर्वाधिक जनसं या वाला देश बनने के लिए भारत चीन को पीछे छोड़ देगा तथा जनसं या विशेषज्ञों के अनुसार सारी 21वीं शताब्दी के दौरान इसके पहले स्थान पर रहने की संभावना है। बेहतरी के लिए इस आ यान को बदलने की जरूरत है। अन्य सभी राजनीतिक दलों के साथ सलाह के बाद प्रधानमंत्री एक राष्ट्रीय जनसं या नीति बनाने का प्रयास करें और इस मुद्दे पर सर्वस मति बनाएं। सबसे बढ़कर लोगों के सहयोग के बिना कोई भी नीति सफल नहीं होगी।-कल्याणी शंकर 

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