माता-पिता बच्चों के लिए सब कुछ कुर्बान कर देते हैं मगर...

Edited By Pardeep,Updated: 13 Apr, 2018 03:42 AM

parents sacrifice everything for children but

मेरे लिए इससे अधिक सदमे वाली कोई और बात नहीं होती जब माता-पिता की देखभाल नहीं की जाती। मैंने एक दिन एक टी.वी. शो देखा जिसमें कर्नाटक के जोसेफ नामक एक व्यक्ति को दिखाया गया। कुछ वर्ष पहले तक वह एक सम्मानीय राजनीति विज्ञानी था। वह अब अपने घर के टैरेस...

मेरे लिए इससे अधिक सदमे वाली कोई और बात नहीं होती जब माता-पिता की देखभाल नहीं की जाती। मैंने एक दिन एक टी.वी. शो देखा जिसमें कर्नाटक के जोसेफ नामक एक व्यक्ति को दिखाया गया। कुछ वर्ष पहले तक वह एक सम्मानीय राजनीति विज्ञानी था। वह अब अपने घर के टैरेस पर वर्षा, हवा तथा धूप में कपड़े की एक छत के नीचे रह रहा है जबकि उसका बेटा नीचे फ्लैट में रहता है। जो लोग जोसेफ को याद करते हैं, वे बताते हैं कि राजनीतिक हलकों में वह एक शक्तिशाली तथा जाना-पहचाना नाम था। वह राजनीतिज्ञों के बहुत करीब था और राज्य के कुछ वरिष्ठ व्यवसायियों के अत्यंत नजदीक था। 

उसके एक सहानुभूतिपूर्ण पड़ोसी ने आसपास यह बात फैला दी कि कैसे यह गरीब बुजुर्ग व्यक्ति यातनाएं झेल रहा है। एक चैनल वहां गया और उसकी कहानी का पर्दाफाश किया। 85 वर्षीय जोसेफ को तब एक ओल्ड एज होम के साथ अस्पताल भी ले जाया गया। एक स्थानीय गैर-सरकारी संस्था (एन.जी.ओ.) ने सुनिश्चित किया कि उसे अच्छी चिकित्सा सहायता दी जाए। ऐसे एन.जी.ओ. देश भर में अकेले रह रहे बुजुर्ग लोगों के लिए बहुत शानदार कार्य कर रहे हैं। मैं जानती हूं कि गुरुग्राम में भी एक ऐसा ही एन.जी.ओ. है जो बहुत अच्छा है। इसके अंतर्गत लगभग 400 बुजुर्ग लोग हैं। देश भर में अब ऐसी बहुत-सी संस्थाएं हैं। इसके साथ ही मुझे खुशी है कि सरकार अब ऐसे मामलों में कठोर कानूनों बारे विचार कर रही है जहां बच्चे अपने माता-पिता की देखभाल नहीं करते। 

मैं सुनती हूं कि युवा अपने अभिभावकों को रेलवे स्टेशनों पर छोड़ जाते हैं, जो लोग विदेश जाते हैं, अपने माता-पिता को भुला देते हैं। मैं पंजाब तथा हरियाणा के साथ-साथ देश भर में बहुत से परिवारों को जानती हूं जिनके बच्चे विदेश चले गए हैं। वे वहां बहुत बढिय़ा जीवन बिता रहे हैं जबकि उनके माता-पिता, जिन्होंने उन्हें शिक्षित करने के लिए विदेश भेजने हेतु अपनी जमीनें बेच दीं, वे भूखों मर रहे हैं। कैसे ये बच्चे शांति से रह सकते हैं, वे अपने खुद के बच्चों को क्या सिखाएंगे? यह किस तरह की शिक्षा है? कहां है मानवीय प्रवृत्ति? मैं तो इसके बारे में सोचकर ही अवसाद में चली जाती हूं। कुछ बच्चे साल में 100 डालर भेज देते हैं जैसे कि उनके माता-पिता भिखारी हों। उनके माता-पिता की देखभाल पड़ोसी करते हैं। कम से कम गांवों में एक ऐसा समुदाय है जो एक-दूसरे की देखभाल करता है। बड़े शहरों में किसी को इस बात की भी परवाह नहीं होती कि उनका पड़ोसी कौन है? 

जब आप अभिभावक बनते हैं तो खुद को चांद पर पहुंच गया महसूस करते हैं। आप अपने बच्चों को सर्वश्रेष्ठ उपलब्ध करवाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। आप उन्हें बेहतरीन स्कूलों में दाखिल करवाते हैं और अपनी हैसियत के अनुसार उनका खर्चा उठाते हैं। आप ओवरटाइम कार्य करते हैं और बाकी परिवार को भूल जाते हैं। बच्चे आपका जीवन बन जाते हैं। आजकल आप उन्हें ब्रांडेड कपड़े, स्मार्टफोन्स और जाने क्या-क्या नहीं लेकर देते। खर्चे बहुत अधिक बढ़ गए हैं। अभिभावक बच्चों के लिए अपने जीवन में सब कुछ कुर्बान कर देते हैं। आजकल अपने बच्चों की आकांक्षाएं पूरा करना कठिन है, फिर भी अभिभावक अपनी तरफ से जितना अधिक हो सके, करते हैं। मगर जब माता-पिता बूढ़े होते हैं तो बच्चे अभिभावकों की देखरेख करना खुद पर बोझ समझते हैं। परमात्मा माफ करे, यदि आप जीवित हैं और आप ने अपना सब कुछ बच्चों के नाम कर दिया है तो वे आपको कर्नाटक के उस बेचारे व्यक्ति की तरह घर से बाहर फैंक देंगे। 

यह समाचार एजैंसी पुलिस स्टेशन गई और वरिष्ठ नागरिक सुरक्षा प्रकोष्ठ में शिकायत दर्ज करवाई। हैरानी होती है कि ऐसे और कितने अधिक मामले होंगे। वरिष्ठ नागरिकों के लिए पुलिस सुरक्षा हेतु परमात्मा का शुक्रिया। मगर हमारे कितने बुजुर्ग पुलिस में शिकायत दर्ज करवाते हैं या किसी अन्य को बताते हैं कि वे कितने नाखुश हैं? आखिरकार हमारे मनों तथा मेरी पीढ़ी के सिस्टम में ‘अपने घर की इज्जत का सवाल है’ बहुत गहरे समाया हुआ है। उस गरीब व्यक्ति के बच्चों को बुलाया गया और उन्हें माफी मांगनी पड़ी। हम जानते हैं कि जब किसी व्यक्ति की उम्र बढ़ती जाती है तो वह बच्चे की तरह हो जाता है, अधिक जिद्दी तथा कठिनाई से संभाला जाने वाला। यह बच्चों के लिए भी आसान नहीं होता क्योंकि आज की दुनिया में उन पर रोजमर्रा के जीवन में अपना अस्तित्व बचाए रखने का बोझ होता है। मगर आप कैसे अपने माता-पिता को नजरअंदाज कर सकते हैं? जो बीज आप आज बोएंगे वही फसल कल काटनी पड़ेगी। आपके बच्चे भी आपके साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे। 

यही कारण है कि हमारे अच्छे और पुराने संयुक्त परिवारों में बेहतरीन संस्कार थे और उन्हें सम्मान दिया जाता था। बच्चों को भी वहां से मानवता की शिक्षा मिलती थी। आज जब बच्चे इस तरह से बर्ताव करते हैं तो उन्हें कड़ी सजा देकर लोगों के लिए एक सबक पेश करना चाहिए। आज कोई भी अभिभावक आश्वस्त नहीं है कि क्या उनके बच्चे उनकी वृद्धावस्था में उन्हें शरण देंगे? उन्हें चिकित्सा सहायता अथवा ठीक-ठाक रहन-सहन उपलब्ध करवाने के बारे में तो भूल ही जाएं। जरूरत है सरकार संचालित और अधिक वृद्धाश्रमों तथा मध्यम वर्ग व अच्छी आय वाले परिवारों के लिए ‘पेड प्लेसिज’ की। अमीर व गरीब, मध्यम वर्ग आज इस मुद्दे पर एक राय हैं। वे अपने जीवन के अंत तक स्वतंत्रतापूर्वक रहना चाहते हैं न कि अपने बच्चों पर बोझ बनकर। ऐसे आवासों में वे एक-दूसरे को साथ, सहयोग तथा खुशी प्रदान कर सकते हैं। आखिरकार उन्हें वहां सम्मानपूर्वक भोजन तथा चिकित्सा सहायता मिलेगी। वे एक साथ हंस तथा रो सकेंगे। मुझे विश्वास है कि ऐसा ही मैं खुद अपने लिए भी चाहूंगी।-देवी चेरियन

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