खिसकती जमीन, पंथ पर ढीली पड़ती पकड़ अकाली दल के लिए बड़ी चुनौती

Edited By ,Updated: 22 Jul, 2022 04:32 AM

sliding land loosening grip on the sect a big challenge for the akali dal

पंजाबमें खिसकती सियासी जमीन, पंथ पर ढीली पड़ती पकड़ और आंतरिक बगावत के कगार पर खड़ी पार्टी को बचाने के लिए शिरोमणि अकाली दल (बादल) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल अपनी

पंजाबमें खिसकती सियासी जमीन, पंथ पर ढीली पड़ती पकड़ और आंतरिक बगावत के कगार पर खड़ी पार्टी को बचाने के लिए शिरोमणि अकाली दल (बादल) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल अपनी सांसद पत्नी हरसिमरत कौर बादल के साथ मैदान में उतर गए हैं। 

राष्ट्रपति के लिए चुनाव में एन.डी.ए. उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने के बाद अपनी ही पार्टी के विधायक मनप्रीत सिंह अयाली द्वारा बगावत से बादल परिवार पशोपेश में है। पार्टी में उठ रही बगावत बादल परिवार के लिए खतरे की घंटी है। साथ ही चुनावों में मिल रही लगातार पराजय के बाद सुखबीर बादल को पार्टी के अध्यक्ष पद से हटाने के लिए पार्टी के ही कई वरिष्ठ नेता बगावती सुर अपना चुके हैं। इसलिए बंदी सिखों की रिहाई जैसे भावुक मसले उठा कर बादल दंपति ने बड़ा सियासी दांव खेला है। 

चूंकि इस समय संसद का मानसून सत्र चल रहा है और पूरे देश के सांसद दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं, इसलिए बादल दंपति ने बंदी सिखों के मुद्दे को संसद से सड़क तक उठा दिया है। इस मसले को लेकर दिल्ली की कई विरोधी पार्टियों का समर्थन भी मिला है। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के 4 पूर्व अध्यक्षों परमजीत सिंह सरना, हरविंदर सिंह सरना, मंजीत सिंह जी.के. तथा अवतार सिंह हित सुखबीर सिंह बादल के साथ मंच सांझा करने पहुंचे। हालांकि दिल्ली कमेटी पर काबिज अकाली दल के बागी धड़े ने इस कार्यक्रम से दूरी बना कर रखी।  

अपनी सजाएं पूरी कर चुके बंदी सिखों की रिहाई के लिए शिरोमणि अकाली दल ने संसद से सड़क तक मोर्चा खोल दिया है। अपने नेतृत्व को पार्टी के अंदर मिल रही चुनौती के बाद सुखबीर सिंह बादल दिल्ली के जंतर-मंतर पर तपिश और भरी गर्मी के बीच 3 घंटे तक डटे रहे। इससे पहले संसद के प्रवेश द्वार पर अपनी सांसद पत्नी हरसिमरत कौर बादल के साथ हाथों में तख्तियां पकड़ कर मोदी सरकार के कैबिनेट मंत्रियों से बातचीत करते हुए भी नजर आए। गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को बंदी सिखों की रिहाई के लिए बादल दंपति ने खूब जोरदार वास्ता डाला, जिसकी वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल हुई। 

अकाली दल के सामने दोहरी चुनौती : संसद के मानसून सत्र के दौरान राज्यसभा में अपनी उपस्थिति गंवा चुके अकाली दल के सामने इस समय दोहरी चुनौती है। एक तो राज्यसभा में आम आदमी पार्टी के पंजाब से 7 राज्यसभा सांसद निर्वाचित होकर पंजाब के मुद्दों पर अपनी मुखरता दिखाना चाहते हैं, वहीं दूसरी ओर लोकसभा में कांग्रेस के सांसदों का दबदबा है। शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के अध्यक्ष सिमरनजीत सिंह मान भी लोकसभा का उपचुनाव जीत गए हैं। उनके लोकसभा में पहुंचने के बाद पंजाब हितैषी मामलों पर बोलना अब बादल दंपति के लिए मजबूरी बन गया है। क्योंकि संसद के पंजाब के 20 सदस्यों में से केवल 2 ही अकाली दल के हैं, और वे दोनों बादल दंपति हैं। 

सिख समुदाय से जुड़े सिकलीगर व वंजारा समाज को दर्जा मिले : देश के विभिन्न राज्यों में रहने वाले सिख समुदाय से जुड़े सिकलीगर, वंजारा और गुर्जर समुदाय को उनकी जाति के अनुसार अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग और दलित वर्ग के रूप में मान्यता दिलाने की कवायद तेज हो गई है। भारतीय जनता पार्टी से जुड़े सिख नेता प्रो. सरचांद सिंह ख्याला ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष इकबाल सिंह लालपुरा के समक्ष यह मसला उठाया है। साथ ही केंद्र सरकार को बताया कि पंजाब में अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग और दलित वर्ग के सिखों को सरकारी सुविधाओं का हर लाभ मिल रहा है, लेकिन पंजाब से बाहर के राज्यों में सिखों को सामान्य (जनरल) वर्ग का माना जाता है। 

महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, हरियाणा और राजस्थान आदि में सिकलीगर, वंजारा और गुर्जर सिख, जोकि अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग और दलित हैं, लेकिन इन लाखों की संख्या में लोग केवल सिख के तौर पर दर्ज हैं। इससे उन्हें सरकारी योजनाओं, सरकारी सुविधाओं और नौकरियों में रिजर्व कोटे का लाभ नहीं दिया जा रहा। इसमें बच्चों की पढ़ाई के लिए स्कूल फीस समेत स्कॉलरशिप का मामला भी शामिल है। ये गरीब लोग हैं और कई तो अपने बच्चों की स्कूल की फीस भी नहीं भर पा रहे। 

दिल्ली में टोकरी लेकर सिखों के बीच जाएगी नई पार्टी : शिरोमणि अकाली दल (बादल) से टूट कर बनी नई पार्टी शिरोमणि अकाली दल दिल्ली स्टेट को चुनाव चिन्ह टोकरी मिल गया। पार्टी ने इसकी लाङ्क्षचग दिल्ली में बड़े जोर-शोर से की। लिहाजा, समर्थन देने के लिए भी कई दिग्गज नेता एवं भाजपा समॢथत कई बड़े सिख नेताओं ने हाजिरी भरी। इसमें शिरोमणि अकाली दल संयुक्त के अध्यक्ष सुखदेव सिंह ढींडसा, पूर्व राज्यसभा सांसद तरलोचन सिंह, लोक भलाई पार्टी के अध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री बलवंत सिंह रामूवालिया के साथ ही हरियाणा कमेटी के अध्यक्ष बाबा बलजीत सिंह दादूवाल ने अकाली दल से विभाजन करके बनी इस पार्टी को पंथ के लिए जरूरी बताया। 

एस.जी.पी.सी. के गढ़ में सेंध लगाएगी दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी : सिखों की सर्वोच्च संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एस.जी.पी.सी.) के गढ़ में घुस कर दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अब बड़ी सेंधमारी की तैयारी कर रही है। अमृतसर में अपना कार्यालय खोल कर दिल्ली कमेटी पूरे पंजाब में धर्म प्रचार की लहर शुरू करेगी। इसके पीछे दलील दी जा रही है कि शिरोमणि कमेटी पंजाब में बढ़ रहे ईसाईकरण को रोकने में नाकामयाब रही है। दिल्ली कमेटी के इस धर्म प्रचार अभियान में हरियाणा गुरुद्वारा कमेटी भी मदद करेगी। दिल्ली कमेटी पंजाब में जल्द अपना अभियान शुरू कर देगी। इसके बाद दोनों संस्थाओं में टकराव की संभावना प्रबल है। 

कुछ दिन पहले ही एस.जी.पी.सी. ने दिल्ली में अपना कार्यालय खोल कर धर्म प्रचार का काम शुरू किया है। इसी अभियान पर पलटवार करते हुए दिल्ली कमेटी अब एस.जी.पी.सी. के ही क्षेत्र में पहुंच कर अपनी ताकत दिखाएगी। दिल्ली कमेटी के अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका की दलील है कि एस.जी.पी.सी. को  जिम्मेदारी दी गई थी कि सिखी को संरक्षित और गुरुधामों की सेवा करनी है। लेकिन, सिखों की यह सिरमौर संस्था अपनी जिम्मेदारी निभाने में असफल रही, जिसके परिणामस्वरूप दिल्ली कमेटी व अब हरियाणा गुरुद्वारा कमेटी अस्तित्व में आई है।-दिल्ली की सिख सियासत सुनील पांडेय


 

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