नारों से नहीं आचरण से बचेगा सनातन हिंदू धर्म

Edited By ,Updated: 16 Oct, 2023 06:32 AM

sanatan hindu dharma will be saved not by slogans but by conduct

जब से सोशल मीडिया घर-घर पहुंचा है सब ने अपने परिवारों और मित्रों के ह्वाट्सऐप ग्रुप बना लिए हैं। जिनमें पारिवारिक समाचार से लेकर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर रात-दिन बहस चलती रहती है। हमारे परिवार के भी चार पीढ़ी के सदस्य, जो भारत सहित...

जब से सोशल मीडिया घर-घर पहुंचा है सब ने अपने परिवारों और मित्रों के ह्वाट्सऐप ग्रुप बना लिए हैं। जिनमें पारिवारिक समाचार से लेकर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर रात-दिन बहस चलती रहती है। हमारे परिवार के भी चार पीढ़ी के सदस्य, जो भारत सहित दुनिया के कई देशों में रहते हैं, ऐसे ग्रुप के सदस्य हैं। हमारे इस समूह में 3 खेमे बंटे हुए हैं; पहला जो मोदी जी के अंधभक्त हैं। दूसरा जो ङ्क्षहदुत्व के घोर समर्थक हैं और तीसरा वो जो ईश्वर में तो आस्था रखते हैं परंतु हिंदू रीति-रिवाजों या मंदिर जाने में उनकी श्रद्धा नहीं है। 

आजकल टी.वी. मीडिया में रोजाना जिस तरह का धार्मिक उन्माद पैदा किया जाता है उसे देख कर प्रभावित हुए हमारे इस समूह में चौथी पीढ़ी के एक युवा ने पिछले दिनों एक पोस्ट डाली, जिसमें उसने लिखा कि, ‘‘हमें भी अपना सनातनी ईको-सिस्टम बनाना चाहिए।’’ उसकी यह पोस्ट मुझे बहुत रोचक लगी। मैंने पलट कर पूछा कि, सनातनी ईको-सिस्टम का क्या मतलब है? दर्जनों सवाल जवाबों के बावजूद यह युवा यह नहीं स्पष्ट कर सका कि इसका क्या मतलब है। तब मैंने उससे पूछा कि ईको-सिस्टम  को छोड़ो, तुम केवल यह बताओ कि सनातन से तुम्हारा क्या आशय है? हार कर उसने कहा कि जो मुसलमानों से लडऩे के लिए हम हिंदुओं को संगठित करे वही सनातनी ईको-सिस्टम है। इस पर मैंने पूछा कि फिर सनातनी ईको-सिस्टम और हिंदुत्व में क्या अंतर है? उसका उत्तर था कि हिंदुत्व तो भाजपा का एजैंडा है और मैं भाजपा को दूसरे राजनीतिक दलों की तरह ही एक दल मानता हूं। जिसका मात्र उद्देश्य सत्ता पाना है। उसने आगे कहा कि हम हिंदुओं को भाजपा के अलावा संगठित होने की जरूरत है। 

यह नौजवान अच्छा खासा पढ़ा लिखा, बुद्धिमान और कॉर्पोरेट जगत की प्रतिष्ठित नौकरी में है। जिससे एक सामान्य समझ की अपेक्षा की जा सकती है। पर जो संवाद उससे हुआ उससे क्या सिद्ध होता है? पाठक विचार करें कि हमारी युवा पीढ़ी आज कितनी थोथी और सतही बातों से प्रभावित होकर अनर्गल प्रलाप कर रही है। उनकी भावनाएं भड़का कर राजनीतिक दल अपना भला बेशक कर लें पर समाज इससे गर्त में जा रहा है। ऐसा नहीं है कि हमारी पीढ़ी जब युवा थी तो हम सर्वज्ञ थे। 

सच्ची बात तो यह है कि हमारी पीढ़ी के ज्ञान के स्तर से आज की पीढ़ी के पास कई गुना ज्यादा सूचनाओं का भंडार है। रही-सही कमी कल्पतरु की तरह गूगल देवता पूरी कर देते हैं। जो हर प्रश्न का क्षण भर में जवाब दे देते हैं। बावजूद इसके मुझे लगता है कि आज की युवा पीढ़ी और उनके जैसे उनके अभिभावक एक कल्पना लोक में जी रहे हैं। जहां न तो तथ्यों को जानने की जिज्ञासा है और न उसके लिए समय लगाने की इच्छा। पूरी पीढ़ी के इस आलस्य का परिणाम ये हो रहा है कि यह पीढ़ी निहित स्वार्थों के हितों को साधने के लिए मानसिक रूप से अविकसित या गुलाम बनती जा रही है। यह एक गंभीर समस्या है। 

हमारी सनातन संस्कृति का आधार चारों वेद, उपनिषद, ब्राहमण, आरण्यक व पुराण हैं। यह वह साहित्य है जो हजारों साल से अक्षत है। जिसे प्रदूषित करने का या बदलने का दुस्साहस किसी ने आजतक नहीं किया। जिनको इस वैदिक साहित्य का विरोध करना था या नकारना था उन्होंने अपने नए रास्ते चुन लिए। पर जो अपने को सनातनी संस्कृति का ध्वजवाहक मानते हैं या आज की शब्दावली में स्वयं को हिंदू कहते हैं उनकी इस वैदिक साहित्य में अटूट श्रद्धा है।इसी श्रद्धा का परिणाम है कि हमारी सनातन संस्कृति आजतक जीवित है और जागृत है। सनातन का अर्थ ही यह है जो पहले भी था, आज भी है और कल भी रहेगा। चिंता की बात यह है कि हिंदुत्व की विचारधारा को दिशा देने वाले हमारे इन वैदिक शास्त्रों में विश्वास नहीं करते। वह तो शुरू से आजतक इनमें परिवर्तन किए जाने की आवश्यकता पर जोर देते हैं। वृहत हिंदू समाज के लिए यह गंभीर चुनौती है कि वह अपनी आस्था पर टिका रहे या इस नए मायाजाल में फंस कर अपनी जड़ों से कट जाए। तब हमारा सनातन ङ्क्षहदू धर्म कैसे बचेगा? 

जिस तरह इंजीनियरिंग, डाक्टरी, वकालत या किसी अन्य व्यवसाय की शिक्षा हमें कोई सड़क चलता नहीं दे सकता। ऐसी शिक्षा प्राप्त करने के लिए हमें उस विषय के कॉलेज में दाखिला लेना पड़ेगा। इसी तरह धर्म का मामला है। कोई भी व्यक्ति केसरिया वस्त्र पहन कर या केसरिया झंडा उठा कर हमें धर्म की शिक्षा नहीं दे सकता। इस शिक्षा को प्राप्त करने के लिए हमें स्थापित संप्रदायों के आचार्यों की शरण लेनी होती है। उन्हीं के मार्ग-निर्देशन में हम अपने धर्म को जान पाते हैं। सनातन धर्म के आधार स्तंभ हैं चारों शंकराचार्य और विभिन्न संप्रदायों के वे आचार्य जो सदियों से व परंपरा से हमें आध्यात्मिक ज्ञान देते आए हैं। इनके अलावा जो कोई भी धर्म के विषय में हमें निर्देश देता है वह समाज को गड्ढे में गिराने का काम कर रहा है। क्योंकि वे इसके लिए शास्त्रों द्वारा न तो अधिकृत हैं और न ही उनमें हमें ज्ञान देने की योग्यता है। दुर्भाग्य से आज हिंदू समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग परंपरा से स्थापित चारों शंकराचार्यों और विभिन्न अधिकृत संप्रदायों के आचार्यों की अवहेलना करके राजनीतिक या आर्थिक स्वार्थसिद्धि में लिप्त लोगों से निर्देशित हो रहा है। ऐसे तो सनातन धर्म बहुत शीघ्र ही रसातल में चला जाएगा। 

इसी तरह सनातन धर्म की संस्कृति में हर व्यक्ति की दिनचर्या व जीवन के विभिन्न स्तरों पर वर्णाश्रम व्यवस्था के माध्यम से एक संविधान उपलब्ध है। जिसका पालन किए बिना सनातन ङ्क्षहदू धर्म बच ही नहीं सकता। इस संविधान का दार्शनिक निचोड़ भगवत गीता में है। जिसे हर हिंदू किसी योग्य और स्वयंसिद्ध गुरु से सीख कर आचरण में ला सकता है। हजारों सालों से चली आ रही इस सुदृढ़ व्यवस्था को दर-किनार कर आत्मघोषित गुरुओं या राजनीतिक लोगों से सनातन धर्म के विषय में दिशा-निर्देश लेने वाला अपने और अपने कुल का भारी अहित करेगा। आवश्यकता इस बात की है कि हर सनातनी हिंदू पहले तो ये जानने-समझने की कोशिश करे कि सनातन हिंदू धर्म के सिद्धांत क्या हैं? फिर ऐसे गुरु खोजें जो उसे सही ज्ञान दे सकें, तभी सनातन धर्म का अनुसरण हो पाएगा। बाकी सब बयानबाजी है उससे न तो हमारे परिवार का भला होगा, न समाज का और न राष्ट्र का।-विनीत नारायण
 

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