विपक्ष को नई भाषा, नए नारे की जरूरत

Edited By ,Updated: 31 Jan, 2024 05:43 AM

opposition needs new language new slogans

लगभग 3 दशक पूर्व हमारे राजनेताओं द्वारा पैदा किया गया जाति का जिन्न पुन: राजनीतिक चर्चा में है क्योंकि जातीय आधार पर वोट बैंक बनना आसान है। अयोध्या में नव-निर्मित राम मंदिर में रामलला की मूॢत की प्राण-प्रतिष्ठा और हमारी चेतना का देव से देश तक...

लगभग 3 दशक पूर्व हमारे राजनेताओं द्वारा पैदा किया गया जाति का जिन्न पुन: राजनीतिक चर्चा में है क्योंकि जातीय आधार पर वोट बैंक बनना आसान है। अयोध्या में नव-निर्मित राम मंदिर में रामलला की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा और हमारी चेतना का देव से देश तक विस्तार करने और नए चक्र को आरंभ करने के आह्वान के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिहार के समाजवादी अन्य पिछड़े वर्ग के शीर्ष नेता और सामाजिक न्याय के मसीहा पूर्व मुख्यमंत्री स्व. कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर एक नया ब्रह्मास्त्र चला है। 

राम काज से लेकर गरीब काज तक भाजपा ने अपने हिन्दुत्व एजैंडा में अपने सामाजिक न्याय को भी जोड़ा है और उसे आशा है कि कर्पूरी ठाकुर को सम्मानित कर वह गैर-वर्चस्व वाली पिछड़ी जातियों विशेषकर अत्यधिक पिछड़ी जातियों के वोट में सेंध लगाएगी विशेषकर बिहार में जहां पर वह इन समुदायों को लुभाने में असफल रही है क्योंकि पिछड़ी जातियों के क्षत्रप नीतीश और लालू की उनमें अच्छी पैठ है और उनका उदय अत्यधिक पिछड़ी जातियों के लिए किए गए राजीतिक और प्रशासनिक उपायों के कारण हुआ है। 

किंतु प्रधानमंत्री का यह ब्रह्मास्त्र न केवल भाजपा को बिहार में हाल में हुए जातीय सर्वेक्षण और कांग्रेस द्वारा राष्ट्रव्यापी जातीय जनगणना के प्रभावों का मुकाबला करने में सहायता करेगा अपितु यादव समुदाय के 2 बड़े नेताओं बिहार की राजद लालू और परिवार तथा उत्तर प्रदेश के समाजवादी पार्टी के अखिलेश की अन्य पिछड़े वर्ग की राजनीति का भी मुकाबला करेगी और पार्टी को अत्यधिक पिछड़े वर्गों तथा सर्वाधिक पिछड़े वर्गों की हितैषी के रूप में भी प्रस्तुत करेगी और उनसे सीधी अपील भी कर सकेगी। विशेषकर नाई जैसे लगभग 200 अत्यधिक पिछड़े वर्गों के गैर-यादव समुदायों में अपनी पैठ बनाएगी तथा ठाकुर भी इन्हीं समुदायों में से एक है। 

यह सच है कि इससे पूर्व भाजपा दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों में अपनी पैठ बनाने का प्रयास कर रही थी किंतु वर्तमान में उसे आशा है कि वह हिन्दुओं को समग्र छत के नीचे हिन्दू वोटों को एकजुट करने में सफल होगी। वर्तमान में भाजपा को अन्य पिछड़े वर्गों का सर्वाधिक समर्थन प्राप्त है जो 1971 में 7 प्रतिशत था और 2009 में बढ़कर यह 22 प्रतिशत तक पहुंचा और 2019 में यह दोगुना होकर 44 प्रतिशत तक पहुंचा। 2019 के चुनावों में राजग को 54 प्रतिशत अन्य पिछड़े वर्गों का समर्थन मिला। मोदी स्वयं इसी समुदाय से हैं और इसलिए पार्टी दावा करती है कि अन्य पिछड़े वर्गों को आबंटन में अत्यधिक प्रतिनिधित्व दिया गया। 

इसके अलावा उनकी समस्याओं पर विचार करने के लिए न्यायमूर्ति रोहिणी अन्य पिछड़े वर्ग आयोग का गठन किया गया। यह कार्य एक संवैधानिक ढांचे के अंतर्गत किया गया और इससे राजग को अन्य पिछड़े वर्गों का समर्थन मिलने में सहायता मिली। केन्द्रीय मंत्रिमंडल में 28 अन्य पिछड़े वर्गों के मंत्री तथा 80 सांसद हैं। अन्य पिछड़ी जातियों के अनेक राज्यपाल हैं। स्वयं राष्ट्रपति मुर्मू आदिवासी समुदाय से हैं। इसके अलावा भाजपा ने जद (यू) के नीतीश की राजग में वापसी करवाई है क्योंकि वर्तमान में ये जातियां जद (यू) के साथ हैं। पार्टी ने विपक्ष द्वारा अंगूर खट्टे होने के आरोपों को नकारा है। 

विपक्षी इंडिया गठबंधन को एक बड़ा झटका यह भी लगा है और कांग्रेस बड़ी दुविधा में है। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी और केजरीवाल की ‘आप’ ने पंजाब में निर्णय किया है कि वे अकेले चुनाव लड़ेंगे। कांग्रेस ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का स्वागत किया है किंतु उसने कहा है कि यह केवल प्रतीकात्मक राजनीति है और राजनीति प्रेरित है और इसका उद्देश्य आगामी चुनावों में लाभ लेना है। राहुल गांधी ने कहा कि देश को वास्तविक न्याय की आवश्यकता है और जातीय जनगणना ठाकुर को एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी। जद (यू)के नीतीश कुमार ठाकुर की विरासत पर दावा करते हैं और उन्होंने ठाकुर को यह सम्मान देने का श्रेय लेने का प्रयास किया। राजद ने इसे भाजपा की राजनीतिक मजबूरियों और दिखावा द्वारा प्रेरित निर्णय कहा। 

नि:संदेह अत्यधिक पिछड़े वर्ग के नेता जननायक के नाम से लोकप्रिय ठाकुर को यह सम्मान देने से न केवल राजनीतिक परिदृश्य प्रभावित होगा क्योंकि सभी दलों में अन्य पिछड़े वर्गों और अत्यधिक पिछड़े वर्गों के मत प्राप्त करने की होड़ लगी है क्योंकि बिहार के जातीय सर्वेक्षण में उनकी संख्या 63 और 36 प्रतिशत है। राम मंदिर के उद्घाटन के साथ ‘इंडिया’ गठबंधन का गणित गड़बड़ा गया है जो मंदिर के बारे में भ्रामक संकेत दे रहा है। उन्हें भाजपा की सीधी अपील का प्रत्युत्तर देने के लिए नई भाषा और नए नारे की आवश्यकता होगी क्योंकि मोदी इसे धर्म और जाति से परे ले जा चुके हैं। 

अब विपक्षी गठबंधन को यह स्पष्ट करना होगा कि वह भाजपा को क्यों सत्ता से अलग करना चाहती है। ठाकुर एक गरीब परिवार से थे और उन्होंने बिहार के वंचित वर्गों में अपनी एक अमिट छाप छोड़ी और उन्हें न केवल पिछड़ी जाति की राजनीति के उदय का श्रेय दिया जाता है अपितु उन्हें इस बात का भी श्रेय दिया जाता है कि वे अन्य पिछड़ी जातियों के उत्थान को बढ़ावा देने वाले पहले नेता थे। वे कर्पूरी फार्मूला के नेता थे तथा 2 बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने अन्य पिछड़े वर्गों को 26 प्रतिशत आरक्षण दिया और इसी के चलते 1990 में मंडल कमीशन की सिफारिशों का आधार बना और बाद में जातीय जनणना का आधार बना जिसके बाद अत्यधिक पिछड़े वर्गों और सर्वाधिक पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का फार्मूला निर्धारित किया गया। 

‘इंडिया’ गठबंधन की सोच में जब जाति आजीविका के मुद्दों का केन्द्र बिन्दू बन जाता है जो पहचान और आरक्षण पर केन्द्रित हो, वे मानते हैं कि यह धर्म से अधिक चुनावी लाभ पहुंचाएगा। कांग्रेस के राहुल गांधी वोट प्राप्त करने के लिए जितनी आबादी, उतना हक का नारा दे चुके हैं और वे किसी भी तरह मोदी को सत्ता से हटाना चाहते हैं जबकि नीतीश ने 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा हटाने का आह्वान किया है। 

सरसरी तौर पर देखने से यह लगता है कि विपक्षी नेताओं द्वारा जातीय जनगणना का लक्ष्य अन्य पिछड़े वर्गों का कल्याण है। किंतु वास्तव में यह हिन्दू मतदाताओं को जातीय आधार पर विभाजित करने का प्रयास है ताकि 2024 के चुनावों में भाजपा कमजोर हो। एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता के शब्दों में ‘‘जातीय जनगणना से एक अन्य मुद्दा उठेगा और भाजपा के लिए समस्याएं पैदा होंगी। अब मोदी समर्थक बनाम मोदी विरोधी लड़ार्ई होगी और हम अन्य पिछड़े वर्गों को एकजुट करने का प्रयास करेंगे। यह मंडल 2$0 होगा जो मंडल 2$1 से अलग होगा जिसमें अन्य पिछड़े वर्गों को आक्रामक ढंग से एकजुट किया गया।’’ 

सभी को समान अवसर देने पर किसी को आपत्ति नहीं है किंतु क्या इससे समान परिणाम प्राप्त होंगे, यह एक बहस का विषय है। प्रश्न उठता है कि क्या जाति राष्ट्रीय राजनीति को और विखंडित नहीं करेगी। क्या 2024 के चुनाव जातीय आधार पर लड़े जाएंगे? भाजपा और विपक्ष क्या निर्धारित करते हैं, इसका न केवल इंडिया गठबंधन के चुनावी भविष्य अपितु स्वयं राजनीति के भविष्य पर भी प्रभाव पड़ेगा। क्या वे इस बात को समझेंगे? वर्ष 2024 के चुनाव रोचक होने जा रहे हैं।-पूनम आई. कौशिश 
 

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