‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ के संस्थापक थे श्री राम

Edited By ,Updated: 05 Aug, 2020 04:11 AM

shri ram was the founder of cultural nationalism

5 अगस्त को भारत के इतिहास में एक स्वर्णिम पृष्ठ जुड़ रहा है। राम मंदिर के शिलान्यास के अवसर पर पूरे देश के मीडिया में श्री राम के जीवन के सभी पक्षों पर बहुत चर्चा हुई। उनसे संबंधित सबसे अधिक महत्वपूर्ण पक्ष पर विचारकों का ध्यान कम गया है। वास्तव में...

5 अगस्त को भारत के इतिहास में एक स्वर्णिम पृष्ठ जुड़ रहा है। राम मंदिर के शिलान्यास के अवसर पर पूरे देश के मीडिया में श्री राम के जीवन के सभी पक्षों पर बहुत चर्चा हुई। उनसे संबंधित सबसे अधिक महत्वपूर्ण पक्ष पर विचारकों का ध्यान कम गया है। वास्तव में भारत का राष्ट्रवाद राजनीतिक नहीं, भौतिकवादी नहीं, सांस्कृतिक है और उस सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की सबसे पहली घोषणा श्री राम ने की थी। इसलिए वे राष्ट्र पुरुष हैं, केवल धार्मिक नहीं। श्री राम ने लंका जीत ली। अयोध्या वापसी की तैयारी होने लगी तो लक्ष्मण ने कहा,‘‘भैया अब सोने की लंका हमारी है-हम यहीं पर क्यों न रहें-अयोध्या जाने की क्या आवश्यकता है-तब श्री राम ने उत्तर दिया था: 

‘‘अति स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’’

भले ही लंका सोने की है-बहुत सम्पन्न है परन्तु मुझे अच्छी नहीं लग रही क्योंकि जननी जन्म भूमि मातृभूमि तो स्वर्ग से भी अधिक श्रेष्ठ होती है। यही है भारत का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और उसके बाद के देश के पूरे इतिहास में इसी राष्ट्रवाद की झलक मिलती है। 

विश्व में शायद कोई ऐसा देश नहीं जिसकी भौगोलिक सीमाएं हजारों वर्ष पहले के ग्रंथों में मिलती हैं। हजारों वर्ष पूर्व विष्णु पुराण में कहा है :-
उत्तरम् यत् समुद्रस्य हिमाद्रे चैव दक्षिणम्
वर्षम् तद् भारत नाम भारती यत्र संतित
आसिन्धु सिन्धु पर्यन्त: यस्य भारत भूमिका
पितृभु: पुण्यभूश्चेव स वे हिन्दुरिति स्मृत 

जो समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में स्थित है, उसका नाम भारत है और भारतीय उसकी संतान हैं। हिमालय से लेकर समुद्र तक जो भारत भूमि को पितृभूमि और पुण्य भूमि समझता है वह ही हिंदू है। ध्यान रहे केवल मंदिर जाने वाला ही हिंदू नहीं है। 

यह दुर्भाग्य है कि हिंदुत्व को किसी पूजा पद्धति से जोड़ दिया गया। हिंदुत्व पूजा पद्धति नहीं-यह तो सभी पूजा पद्धतियों की नदियों का एक महा समुद्र है। पूजा न करने वाला भी हिंदू हो सकता है। शर्त एक ही है वह भारत भूमि को अपनी पितृभूमि और पुण्य भूमि समझता हो। यह इतिहास का बड़ा दुर्भाग्य रहा है कि इस भारत में इस्लाम केवल धर्म नहीं अपितु राष्ट्रीयता लेकर आया। पूजा पद्धति अलग है, राष्ट्रीयता अलग है। पर्शिया मुस्लिम हो गया पर संस्कृति व राष्ट्रीयता नहीं छोड़ी-लिपि वही, पूर्वज रुस्तम की ही पूजा करते हैं। वह मुस्लिम नहीं था। इंडोनेशिया मुस्लिम बहुल पर सब नहीं बदला। सरस्वती, गणेश, रामायण सुकीर्ण नाम। हवाई सेवा का नाम गरुड़ एयरवेज। 

भारत में भी इसी मनोवृत्ति के कुछ देशभक्त मुसलमान हैं। सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद करीम छागला ने कहा  था, ‘‘मेरी रगों में ङ्क्षहदू ऋषियों का खून दौड़ता है। हमारे पूर्वजों ने पूजा पद्धति बदली थी, अपने बाप-दादा नहीं।’’ विश्व इतिहास में समय-समय पर कुछ देश शक्तिशाली हुए तो उन्होंने अन्य देशों पर आक्रमण किया और अधिकार किया। विश्व के लम्बे इतिहास में यही होता रहा। भारत विश्व में सबसे पहले शक्ति सम्पन्न हुआ। विश्व के बहुत से देशों में गया परन्तु कहीं पर भी न आक्रमण किया, न अधिकार किया, न ही धार्मिक स्थान नष्ट किए। भारत विश्व में मानवता व प्यार लेकर गया, तलवार लेकर नहीं। स्पेन शक्तिशाली हुआ तो अमरीका पर आक्रमण किया। पुर्तगाल ने गोवा पर अधिकार किया। 

पूरे विश्व में प्यार और मानवता का संदेश भारत देता रहा। सदियों पहले भारत के ऋषियों ने घोषणा की-‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ अर्थात पूरा विश्व हमारे लिए एक परिवार है। इसीलिए शिकागो की धर्म महासभा में स्वामी विवेकानंद जब भाषण करने के लिए खड़े हुए और संबोधन किया, ‘‘अमरीका के भाइयो और बहनो’’ तो पांच हजार विद्वानों से भरा हुआ हाल कई मिनट तक तालियों से गूंजता रहा। वे सोच ही नहीं सकते थे कि किसी देश के लोग उन्हें भाई और बहन समझते हैं। 

इसी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का और विश्व मानवता का प्रभाव था कि दुनिया भर के सताए हुए लोग भारत में आए और उन्हें शरण दी गई। सबसे पहले पर्शिया पर आक्रमण हुआ तो पारसी अपनी पवित्र आग लेकर भारत आए तो सूरत में यादव राणा ने उनका स्वागत किया और वे मुख्य धारा में मिले। ऐसे कई देशों के सताए लोगों को भारत शरण देता रहा। सदियों की गुलामी के कारण जब भारत हीन भावना से त्रस्त हुआ तो स्वामी विवेकानंद ने उसी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से भारत को जगाने का प्रयत्न किया। प्रखर देशभक्ति, मातृभूमि के प्रति प्यार और चरित्र निर्माण का संदेश दिया। श्री राम ने एक आदर्श शासन व्यवस्था स्थापित की इसीलिए महात्मा गांधी जी ने भी राम राज्य की बात कही थी। मर्यादा निभाने के लिए राज सिंहासन को छोड़कर वनवास स्वीकार किया। यहां तक कहा :

स्नेहम् दयाम् तथा सौख्यम् यदि व जानकीमपि
आराधनाय लोकस्य मुंचतो नास्ति मे व्यथा 

‘‘देश व समाज की सेवा के लिए स्नेह, दया, मित्रता, यहां तक कि धर्मपत्नी को भी छोडऩे में मुझे कोई पीड़ा नहीं होगी।’’ देश व समाज सेवा का इससे बड़ा उदाहरण कोई नहीं हो सकता इसीलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम कहा जाता है। 5 अगस्त को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के संस्थापक श्री राम के मंदिर का निर्माण पांच सौ वर्ष के लम्बे संघर्ष के बाद हो रहा है। मैं भारत के सभी 130 करोड़ भाई-बहनों से अपील करूंगा कि जब अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास हो रहा हो तो प्रत्येक भारतवासी अपने-अपने घर में श्री राम के चित्र पर फूल अवश्य चढ़ाए। -शांता कुमार(पूर्व मुख्यमंत्री हि.प्र. और पूर्व केन्द्रीय मंत्री)

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