आम आदमी के करीब होने की ओर ‘पद्म पुरस्कार’

Edited By ,Updated: 28 Jan, 2020 04:39 AM

padma award for being closer to common man

पद्म पुरस्कारों को लेकर एक धारणा रही है कि ये उन्हीं को मिलते रहे हैं, जिनके ड्राइंग रूम काफी बड़े होते हैं और जिनकी पहुंच बड़ी होती है ताकि राष्ट्रपति के हस्ताक्षर वाला विशालकाय प्रशस्ति पत्र  उनके ड्राइंग रूम की शोभा बढ़ाने में और योगदान दे सके।...

पद्म पुरस्कारों को लेकर एक धारणा रही है कि ये उन्हीं को मिलते रहे हैं, जिनके ड्राइंग रूम काफी बड़े होते हैं और जिनकी पहुंच बड़ी होती है ताकि राष्ट्रपति के हस्ताक्षर वाला विशालकाय प्रशस्ति पत्र  उनके ड्राइंग रूम की शोभा बढ़ाने में और योगदान दे सके। पर अब कुछ अनाम नाम आने के बाद ऐसा लगने लगा है कि अब ये मूर्त रूप में आ रहे हैं। राष्ट्र अब इस सूची में उन्हें देखने लगा है, जिनके लिए इन पुरस्कारों की अवधारणा की गई थी या यह कहा जाए कि ये जिस रूप में अंगीकार किए गए थे।

एक दौर तो ऐसा हो गया था कि हमेशा की तरह 25 जनवरी की रात राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद जब सूची जारी होती थी और उसमें नाम खोजने का सिलसिला शुरू होता था, जो सिर्फ दिल्ली, मुम्बई, बेंगलूर और चेन्नई वालों तक ही नाम सीमित रहते थे। हालांकि अब जो बदलाव आया है उसका मतलब यह भी नहीं है कि इस बार इन पुरस्कारों का विवादों से नाता नहीं रहा लेकिन फिलहाल बात सकारात्मक परिवर्तन की है। सबको पता है कि पद्म पुरस्कारों की मूलत: तीन श्रेणियां होती हैं। पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री। ज्यादातर इन पुरस्कारों के साथ भारतरत्न देने की परम्परा भी रही है।

कई बार ऐसा भी हुआ कि भारत रत्न देने की घोषणा इनके साथ नहीं हुई और उन्हें किसी और मौके पर घोषित किया गया। इस बार भी भारत रत्न की घोषणा अभी नहीं हुई है, जबकि पिछले साल तीन हस्तियों प्रणव मुखर्जी, नानाजी देशमुख और भूपेन हजारिका को यह सम्मान हासिल हुआ था। बीता साल चुनावी साल था और तब इन नामों पर राजनीतिक क्षेत्रों में हंगामा-सा मच गया था। नानाजी देशमुख भाजपाई समाजसेवी बता दिए गए और भूपेन हजारिका को भाजपाई गायक। यह भी तय है कि तीनों को ही भारत रत्न देने के पीछे अपने-अपने कारण होंगे। और जब आप चुनावी वर्ष में हों तो यह नजरिया आना स्वाभाविक है। प्रणव दा उन्हीं दिनों नागपुर में संघ के कार्यालय चले गए थे और राजनीतिक तूफान इतना मच गया कि कांग्रेस तक ने उन्हें भारत रत्न देने का स्वागत नहीं किया। पिछले साल लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल की भूमिका काफी बड़ी थी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का प्रणव प्रेम काफी चर्चा में रहा। 

खैर इस बार जब पद्म नामों की घोषणा हुई तो स्थितियां अलग थीं। किसने सोचा था कि फैजाबाद, जिसे अब अयोध्या जिले का नाम दे दिया गया है, के मोहम्मद शारिख का टूटा-फूटा घर भी राष्ट्रपति के इस प्रशस्ति पत्र का हकदार होगा। 80 साल के शारिख साहब की खासियत यह है कि पिछले 25 सालों में ऐसे 25 हजार से ज्यादा लोगों की अन्त्येष्टि कराई है, जिनके परिवारों या आसपास वालों के पास अंतिम संस्कार के लिए पैसे नहीं होते थे। लोग भले हंसी उड़ाते थे मगर मोहम्मद शारिख खामोशी से समाज की इस अनूठी सेवा में लगे रहे। किसी सरकार ने पहली बार उन्हें सम्मान दिया, वह भी पद्म सम्मान। अखिलेश यादव की सरकार की 10 लाख रुपए और 50 हजार रुपए महीने की वजीफे वाली योजना भी ऐसी थी कि शारिख का नाम नहीं दिखा। 5 साल तक उन्होंने और उनके पहले उनके पिता जी ने ऐसे न जाने कितने लोगों को उपकृत किया जिन्हें न तो पैसे की जरूरत थी, न सम्मान की। इस सूची में अमिताभ बच्चन, जया भादुड़ी का पूरा परिवार रह चुका है और या फिर समाजवादी दफ्तर में काम करने वाले लोगों समेत वही लोग रहे जिनसे यादव परिवार का कोई रिश्ता-नाता या काम रहा हो। 

पद्मश्री की सूची में लंगर बाबा के नाम से जाने जाते चंडीगढ़ के जगदीश आहूजा का नाम है। वह चंडीगढ़ में पिछले 39 सालों से भूखे और जरूरतमंद लोगों को खाना खिला रहे हैं। पुरस्कार मिलने पर उनकी पहली प्रतिक्रिया यही थी-अरे एक रेहड़ी चलाने वाले को इतना बड़ा सम्मान दे दिया। इस सूची में जम्मू के जावेद अहमद टाक का भी नाम है, जिन्होंने खुद ट्राई साइकिल पर चलते हुए जम्मू- कश्मीर के दिव्यांगों की जिंदगी में बहार लाने का काम किया। दिव्यांगों के पुनर्वास के लिए देश में सबसे बड़ा काम करने वाले एस. रामकृष्णन,  जो खुद भी पैरालिटिक हैं, का नाम भी है। नाम तो 63 साल के अब्दुल जब्बार का भी था जो पिछले 30 सालों से भोपाल गैस त्रासदी से पीड़ित लोगों के इलाज के लिए लगातार संघर्ष करते रहे। अच्छा तब और लगा जब तुलसी गौड़ा (72) नाम की कर्नाटक की सामाजिक कार्यकत्री जिन्होंने पेड़-पौधों के साथ औषधि ज्ञान को जोडऩे का बड़ा काम किया, का नाम भी दिखा। 

राही बाई सोमा पोपरे (कृषि संरक्षण के लिए काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की) पश्चिम बंगाल के अरुणोदय मंडल, सुदूर सुंदरबन में गरीबों का इलाज करने के लिए और असम के सुदूर बराक क्षेत्र में कैंसर का इलाज देने वाले मसीहा डा. रवि कानन, हिमालय की सुदूर वादियों में जानवरों से काटे गए लोगों और जल कर घायल होने वाले लोगों का 35 सालों से मुफ्त में इलाज करने वाले 81 साल के योगी एरन, सुंदरम वर्मा जिन्होंने राजस्थान जैसे राज्य में 50 हजार से ज्यादा ऐसे पौधे लगाए जो पेड़ बन गए, वह भी मात्र एक लीटर पानी के उपयोग की कला से, गरीब बच्चों को पढ़ाने का जूनून रखने वाले सब्जी विक्रेता हारेकला हजब्बा, आर्गैनिक हल्दी बोने की कला सिखा तीन गुना कमाई बढ़ा कर महिलाओं का जीवन स्तर बढ़ाने की कला सिखाने वाली तिरीनीति साओ, हाथियों के अद्भुत डाक्टर कहे जाने वाले कुशल कुंवर वर्मा, महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित क्षेत्र को हरा-भरा बनाने वाले पोपट राव पवार, साम्प्रदायिक सद्भाव को जीने वाले और भजन गायक रमजान खान उर्फ मुन्ना मास्टर का नाम अलग से दिखा। मुन्ना मास्टर के बेटे फिरोज का नाम कुछ लोगों को याद होगा जिनके बनारस विश्वविद्यालय में संस्कृत के अध्यापक होने को लेकर हंगामा हुआ था। इन सबको पद्मश्री से नवाजने की घोषणा की गई है। 108 हस्तियों की इस सूची में ऐसे भी नाम हैं जिनको लम्बे समय से सम्मान देने की दरकार थी। 

कला के क्षेत्र के लोग
कला के क्षेत्र में ऐसे कई कलाकारों का नाम दिखा जो लम्बे समय से कार्यरत थे। पटना के श्याम शर्मा और लेखक दया प्रकाश सिन्हा, लेखक योगेश प्रवीण ऐसे ही नाम हैं। उस्ताद अनवर खान और गायक सुरेश वाडेकर को इस पुरस्कार के लिए लम्बा इंतजार देखना पड़ा। यूं तो इस बार रुपए छापने की मशीन रखने वाले करण जौहर और टी.वी. क्वीन एकता कपूर के अलावा कंट्रोवर्सी क्वीन कंगना रानौत का भी नाम इस सूची में है। लेकिन सबसे ज्यादा बवाल तो गायक अदनान सामी को लेकर हुआ। अदनान सामी अब भारतीय नागरिक हैं और उनकी नागरिकता को लेकर काफी हंगामा हुआ था। अदनान सामी के सम्मान को सी.ए.ए. और एन.आर.सी. के विवाद से जोड़कर दिखाने की कोशिश विरोधियों ने की। आज से कुछ वर्ष पहले तक पद्म पुरस्कारों की सूची में डाक्टरों और कलाकारों, शिक्षाविदों के नामों की भरमार होती थी। ज्यादातर ये डाक्टर बड़े-बड़े संस्थानों से जुड़े होते रहे हैं। इस बार उनकी जगह परम्परागत चिकित्सा के ज्ञानियों को ज्यादा प्राथमिकता दी गई। 

कुछ वर्षों से बदली व्यवस्था
दरअसल पिछले कुछ वर्षों में पद्म पुरस्कार देने की व्यवस्था बदल दी गई है। वैसे मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में ही पारदॢशता की कोशिश शुरू कर दी गई थी। आम आदमियों से आवेदन मंगाए जाने के साथ ही इसके नियम-कानूनों को ज्यादा स्पष्ट कर देने की शुरूआत की गई थी। पर इसको मूर्त रूप लेने में दो-तीन वर्ष लग गए। अब आम आदमी भी अपना आवेदन भेज सकता है और इस बार तो 46 हजार से ज्यादा आवेदन आए। 2014 से पहले तक आमतौर पर दो हजार आवेदन होते थे। यानी अब बीस गुना ज्यादा। आवेदन आने के बाद इसके बाद इन सबको एक विशेष कमेटी से गुजरना होता है। इसके बाद गृहमंत्री से होते हुए प्रधानमंत्री ही इसके प्रमुख चयनकत्र्ता होते हैं। 

लेकिन अब भी यह कहना सही नहीं होगा कि सब कुछ साफ-साफ है जिन राजनीतिज्ञों के नाम इस सूची में आए हैं, उससे विवाद होना स्वाभाविक है। अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, जार्ज फर्नांडीज को पद्मविभूषण और मनोहर पाॢरकर को पद्म भूषण देने की घोषणा निश्चित रूप से सवालों को जन्म देती है। देखा जाए तो शुरू से ही लोक कार्यों और फिल्मी कलाकारों को दिए जाने वाले नामों पर विवाद होता रहा है। चाहे वह कांग्रेस की सरकार रही हो या फिर भाजपा की। पद्म पुरस्कारों में इनका नाम तमाम सवाल उठाता रहा है। इस बार भी है लेकिन इस बार लोगों को यह सूची सोचने पर मजबूर करेगी कि नरेन्द्र मोदी की सरकार ने कांग्रेस के उत्तर-पूर्व के बड़े नेता और नागालैंड के पूर्व मुख्यमंत्री एस.सी. जमीर का नाम क्यों पद्म भूषण की सूची में शामिल किया। या जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती की पार्टी के मुजफ्फर हुसैन बेग का नाम क्यों डाल दिया। विपक्षियों को सम्मान देने की रणनीति अभी तक कम ही देखी गई है। 

पिछले वर्ष शरद पवार भी पद्म विभूषण से सम्मानित हो चुके हैं। इस बार तो उत्तर-पूर्व से 13 हस्तियों को शामिल करना और लगभग हर क्षेत्र से मुसलमानों को रखना काफी महत्वपूर्ण है और यह रणनीतिक भी दिखता है। इसी तरह बंगलादेश के राजनयिक सैयद मुआजिम अली और पुरातत्वविद इनामुल हसन के नाम भी कुछ इशारा करते हैं। खासतौर से बंगलादेश से एन.आर.सी. विवाद को देखते हुए।-अकु श्रीवास्तव
 

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