सऊदी-पाकिस्तान रक्षा समझौता

Edited By Updated: 05 Oct, 2025 05:22 AM

saudi pakistan defence agreement

17 सितंबर, 2025 को पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच एक रणनीतिक पारस्परिक रक्षा समझौते के अनावरण ने दुनिया भर की राजधानियों में भू-राजनीतिक भूचाल ला दिया। एक ऐसी लहर जिसके झटके मध्य पूर्व की सुरक्षा की रूपरेखा को नए सिरे से परिभाषित करने का वादा करते हैं।

17 सितंबर, 2025 को पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच एक रणनीतिक पारस्परिक रक्षा समझौते के अनावरण ने दुनिया भर की राजधानियों में भू-राजनीतिक भूचाल ला दिया। एक ऐसी लहर जिसके झटके मध्य पूर्व की सुरक्षा की रूपरेखा को नए सिरे से परिभाषित करने का वादा करते हैं। हालांकि, पाकिस्तान और मध्य पूर्व पर करीबी नजर रखने वाले विश्लेषकों के लिए यह आश्चर्यजनक नहीं था। इसने केवल वास्तविक को कानूनी रूप में बदल दिया। पाकिस्तान दशकों से कई खाड़ी अरब और मध्य पूर्वी देशों को शासन सुरक्षा प्रदान करता रहा है।
मूल रूप से, यह समझौता, हमास नेतृत्व को निशाना बनाकर दोहा पर इसराईल के दुस्साहसिक हमले की प्रतिक्रिया प्रतीत होता है। यह स्पष्ट रूप से सऊदी अरब पर पाकिस्तानी परमाणु छत्र का विस्तार करने के लिए बनाया गया है जो परमाणु अप्रसार संधि (एन.पी.टी.) पर हस्ताक्षर न करने वाले किसी देश द्वारा ऐतिहासिक रूप से पहली बार किया गया है।

यह पाकिस्तान का किसी बड़े सुरक्षा गठबंधन में पहला कदम नहीं है। इस रक्षा समझौते के गहरे निहितार्थों को समझने के लिए, पहले इसे पाकिस्तान के पिछले रणनीतिक गठबंधनों के कब्रिस्तान में देखना होगा। दक्षिण पूर्व एशियाई संधि संगठन और केंद्रीय संधि संगठन जो जनरल ड्वाइट आइजनहावर के विदेश मंत्री जॉन डलेस के संरक्षण में शीत युद्ध के दौरान गढ़े गए थे, के भूत अब मंडरा रहे हैं।

अमरीका के साथ 1954 के पारस्परिक रक्षा सहायता समझौते से मजबूत हुए पाकिस्तान के शस्त्रागार और खजाने को सोवियत संघ को नियंत्रित करने के प्राथमिक उद्देश्य के लिए मजबूत किया गया था। फिर भी, ये गठबंधन दो घातक खामियों की चट्टान पर लडख़ड़ा गए- एक सदस्यों के बीच आंतरिक कलह और इससे भी महत्वपूर्ण बात, पाकिस्तान द्वारा इन संसाधनों और गठबंधनों का भारत के साथ टकराव की ओर मोडऩा, जिससे उनके अस्तित्व का मूल कारण ही समाप्त हो गया। 1970 के दशक में बंगलादेश के जन्म और क्षेत्रीय संघर्षों के साथ एक कठोर वास्तविकता का सामना करना पड़ा। सोवियत-अफगान युद्ध के दौरान यह पैटर्न भयावह रूप से दोहराया गया, जहां पाकिस्तान की गहरी सत्ता वाली आई.एस.आई.-सैन्य गठजोड़ के माध्यम से मुजाहिदीन को पोषित करने की सऊदी-अमरीकी संयुक्त परियोजना ने एक प्रतिकूल प्रभाव डाला, जिसकी परिणति 9/11 के हमलों और अमरीका के लिए अपने रणनीतिक सहयोगी पाकिस्तान के एबटाबाद स्थित राष्ट्रीय सैन्य अकादमी के पिछवाड़े में इसके रचयिता ओसामा बिन लादेन को बेअसर करने के रूप में हुई। 

अमरीका सक्रिय रूप से पाकिस्तान को एक व्यापक सुरक्षा प्रदाता के रूप में बढ़ावा दे रहा है जो इतिहास और रणनीतिक वास्तविकता की एक चौंकाने वाली गलत व्याख्या है। यह निर्णय लेने में एक भयावह भूल है  क्योंकि पाकिस्तान  जैसा कि कहावत है, सेना वाला देश नहीं  बल्कि देश के साथ सेना वाला देश बना हुआ है। एंड्रयूज एयरफोर्स बेस पर प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ  का लाल कालीन बिछाकर स्वागत किया जाना इस खतरनाक अमेरिकी गलत आकलन का एक सशक्त प्रतीक है। गठबंधन के घोषित उद्देश्यों और पाकिस्तान के संकीर्ण राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत के बीच विसंगति से दागदार यह ऐतिहासिक लेखा-जोखा एक कड़ी चेतावनी के रूप में काम करना चाहिए। इस समझौते का तात्कालिक परिणाम आक्रामकता को रोकने की बजाय रुख को और कड़ा करना रहा है। तेल अवीव, डरने की बजाय, इस्लामाबाद के खिलाफ  अपनी बयानबाजी और कार्रवाइयों को दोगुना कर रहा है, इस समझौते को निवारक के रूप में नहीं  बल्कि उकसावे के रूप में देख रहा है। हालांकि,इसका असली भूकम्पीय प्रभाव लंबे समय से चली आ रही अमरीकी विदेश नीति की संरचना को नकारने में निहित है।

बहुप्रचारित ‘एशिया की ओर धुरी’ और हिंद-प्रशांत रणनीति अचानक पृष्ठभूमि में चली गई है क्योंकि वाशिंगटन को मध्य पूर्व के भंवर में वापस घसीटा जा रहा है। अब्राहम समझौते बिखर गए हैं, एक व्यापक क्षेत्रीय युद्ध को रोकने में असमर्थ हैं और महत्वाकांक्षी भारत-मध्य पूर्व आर्थिक गलियारा (आई.एम.ई.सी.) अब गहरे ठंडे बस्ते में है जो ऐसी अपूरणीय रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता का शिकार है जिसे कोई भी आर्थिक गलियारा पाट नहीं सकता। भारत के लिए,जिस बाड़ पर वह टिका है वह असहनीय रूप से संकरी होती जा रही है। मई 2025 की गतिज कार्रवाइयों के संबंध में ट्रम्प प्रशासन के झूठे मध्यस्थता दावे और भारत द्वारा इसे स्पष्ट रूप से नकारने से अमरीका के साथ कूटनीतिक तनाव और बढ़ गया है,जिसके तुरंत बाद इस्लामाबाद के प्रति स्पष्ट रूप से गर्मजोशी दिखाई देने लगी है। अंतत:, पाकिस्तान को एक शुद्ध सुरक्षा प्रदाता के रूप में नामित करना एक भयावह गलतफहमी है। वास्तव में, यह एक शुद्ध असुरक्षा प्रदाता है। पाकिस्तान के पिछवाड़े में पल रहे सांप,जो कभी अफगानिस्तान और कश्मीर में छद्म युद्धों के लिए पाले जाते थे, का अपने आकाओं के खिलाफ मुंह मोडऩे और क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय संरक्षकों को डंसने का एक प्रलेखित इतिहास रहा है।-मनीष तिवारी (वकील, सांसद एवं पूर्व मंत्री) 
 

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