कृपया हमें ‘1000 रुपए का नोट’ वापस दिला दो

Edited By ,Updated: 28 Jul, 2019 03:56 AM

please give us a  1000 rupee note

कैब ड्राइवर द्वारा मेरा 2000 रुपए का नोट लेने से इंकार करने के बाद सवारी का भुगतान करने के लिए आवश्यक चेंज लेने हेतु मुझे एक बड़े चाकलेट बार में जाना पड़ा। मुझे विश्वास है कि भारत में हममें से बहुतों को ऐसा ही अनुभव हुआ होगा। कई बार हमें कई अच्छे...

कैब ड्राइवर द्वारा मेरा 2000 रुपए का नोट लेने से इंकार करने के बाद सवारी का भुगतान करने के लिए आवश्यक चेंज लेने हेतु मुझे एक बड़े चाकलेट बार में जाना पड़ा। मुझे विश्वास है कि भारत में हममें से बहुतों को ऐसा ही अनुभव हुआ होगा। कई बार हमें कई अच्छे सौदे इसलिए छोडऩे पड़ते हैं क्योंकि हमारे पास छुट्टे रुपए नहीं होते। क्या नकदी के लेन-देन को कम परेशानीकुन बनाना सम्भव है? इस प्रश्र का उत्तर देने के लिए एक अधिक आधारभूत प्रश्र पूछना होगा: हम धन का इस्तेमाल क्यों करते हैं? 

अर्थशास्त्र की पुरानी पाठ्य पुस्तकों से पता चलता है कि वस्तुओं के लेन-देन के परिणामस्वरूप एक ही जैसी वस्तुएं हासिल करने की समस्या पैदा हो गई और धन एक समाधान के रूप में सामने आया। हालांकि इस प्रश्र के अधिक हालिया उत्तर अर्थव्यवस्था में धन की कहीं अधिक गहरी भूमिका को दर्शाते हैं। उदाहरण के लिए एक लेख में अर्थशास्त्री नारायण कोचेर्लाकोटा  तर्क देते हैं कि ‘धन याद्दाश्त है,’ जो धन के मूलभूत ‘रिकार्ड कीपिंग’ कार्य को रेखांकित करता है। 

हमारा कार्य अर्थव्यवस्था में योगदान डालता है। जो धन हम प्राप्त करते हैं वह इस योगदान के रिकार्ड के तौर पर कार्य करता है। रिकार्ड को एक स्थान से दूसरे स्थान पर और समय के पार भी ले जाया जा सकता है। लेखक किओताकी तथा मूर का कहना है कि ‘बुराई सभी तरह के धन की जड़ है।’ वे कहते हैं कि विश्वास की कमी अथवा साख की पुष्टि करने में कठिनाई धन की मांग को बढ़ाती है। उदाहरण के लिए एक पारम्परिक ग्रामीण अर्थव्यवस्था में व्यापार विश्वास पर आधारित हो सकते हैं। हालांकि गांवों के बीच व्यापार के लिए कुछ अधिक की जरूरत होती है-लेन-देन का वैश्विक तौर पर स्वीकार्य माध्यम जैसे कि धन। उसके साथ आप किसी पूर्णतया अंजान व्यक्ति के साथ भी व्यापार कर सकते हैं। 

लाभकारी लेन-देन संभव
उपरोक्त कारण यह भी सुझाते हैं कि धन लाभकारी लेन-देन को सम्भव बनाता है जो अन्यथा छोड़ दिए जाते हैं। धन के साथ लाभकारी लेन-देन की कुल संख्या में बढ़ौतरी होती है। अर्थशास्त्रियों का धन के ‘आवश्यक’ होने का यही अर्थ है। नोटबंदी के बाद नौकरियों तथा उत्पादन में आई कमी भारत में नकदी की किसी आवश्यकता को प्रदशर््िात करती है। यह देखते हुए कि धन आवश्यक है, क्या अन्य के अलावा कुछ और करंसी नोट ‘आवश्यक’ हैं? दूसरी तरह से देखें तो क्या विभिन्न मूल्य के नोटों की उपलब्धता में बदलाव का अर्थव्यवस्था में किए जा रहे लाभकारी व्यापार की कुल संख्या पर कोई असर पड़ेगा? इसके लिए प्रिंसीपल ऑफ लीस्ट एफर्ट लागू होता है, जिसके लिए मैद्रिक इकाइयों (नोट अथवा सिक्के) की संख्या को (लेन-देन के साथ-साथ इसकी उत्पादन लागत को देखते हुए) न्यूनतम करने की जरूरत होती है। 

शोध बताते हैं कि मुद्रा के मूल्य वर्ग का सर्वोत्तम ढांचा दो कारकों पर निर्भर करता है-उच्च मूल्य वर्ग अपने से तुरंत नीचे वाले मूल्य वर्ग से दोगुना हो। भारतीय मुद्रा ढांचा काफी हद तक इस नियम का पालन करता है। सिक्के 1, 2, 5, 10 रुपए मूल्य के हैं जबकि नोटों का नीचे वाला सैट इसी तरह 5,10, 20, 50 तथा 100 रुपए का है। यही ढांचा उच्च मूल्य वर्ग की भारतीय मुद्रा में दिखाई देता था लेकिन नवम्बर 2016 तक। हमारे पास 100, 500 तथा 1000 रुपए के नोट थे लेकिन 200 का नहीं। नोटबंदी के बाद उच्च मूल्य वर्ग नोटों का ढांचा 2000 रुपए का नोट शामिल करने तथा 1000 रुपए के नोट को हटाने के बाद एकतरफा बन गया, हालांकि 200 रुपए के नोट को शामिल करना एक स्वागतयोग्य कदम था। 

2000 का नोट स्वीकार करने में हिचकिचाहट
कैब की सवारी करने का उदाहरण ऑप्टीमल स्पेसिंग नियम पर न चलने के व्यावहारिक परिणामों को प्रदॢशत करता है। चूंकि लोग बड़े नोटों की बजाय छोटे मूल्य वर्ग के नोटों के मिश्रण को अधिमान देते हैं इसलिए सम्भावना यही है कि वे लेन-देन में 2000 रुपए के नोट को स्वीकार करने में हिचकिचाएंगे। इसका कारण 500 तथा 2000 के नोटों के बीच किसी मूल्य वर्ग के नोट का अभाव होना है। अत: यह आवश्यक हो जाता है कि 2000 के नोट को स्वीकार करने तथा चेंज वापस करने के लिए उनके पास 500 रुपए के अधिक नोट हों। 

यह कम कीमत के नकद लेन-देन की लागत को बढ़ाता है और अनचाहे व्यापार के रूप में कार्य क्षमता को कम करता है। अब शायद सरकार ने जानबूझ कर 1000 रुपए के नोट को समाप्त करके नकद लेन-देन को महंगा बनाया है। हो सकता है मैं बड़े मूल्य वर्ग के नोट के लाभों को नजरअंदाज कर रहा होऊं-बड़े नकद लेन-देन की कम लागत। मगर यह देखते हुए कि गृहस्थ सम्भवत: कम कीमत के लेन-देन अधिक करते हैं तो निम्र मूल्य वर्ग के नोटों की संख्या (500, 200 तथा 100 रुपए के) को बढ़ाना समझ में आता है। 

ऐसा दिखाई देता है कि भारतीय रिजर्व बैंक 1000 रुपए के नोट को पुन: शामिल करने पर काम कर रहा है। 1000 रुपए का नोट बड़े मूल्य के नकद लेन-देन में कुछ बचत करने में मदद करेगा, जिससे यह 2000 रुपए के नोट से अधिक आवश्यक बन जाएगा। तो क्यों नहीं इस सुधार की ओर कदम आगे बढ़ाया जाता? 2000 रुपए के नोट को समाप्त कर 1000 रुपए का नोट शामिल किया जाता।-पी. वाकनिस

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