आधुनिक भारत के जन्मदाता थे पं. जवाहर लाल नेहरू

Edited By ,Updated: 14 Nov, 2021 03:26 AM

pt jawahar lal nehru was the father of modern india

देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का देहावसान हुए लगभग 57 वर्ष हो गए हैं, पर राजनेताओं द्वारा फैलाई भ्रांतियां अभी तक उनका पीछा कर रही हैं। तीन ऐतिहासिक भूलें पंडित

देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का देहावसान हुए लगभग 57 वर्ष हो गए हैं, पर राजनेताओं द्वारा फैलाई भ्रांतियां अभी तक उनका पीछा कर रही हैं। तीन ऐतिहासिक भूलें पंडित नेहरू को पुन: जीवित कर जाती हैं। जैसे कि वह भारत-विभाजन के उत्तरदायी थे, कश्मीर-समस्या पंडित नेहरू की देन है और यह कि वह चीन द्वारा भारत पर हुए 1962 के आक्रमण और भारत की शर्मनाक हार के सदमे को न सहते हुए संसार से विदा हो गए। उन्होंने चीन  पर अंध विश्वास किया। वगैरह-वगैरह। 

फिर भी मैं यह कहूंगा कि देश के पहले प्रधानमंत्री पूर्व और पश्चिम का हृदय और बुद्धि का, विचारों और कार्यों का सुंदर समन्वय थे। शारीरिक सौंदर्य और बौद्धिक वैभव की मूर्ति थे। गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर जी ने उन्हें ‘हृदय सौंदर्य का पुष्पित गुलाब’ कहा तो आचार्य नरेन्द्र देव ने उन्हें एक करिश्मा और प्रजातंत्र का मानदंड कहा। स्वयं महात्मा गांधी कहा करते थे ‘कि जवाहर लाल नेहरू हमारी आजादी की लड़ाई का सेनापति है। वह मोती-सा उजाला और शीशे-सा आबदार है। देश का झंडा उसके हाथों में सदा ऊंचा रहेगा।’ 

यह सच है कि जवाहर लाल नेहरू के रहते देश का चतुर्दिक विकास हुआ। उन्होंने विज्ञान और उद्योग के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित किए। उन्होंने तटस्थता को भारत की विदेश नीति बनाया। वह एक सफल प्रशासक, महान चिंतक और साहित्यकार थे। विश्व शांति के लिए उनका ‘पंचशील सिद्धांत’ युद्ध रोधक यंत्र था, जिसे चीन ने पांव तले रौंद दिया। उनके द्वारा लिखित ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ एवं ‘पिता के पत्र पुत्री के नाम’ क्लासिकल साहित्य रचनाएं हैं। एक समाज सुधारक के रूप में उन्होंने अपनी दोनों बहनों-विजया एवं कृष्णा और अपनी पुत्री इंदिरा का अंतर्जातीय विवाह कर जात-पात जैसे बंधनों पर कड़ा प्रहार किया। 

पंडित नेहरू, स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री ‘चाचा नेहरू’ आधुनिक भारत के जन्मदाता थे। उन्होंने प्रजातांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष, बहुवादी और मजबूत भारत की नींव रखी। उनमें देश की जनता को समझने की गहरी समझ थी। सौम्यता, सरलता, सादगी और अपने विरोधियों को भी सम्मान देना उनकी आदत थी। इस लेख में भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, जब वह राज्यसभा के सदस्य हुआ करते थे, द्वारा 29 मई, 1964 को नेहरू जी को दी गई श्रद्धांजलि के कुछ अंश आपकी सेवा में प्रस्तुत करूंगा, ताकि देश की जनता पंडित जवाहर लाल नेहरू की महानता को समझ सके। 

वाजपेयी नेहरू जी की मृत्यु के समय विपक्ष में थे। मैं हैरान हूं कि एक विपक्षी नेता पंडित नेहरू जी के संबंध में ऐसी धारणा रखता था? तनिक नेहरू जी के प्रति वाजपेयी के श्रद्धासुमन तो देखें- ‘‘एक सपना था जो अधूरा रह गया। एक गीत था जो गूंगा हो गया। एक लौ थी जो अनंत में लीन हो गई। सपना था एक ऐसे संसार का जो भय और भूख से रहित होगा, गीत था एक ऐसे महाकाव्य का जिसमें गीता की गूंज और गुलाब की गंध थी, लौ थी एक ऐसे दीपक की जो रात भर जलता रहा, हर अंधेरे में लड़ता रहा और हमें रास्ता दिखाकर एक प्रभात में निर्वाण को प्राप्त हो गया। भारत माता आज शोकमग्र है- उसका सबसे लाडला राजकुमार खो गया। जन-जन की आंख का तारा टूट गया। वह शांति के पुजारी, किंतु क्रांति के अग्रदूत थे। वह अहिंसा के उपासक थे परन्तु स्वाधीनता और सम्मान की रक्षा के लिए हर हथियार से लडऩे के हिमायती थे। 

वह व्यक्तिगत स्वाधीनता के समर्थक थे किंतु आर्थिक समानता लाने के लिए सदैव कटिबद्ध थे। उन्होंने किसी से समझौता करने में भय नहीं खाया, किंतु किसी से भयभीत होकर समझौता भी नहीं किया। चीन और पाकिस्तान  के प्रति उनकी नीति इसी अद्भुत सम्मिश्रण की प्रतीक थी, जिसमें उदारता भी थी, दृढ़ता भी थी। यह दुर्भाग्य है कि कुछ लोगों ने उनकी दृढ़ता को हठवादिता समझा। मुझे याद है कि हमारे पश्चिमी देशों के मित्र कश्मीर के प्रश्र पर चाहते थे कि भारत पाकिस्तान से समझौता कर ले परन्तु नेहरू जी ने क्रोध से कहा कि पाकिस्तान से समझौता नहीं होगा। हम दोनों मोर्चों पर लड़ेंगे, पर किसी के दबाव में नहीं आएंगे। 

जिस स्वतंत्रता के वह सेनानी और संरक्षक थे, आज वह स्वतंत्रता संकटापन्न है। सम्पूर्ण शक्ति के साथ हमें उसकी रक्षा करनी होगी। जिस राष्ट्रीय एकता और अखंडता के वे उन्नायक थे, आज वह विपदाग्रस्त है, हर मूल्य चुका कर हमें उसे कायम रखना है। जिस लोकतंत्र की उन्होंने स्थापना की, उसे सफल बनाया, आज उसके प्रति भी आशंकाएं प्रकट की जा रही हैं। हमें अपनी एकता से, अनुशासन से, अपने आत्मविश्वास से इस लोकतंत्र को सफल करके दिखाना होगा। यदि हम सब अपने को एक महान उद्देश्य के लिए समॢपत कर सकें, जिसके अंतर्गत भारत सशक्त, समर्थ और समृद्ध हो और स्वाभिमान के साथ विश्वशांति की चिरस्थापना में अपना योगदान दे सकें तो हम उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करने में सफल होंगे। 

वह व्यक्तित्व, वह जिंदादिली, विरोधी को भी साथ लेकर चलने की भावना, वह  सज्जनता, वह महानता शायद निकट भविष्य में देखने को न मिलेगी। मतभेद होते हुए भी उनके महान आदर्शों के प्रति, उनकी प्रामाणिकता के प्रति, उनकी देशभक्ति के प्रति, उनके अटूट साहस और दुर्गम धैर्य के प्रति हमारे हृदयों में आदर के अतिरिक्त और कुछ नहीं।’’

वाजपेयी जी की यह श्रद्धांजलि पंडित जवाहर लाल नेहरू के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का सार है। गलतियां हुई होंगी परन्तु पंडित नेहरू कतई ये गलतियां  नहीं करना चाहते थे। नेता कई बार समय, स्थान और परिस्थितियों के अधीन होता है। आओ मिल कर नेहरू के सपनों को साकार करने में जुट जाएं। जो चला गया उसके गुणों को देखें। नेहरू महान था, महान ही रहेगा। उस हुतात्मा को श्रद्धासुमन।-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)

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