राम मंदिर तथा कश्मीर के ‘ऐतिहासिक निर्णय’

Edited By ,Updated: 15 Nov, 2019 01:39 AM

ram temple and kashmir s  historic decisions

2019 का यह वर्ष भारत के इतिहास में दो अत्यंत महत्वपूर्ण राष्ट्रीय सम्मान की घटनाओं के लिए हमेशा याद किया जाएगा। मुझे इस बात का सौभाग्य प्राप्त है कि दोनों घटनाओं से मैं व्यक्तिगत रूप से और हिमाचल के साथ भी जुड़ा हुआ हूं। 1951 में भारतीय जनसंघ की...

2019 का यह वर्ष भारत के इतिहास में दो अत्यंत महत्वपूर्ण राष्ट्रीय सम्मान की घटनाओं के लिए हमेशा याद किया जाएगा। मुझे इस बात का सौभाग्य प्राप्त है कि दोनों घटनाओं से मैं व्यक्तिगत रूप से और हिमाचल के साथ भी जुड़ा हुआ हूं। 

1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई। डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जनसंघ के अध्यक्ष बने। उन्हीं दिनों शेख अब्दुल्ला और उनकी पार्टी कश्मीर को पूरी तरह से भारत से अलग करने का प्रयत्न कर रहे थे। प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और केन्द्र सरकार की शेख अब्दुल्ला के साथ निकट मित्रता थी। दो विधान, दो निशान और दो प्रधान बन गए थे परन्तु कश्मीर को पूरी तरह से भारत से अलग करने का षड्यंत्र भी रचा जा रहा था। भारतीय जनसंघ ने अपने जन्म के प्रारम्भ में ही इस महत्वपूर्ण राष्ट्रीय प्रश्र पर आंदोलन करने का निर्णय किया। डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने लोकसभा में यह मामला उठाया परन्तु उस समय कांग्रेस का प्रबल बहुमत था और सब कुछ नेहरू जी की इच्छा पर होता था।

भारतीय जनसंघ ने यह अनुभव किया कि कश्मीर भारत मां का मुुकुट है और उसका भारत से अलग होना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण होगा। उस समय भारतीय जनसंघ पूरे देश में नहीं फैला था। संगठन का ताना-बाना भी अभी बुना नहीं गया था परन्तु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पूरा सहयोग होने के कारण देश के बहुत से भागों में जनसंघ की स्थापना होने लगी थी। भारतीय जनसंघ ने एक देशव्यापी आंदोलन प्रारम्भ करने की घोषणा की। उस समय कश्मीर में प्रवेश करने के लिए परमिट लेना पड़ता था। पूरा नहीं तो आधे रूप से कश्मीर भारत से अलग हो ही गया था। डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने घोषणा की कि वह परमिट का नियम तोड़ कर कश्मीर जाएंगे। छोटे से भारतीय जनसंघ ने एक बहुत बड़ा निर्णय करने का साहस किया। हिन्दू महासभा और राम राज्य परिषद जनसंघ से भी बहुत छोटी नाममात्र की पार्टियां थीं। वे दोनों साथ आ गईं। पूरे देश से सत्याग्रही आकर पठानकोट और जम्मू में सत्याग्रह करने लगे। डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बिना परमिट के कश्मीर में प्रवेश किया। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 

मैं 1951 में मैट्रिक पास करने के बाद घर-परिवार छोड़ संघ प्रचारक बन कर कांगड़ा चला गया था। एक वर्ष बाद मां ने आग्रह किया कि कुछ समय के लिए घर वापस आकर अपनी बहन के विवाह का प्रबंध करूं। पिता जी का स्वर्गवास हो चुका था। माता जी का आदेश मान कर दो वर्ष के लिए वापस आया। पिता जी के मित्र पंडित अमरनाथ जी ने सहायता की और बैजनाथ के निकट कृष्णनगर स्कूल में अध्यापक लग गया। अध्यापक लगे केवल 17 दिन हुए थे कि मुझे सत्याग्रह करने के लिए कहा गया। घर-परिवार सब कुछ छोड़ कर दो साथियों को लेकर पठानकोट गया। सत्याग्रह किया और पहले गुरदासपुर, फिर हिसार की जेल में 8 मास रहा। कुछ दिन के बाद कश्मीर की जेल में डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बड़ी संदिग्ध परिस्थितियों में स्वर्गवास हो गया। उससे आंदोलन और अधिक उग्र हो गया। हजारों लोग जेलों में गए, बहुत से लोग जेलों में बीमार हुए, कुछ मर गए। 19 सत्याग्रही पुलिस की गोलियों से शहीद हुए थे। 

सदियों से विवाद उलझा रहा
वर्षों से नहीं, सदियों से अयोध्या में राम मंदिर का विषय उलझा रहा। विश्व के इतिहास में शायद ही किसी देश के करोड़ों लोगों की श्रद्धा के केन्द्र किसी महापुरुष का मंदिर बनाने का मामला इतना लम्बे समय तक चला हो। पिछले कई दिनों से सभी समाचारपत्रों में वह लम्बा वर्णन छपा है। राम मंदिर की समस्या के समाधान के लिए भारतीय जनता पार्टी का प्रबल आंदोलन और उस आंदोलन के बाद राष्ट्रव्यापी प्रबल समर्थन और फिर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय इस सारी ऐतिहासिक घटना के पीछे 1989 में हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में भारतीय जनता पार्टी द्वारा पास किया गया प्रस्ताव है। 

छोटे से पालमपुर के छोटे से रोटरी भवन में एक बहुत बड़े इतिहास की नींव रखी गई थी। पालमपुर की उस राष्ट्रीय कार्य समिति के प्रबंध का सारा काम भी मेरे नेतृत्व में हो रहा था और कार्य समिति का सदस्य होने के कारण मैं उस प्रस्ताव को पारित करने में भी शामिल था। उसके बाद लाल कृष्ण अडवानी जी की रथ यात्रा और पूरे भारत में एक प्रबल जनमत जागृत होना इस निर्णय के इतिहास का एक सफल मील पत्थर है। 

6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में मस्जिद गिराए जाने के बाद जब हिमाचल की सरकार को भंग किया गया तो भी मैं प्रदेश का मुख्यमंत्री था। देश के न्याय के इतिहास में यह भी एक विचित्र घटना है कि मस्जिद तो अयोध्या में गिराई गई। गिराने वाले पूरे देश से आए थे परन्तु उसमें भाजपा की सरकारों को भी अपराधी माना गया। कोई मुख्यमंत्री और मंत्री अयोध्या नहीं गया था। सीधे तौर पर किसी सरकार का किसी प्रकार का कोई सहयोग मस्जिद गिराने में नहीं था। विश्व के न्याय के इतिहास में शायद कभी कहीं ऐसा अन्याय नहीं हुआ होगा। जब चंद्रशेखर प्रधानमंत्री थे तो भैरों सिंह शेखावत जी ने उनके साथ मिलकर राम मंदिर का सहमति से समाधान निकालने की कोशिश की परन्तु समाधान नहीं निकला। 

एक बार प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने भाजपा के हम चारों मुख्यमंत्रियों को बुलाया और बड़ी भावुकता और क्रोध से हमारी ओर देखकर कहा, ‘‘आप क्या समझते हैं कि मैं हिन्दू नहीं हूं। मैं भी किसी से कम हिन्दू नहीं। मैं भी राम मंदिर बनाना चाहता हूं। आप एक काम करिए, अपने नेताओं को मनाइए। मस्जिद की जगह को छोड़कर अन्य किसी भी स्थान पर मंदिर बनाते हैं। मंदिर बनाने में मैं सबसे आगे रहूंगा।’’ कह कर वे गंभीरता से हमारी ओर देखने लगे। कुछ देर बैठ कर हमने चर्चा की। मैं और भैरों सिंह जी सहमत थे। 

हम दोनों अटल जी के पास गए, वे भी सहमत थे परन्तु बाकी नेता नहीं माने। आज सोचता हूं यदि नरसिम्हाराव जी का सुझाव मान लिया जाता तो आज इतिहास कुछ और होता। मस्जिद का ढांचा न टूटता। उसके बाद होने वाले दंगों में सैंकड़ों लोग न मरते और आज से बहुत पहले भव्य मंदिर बन गया होता। सबसे बड़ी बात यह है कि विश्व के इतिहास में हिंदुओं पर मस्जिद तोडऩे का यह पहला आरोप न लगता परन्तु जो होना होता है वही होता है और वही हुआ और जैसे होना होता है वैसे ही होता है। अब जो हुआ वही अच्छा है। 

पालमपुर में राम मंदिर प्रस्ताव के बाद पूरे देश में आंदोलन तीव्र हो गया और मैं प्रदेश के 1990 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में लग गया। हिमाचल के इतिहास में पहली बार पालमपुर से शिमला तक की 14 दिन की पद यात्रा प्रारम्भ की। शिमला में ऐतिहासिक जनसभा हुई। उसमें अटल बिहारी वाजपेयी और श्रीमती सुषमा स्वराज आई थीं। सभा का मैदान छोटा था। चारों तरफ ऊंची छोटी पहाडिय़ों पर हजारों लोग बैठे थे। श्रीमती सुषमा स्वराज ने अपने भाषण में कहा, ‘‘मैंने वृक्षों से भरे हुए पहाड़ों को तो देखा है परन्तु मनुष्यों से भरे पहाड़ जीवन में पहली बार देखे हैं।’’ उसी सभा में आदरणीय अटल जी ने कहा था, ‘‘शांता कुमार ने ऐतिहासिक पद यात्रा की। हिमाचल की जनता पूरी तरह से भाजपा के साथ है।’’ 

6 दिसम्बर को अयोध्या में मस्जिद का ढांचा टूटा और उसके बाद भाजपा की सरकारों को भंग कर दिया गया। इस प्रकार राम मंदिर के आंदोलन में हिमाचल अंत तक जुड़ा रहा। केन्द्र की भाजपा सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति कश्मीर विलय के लिए योग्य पूर्व तैयारी तथा सुप्रीम कोर्ट के संतुलित निर्णय से इतने बड़े समाधान के बाद भी पूरे देश में सद्भाव का वातावरण तैयार है, देश का बहुत बड़ा सौभाग्य है।-शांता कुमार

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!