नवाज शरीफ जानते थे कि पाकिस्तान में उनके साथ क्या होने वाला है

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Jul, 2018 12:53 AM

nawaz sharif knew what was going to happen to him in pakistan

पाकिस्तान में अकूत धन तथा सेना-आई.एस.आई. निर्देशित राजनीति और बाहरी उपभोग के लिए लोकतंत्र को बंधक बनाना साथ-साथ चलते हैं। भ्रष्टाचार के तीन मामलों में दोषी पाए जाने के बाद देश लौटने पर गत शुक्रवार की रात (13 जुलाई) अल्लामा  इकबाल हवाई अड्डे पर पूर्व...

पाकिस्तान में अकूत धन तथा सेना-आई.एस.आई. निर्देशित राजनीति और बाहरी उपभोग के लिए लोकतंत्र को बंधक बनाना साथ-साथ चलते हैं। भ्रष्टाचार के तीन मामलों में दोषी पाए जाने के बाद देश लौटने पर गत शुक्रवार की रात (13 जुलाई) अल्लामा  इकबाल हवाई अड्डे पर पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ तथा उनकी खूबसूरत बेटी मरियम को गिरफ्तार कर लिया गया, जो शरीफ तथा उनकी पाकिस्तान मुस्लिम लीग को 25 जुलाई को होने वाले चुनावों की प्रक्रिया से बाहर करने के बड़े सैन्य षड्यंत्र का एक हिस्सा है।

चतुर राजनीतिज्ञ नवाज एक मंझे हुए योद्धा हैं। वह जानते थे कि पाकिस्तान में उनके साथ क्या होने वाला है। वह अबुधाबी अथवा सऊदी अरब में रुक सकते थे। मगर उन्होंने सेना नियंत्रित प्रशासन के सामने घुटने टेकने की बजाय अपने देश की खूनी राजनीति में छलांग लगाने का निर्णय लिया। उनका विचार अपनी पार्टी को एक जीवंत राजनीतिक बल बनाए रखने का था। कोई हैरानी नहीं कि लंदन से रवाना होने से पूर्व उन्होंने एक वीडियो मैसेज में अपने समर्थकों से उनके साथ ‘मजबूती के साथ खड़े होने’ तथा ‘देश का भविष्य बदलने’ को कहा। मरियम ने भी अपनी बीमार मां कुलसुम, जो लंदन में कैंसर का उपचार करवा रही हैं, को देखने अस्पताल जाने के अपने चित्र पोस्ट किए हैं।

जाहिर है कि नवाज शरीफ अपनी पार्टी के समर्थकों का मनोबल बढ़ाने के लिए पाकिस्तान की ताकतवर सेना का सामना करते हुए एक ऊंचा दाव खेल रहे हैं, जो कथित रूप से 25 जुलाई के चुनावों को पूर्व क्रिकेटर इमरान खान के पक्ष में करने के लिए पर्दे के पीछे से काम कर रही है।

मैं निश्चित नहीं हूं कि उनकी पूर्व पत्नी रेहम खान की आत्मकथा जो एक साइट पर ई-बुक के तौर पर उपलब्ध है, 65 वर्षीय इमरान की चुनावी सम्भावनाओं को प्रभावित करेगी अथवा नहीं। पुस्तक पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के अध्यक्ष की अधिकतर खराब छवि पेश करती है। रेहम खान प्र्रधानमंत्री पद के लिए आशावान इमरान की छवि एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर पेश करती है जो ‘सैक्स, ड्रग्स तथा रॉक एन रोल’ का विचित्र जीवन जीता था।

उसनेे दावा किया है कि इमरान कुरान नहीं पढ़ सकता और वह ‘काले जादू में विश्वास करता है।’ उसके अनुसार इमरान ने एक बार स्वीकार किया था कि उसके कुछ ‘अवैध भारतीय बच्चे हैं।’ यह वास्तव में रुचिकर है। इमरान को पाकिस्तानी सेना के राजनीतिक समर्थन तथा अनपढ़ जनता का लाभ प्राप्त है जो पूर्व क्रिकेट सुपरस्टार की  प्रशंसक है। हालांकि इस्लामाबाद में राजनीति कोई सीधा खेल नहीं है।

पाकिस्तान आज एक नृशंस देश है। यह इसके जनरलों के व्यवहारों से स्पष्ट है। दरअसल पाकिस्तान में शक्ति बंदूक की नली से होकर बहती है। यहां तक कि सामान्य समय में भी सेना को अपने दाव खेलने के लिए जाना जाता है। हालांकि नवाज शरीफ के शासनकाल के चरम पर कुछ समय के लिए चीजें अलग दिखाई देती थीं, जब उन्होंने अब तक के सबसे बड़े बहुमत के साथ फरवरी 1997 में चुनाव जीता।

तब शरीफ की समस्या यह थी कि वह एक बेताज खलीफा के तौर पर उभरना चाहते थे। मगर पाकिस्तान में सत्ता के पेचीदा खेल में कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ गए और सशस्त्र बलों की संवेदनशीलता को नजरअंदाज कर दिया। उन्होंने पहले जनरल जहांगीर करामत को हटाया, दो अन्य जनरलों को पीछे छोड़कर जनरल परवेज मुशर्रफ को चीफ आफ द आर्मी स्टाफ नियुक्त कर दिया। चाहते हुए अथवा न चाहते हुए असैन्य शासन तथा सेना के बीच मतभेद के बीज उसी दिन बो दिए गए थे।

पीछे नजर डालें तो शरीफ ने जाहिरा तौर पर जनरल मुशर्रफ की शरारतपूर्ण क्षमताओं का सही आकलन नहीं किया।  एक विद्रोह में उन्होंने शरीफ को सत्ता से बाहर फैंक दिया। यह पाकिस्तानी राजनीति की एक ठेठ पद्धति है। विडम्बना यह है कि खुद मुशर्रफ पाकिस्तानी सत्ता के दायरे से बाहर हैं, हालांकि वह धूर्तता तथा धोखेबाजी के लिए जाने जाते हैं।

यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि एक बार सत्ता में आने के बाद एक सैन्य शासक अपनी पकड़ मजबूत बनाने को अधिमान देता है, जब तक कि वह अपने विरोधियों के हाथों मात न खा जाए। यह जनरल जिया-उल-हक के मामले में सच है, जिन्होंने 1977 में सत्ता हाथ में लेने के बाद 9 दिनों के भीतर पद त्यागने का वायदा किया था मगर उन्होंने 11 वर्षों तक शासन किया।

पाकिस्तान आज कई तरह के रोगों से ग्रस्त है।  इस मामले में इस्लामाबाद में सत्ता में खूनी कार्य है और जब किसी को कुचलने की बात आती है तो कोई भी किसी को बख्शता नहीं, न तो अल्लाह के नाम पर तथा न ही लोकतंत्र के नाम पर। हालांकि बाद में देश के तालिबानीकरण तथा आधिकारिक तौर पर धार्मिक आतंकवाद को गले लगाने ने सत्ता के पुराने समीकरणों को अव्यवस्थित कर दिया है। पाकिस्तान भ्रष्टाचार की कहानियों से भरा पड़ा है, न केवल सत्ता अधिष्ठान में बल्कि सैन्य बलों में भी।

नवाज शरीफ ने खुद को पाकिस्तानी विभाजन रेखा (सैन्य तथा असैन्य) के गलत ओर रख लिया। कोई हैरानी की बात नहीं कि उन्होंने खुद को सैन्य समॢथत ताकतों द्वारा फंसा पाया जैसा कि पनामा पेपर्स का भंवर। यह भी याद रखने की जरूरत है कि  नवाज शरीफ ने 9/11 के मुम्बई आतंकवादी हमले में आई.एस.आई. पर आरोप लगाकर खुद को सेना-आई.एस.आई. के साथ संघर्ष की स्थिति में पाया। नि:संदेह शरीफ का काम करने का तरीका पाकिस्तान में सत्ता के समानांतर केन्द्रों को पसंद नहीं आया।

कोई हैरानी की बात नहीं कि पाकिस्तान एक बार फिर चौराहे पर खड़ा है। इसके भविष्य के घटनाक्रम इस बात पर निर्भर करेंगे कि शरीफ जनरलों से मिलने वाली कई तरह की चुनौतियों से निपटने में कितने सफल होते हैं। दाव पर है लोकतंत्र का भविष्य जो आज सर्वशक्तिशाली सैन्य अधिष्ठान  तथा राजनीतिक खिलाडिय़ों की सामंती मानसिकता के बीच एक नाजुक संतुलन पर खड़ा है।  हरी जयसिंह 

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