लोकतंत्र का ‘शुभंकर’ है हमारी संसद

Edited By ,Updated: 24 Mar, 2023 04:32 AM

our parliament is the  mascot  of democracy

पिछले हफ्ते राहुल गांधी फिर से सुर्खियों में थे। सत्ताधारी दल जिसे संसद चलाने का काम सौंपा गया है, ने उस पूरे सप्ताह ठीक इसके विपरीत काम किया। संसद को तब तक चलने नहीं दिया जाएगा जब तक कि लंदन में अपने हाल के प्रवास के दौरान राष्ट्रविरोधी भाषण के लिए...

पिछले हफ्ते राहुल गांधी फिर से सुर्खियों में थे। सत्ताधारी दल जिसे संसद चलाने का काम सौंपा गया है, ने उस पूरे सप्ताह ठीक इसके विपरीत काम किया। संसद को तब तक चलने नहीं दिया जाएगा जब तक कि लंदन में अपने हाल के प्रवास के दौरान राष्ट्रविरोधी भाषण के लिए राहुल माफी नहीं मांग लेते। अब राहुल ने कुछ अनावश्यक टिप्पणियां की हैं जो उन्हें नहीं करनी चाहिए थीं। मेरे विचार से वे उत्तेजक और असभ्य थीं। 

ऐसे शब्दों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना आसान है जो आपका या उस विचारधारा का अपमान करते हैं जिसका आप प्रतिनिधित्व करते हैं। ‘मोदी इज इंडिया’ कहना निकृष्टतम रूप की चाटुकारिता है। ठीक वैसे ही जैसे कभी कहा गया था कि ‘इंदिरा इज इंडिया’। उन दिनों कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष जाने-माने चापलूस थे। मैं भाजपा के अध्यक्ष पर वही आरोप नहीं लगा सकता लेकिन मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि भाजपा सबसे प्रभावी और अच्छे प्रचार करने वाली मशीन है जो निर्दोष लोगों को उनके द्वारा प्रसारित असत्य पर विश्वास करा सकती है। 100 बार दोहराया गया झूठ जल्द ही सच हो जाता है और यह काला झूठ सफेद सच में परिवर्तित हो जाता है। राहुल गांधी ने उन्हें परेशान करने के लिए भाजपा के प्रचार प्रकोष्ठ को भरपूर गोला-बारूद दिया। 

आइए हम जांच करें कि युवा राहुल ने क्या कहा। मैं राहुल को युवा के रूप में वॢणत कर सकता हूं। वह ग्रे बालों की छंटनी की हुई दाढ़ी रखता है। लंदन के चैथम हाऊस में जहां एक स्थानीय थिंक टैंक का मुख्यालय है वहां उन्होंने कहा, ‘‘भारत में लोकतंत्र एक वैश्विक, सार्वजनिक भलाई है। यह हमारी सीमाओं से कहीं अधिक प्रभाव डालता है।’’यदि भारतीय लोकतंत्र ध्वस्त हो जाता है तो मेरे विचार से इस ग्रह पर लोकतंत्र को बहुत गंभीर संभवत: घातक झटका लगता है। इसलिए यह हमारे लिए महत्वपूर्ण है। हम अपनी समस्या से निपट लेंगे लेकिन आपको पता होना चाहिए कि यह समस्या वैश्विक स्तर पर आगे बढऩे वाली है। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय और अन्य मंचों पर राहुल गांधी की बातें बचकानी थीं। 

यह कहना कि हमारी सरकार द्वारा सिखों के साथ दोयम दर्जे के नागरिक जैसा व्यवहार किया जा रहा है न केवल गलत है बल्कि बहुत खतरनाक भी है। उन्होंने विदेशी देशों से हस्तक्षेप करने की अपील की थी। बस वही है जो इसका मतलब था-एक सीधा और सरल झूठ। राहुल गांधी शायद इस बात को कुछ अलग ढंग से रख सकते थे। उनके बयानों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संसद जोकि लोकतंत्र का शुभंकर है गतिहीन हो जाए। सत्ताधारी पार्टी शायद यही चाहती थी कि विवादास्पद मुद्दों पर चर्चा से राहत मिले। 

विदेशी भूमि पर विपक्ष की दुर्दशा पर विलाप करने की बजाय राहुल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे दुर्जेय प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ सफलता के एक मात्र नुस्खे पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उन्हें चुनाव में जीत की रणनीति बनानी होगी। उनकी पार्टी ने उन दो उत्तर पूर्वी राज्यों को भी खो दिया है जहां पहले दशकों तक कांग्रेस का दबदबा था। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ उनके द्वारा किया गया एक अच्छा प्रयास था। इसमें पार्टी के लिए लाभांश की संभावना को खोल दिया जिसका दुर्भाग्य से वह दोहन करने में विफल रही। भाजपा अब राजनीतिक परिदृश्य पर हावी है। इसे उसके ध्रुव स्थान से हटाने में विपक्षी एकता को अधिक समय लगेगा। जब तक भाजपा सत्ता खो नहीं देती तब तक विपक्ष में अन्य दलों के नेताओं की पीड़ा उसे परेशान करना जारी रखेगी। उन्हें आश्चर्य नहीं होना चाहिए अगर ई.डी. या सी.बी.आई. या फिर इंकम टैक्स उनके घरों में दस्तक दे जाए। 

भाजपा ने खेल के नियमों को फिर से लिखा है इस आधार पर कि सार्वजनिक ‘हमाम’ में हर नहाने वाला कपड़ा नहीं पहनता है। कांग्रेस पार्टी और उसके बाद सत्ता में आने वाली पार्टियों ने अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ केंद्रीय एजैंसियों का इस्तेमाल नहीं किया जैसा कि आज किया जा रहा है। कई चर्चित अपराधी पार्टी बदल कर भाजपा में चले गए हैं ताकि जांच एजैंसियों के राडार से बाहर हो सकें। चूंकि कई राजनेताओं के हाथ गंदे हैं। इसलिए उनका रुख भाजपा की ओर होगा। 
यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि ‘आप’ ने अपने किसी भी विधायक या नेता को भाजपा के हाथों नहीं खोया है। कांग्रेस पार्टी ने ‘गया राम’ के सबसे बड़े टुकड़े के साथ सांझेदारी की है। भाजपा ने कड़ी मेहनत की है और अपने स्वयं के कैडर पर मजबूत पकड़ बनाए रखी है। ‘आया राम गया राम’ दूर के भविष्य में अपनी शक्ति खो देगा। 

विदेश यात्रा के दौरान हम अपने राजनीतिक नेताओं के भाषणों पर वापस लौटते हैं। हमारे प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू द्वारा पैदा किए गए वंशवाद को बदनाम करने में कभी नहीं चूकते।  क्या वह विदेश में रहने के दौरान भी ऐसा करते हैं?
जब उन्होंने पहली बार प्रधानमंत्री के रूप में विदेश यात्रा की तो प्रैस में यह बताया गया कि उन्होंने उन लोगों को अपमानित किया था जो उनसे पहले कार्यालय में थे। वह दुनिया को यह बताने से कभी नहीं चूकते कि देश ने जो भी प्रगति की है वह केवल 2014 में शुरू हुई जिस वर्ष उन्हें भारत का प्रधानमंत्री बनाया गया।

यह सच है कि मोदी सातों दिन 24 घंटे काम करते हैं और उन्होंने बहुत कुछ हासिल किया है। खासकर बुनियादी ढांचे के विकास के क्षेत्र में लेकिन यह उनके लिए और उनके सबसे कुशल प्रचार मशीन के लिए लगातार यही बातें दोहराना सही नहीं है। 2014 से गति निश्चित रूप से बढ़ी है लेकिन काम 1947 में शुरू हो गया था। अगर मोदी को एक ऐसा भारत पेश किया गया होता जो 1947 में नेहरू-गांधी या उसके बाद आने वाले अन्य प्रधानमंत्रियों से अछूता था तो उन्होंने वह हासिल नहीं किया होता जो अब हम 2023 में देखते हैं। यह कार्य प्रगति पर है और यह काम निश्चित रूप से मोदी के कार्यकाल के बाद भी जारी रहेगा।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)
                  

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