माऊस के सामने पैन को भूल गए छात्र

Edited By Updated: 25 Nov, 2025 05:25 AM

students forgot their pens in front of their mouse

पिछले दिनों अमरीका में पढ़ाने वाले एक प्रोफैसर ने दिलचस्प किस्सा बताया। उन्होंने अपने विद्याॢथयों को निबंध लिखने के लिए एक विषय दिया। वह यह देखकर हैरान रह गए कि सभी विद्याॢथयों  ने एक जैसा लिखा था। यहां तक कि प्रारंभ और अंत भी लगभग एक जैसे थे।...

पिछले दिनों अमरीका में पढ़ाने वाले एक प्रोफैसर ने दिलचस्प किस्सा बताया। उन्होंने अपने विद्याॢथयों को निबंध लिखने के लिए एक विषय दिया। वह यह देखकर हैरान रह गए कि सभी विद्याॢथयों  ने एक जैसा लिखा था। यहां तक कि प्रारंभ और अंत भी लगभग एक जैसे थे। उन्हें समझते देर न लगी कि विद्याॢथयों ने विषय को चैट जी.पी.टी. में फीड किया होगा और वहीं से नकल करके लिख दिया। इससे उनके कान खड़े हो गए। इस तरह तो छात्र कुछ सीख ही नहीं रहे। न उन्हें कुछ याद हो रहा है। इसके बाद उन्होंने बच्चों से कहा कि टैस्ट से पहले वे अपने मोबाइल और लैपटॉप जमा करा दें और निबंध हाथ से लिखें। लेकिन छात्रों को यह तरीका कतई पसंद नहीं आया। उनका कहना था कि वे हाथ से लिखना नहीं जानते। वे कम्प्यूटर पर ही लिख सकते हैं।

इन प्रोफैसर महोदय का कहना था कि बचपन में वह गांव के स्कूल में पढ़े थे, जहां जोर-जोर से गाकर पहाड़े याद कराए जाते थे जो आज तक उन्हें याद हैं। बड़ी कक्षाओं में बताया जाता था कि सवालों के उत्तरों को बार-बार लिखकर याद करें। अच्छे हस्तलेख पर भी जोर दिया जाता था। लिखने की खूब प्रैक्टिस करनी होती थी जिससे कि निर्धारित समय में पूरा प्रश्नपत्र खत्म हो सके। कोई सवाल छूट न जाए। लेकिन पहले छात्रों के जीवन में कम्प्यूटर ने प्रवेश किया। माऊस के सामने वे पैन को भूल गए। टैबलेट और लैपटॉप में तो माऊस की जरूरत भी नहीं रही। और अब जब से आर्टीफिशियल इंटैलीजैंस या कृत्रिम बुद्धिमता का जीवन में प्रवेश हुआ है, तब से बच्चों के सीखने में भारी कमी दर्ज की गई है। हाथ से लिखना तो भूल ही गए हैं। बैंकों में अक्सर ऐसे युवा मिलते हैं, जिनके पास अपने हस्ताक्षर करने के लिए पैन नहीं होता। अब भी बुजुर्ग स्त्री-पुरुषों के पास पैन होता है। ये युवा पैन मांगते हैं और अक्सर लौटाना भूल जाते हैं। कुल मिलाकर यह कि दुनियाभर में हाथ से लिखना जो कि एक कला ही मानी जाती रही है, लोग भूल रहे हैं। 

लिखना तो दूर चीजें याद भी नहीं रहतीं। पिछले दिनों एक परिचित ने बताया था कि जब लैंडलाइन का जमाना था तो उन्हें असंख्य नम्बर याद रहते थे। जब से मोबाइल आया है और नम्बर सेव करने की सुविधा मौजूद है तब से कोई नम्बर याद नहीं रहता। कहा ही जाता है कि यदि दिमाग का इस्तेमाल कम करो तो दिमाग की शक्तियां भी कम होने लगती हैं। शरीर के अन्य अंगों के साथ भी यही सच है। पिछले दिनों स्वीडन से एक दिलचस्प खबर आई थी। बताया गया था कि 15 साल पहले वहां के स्कूलों से किताबों और कापियों को पूरी तरह से विदा कर दिया गया था। बच्चों को पढऩे के लिए लैपटॉप थमा दिए गए थे। शिक्षा का प्रारम्भ से ही डिजिटलीकरण कर दिया गया था। लेकिन तमाम सर्वेक्षणों में यह बात सामने आई कि बच्चे कुछ भी नया नहीं सीख रहे। उनमें इनीशिएटिव लेकर कुछ नया सीखने की भावना कम हो रही है। वे न पढऩा चाहते हैं न लिखना। इसके अलावा रात-दिन कम्प्यूटर पर काम करने के कारण उन्हें तरह-तरह के रोग हो रहे हैं। सर्वाइकल, गठिया, आंखों की कमजोरी, चिड़चिड़ापन, अवसाद आदि के वे शिकार हो रहे हैं। सारी बातों पर गौर करके स्वीडन की सरकार ने तय किया कि अब बच्चे लैपटॉप, टैबलेट आदि से नहीं पढ़ेंगे। वे वापस किताबों, कापियों से ही पढ़ेंगे। वे पढऩे की पुरानी पद्धतियों की तरफ ही वापस लौटेंगे।

यही बात अब अमरीका में जोर-शोर से कही जा रही है। तमाम बड़े अखबारों में लेख छप रहे हैं। इस बात पर चिंता व्यक्त की जा रही है कि नई पीढ़ी हाथ से लिखना भूल गई है। अल्फ ा पीढ़ी जो हाथ में मोबाइल ही लेकर जन्मी है, उसे किस तरह से हाथ से लिखने की तरफ लौटाया जाए। स्कूलों में बच्चों के बीच बहस आयोजित की जा रही हैं। उन्हें लिखने, सीखने और याद करने का महत्व बताया जा रहा है। यह भी कि लिखने से कम्युनिकेशन स्किल्स भी बढ़ती हैं। बातचीत से  वे बहुत कुछ ऐसा नया सीखते हैं जो ए.आई. नहीं सिखा सकता। इसके अलावा कोई मेल लिखना, किसी को मैसेज भेजना आदि भी हमें संबंधों के महत्व को बताते हैं। हम अपनी भावनाओं को अपने हिसाब और इमोशंस के साथ व्यक्त करते हैं। इसलिए लिखना बहुत जरूरी है।

कम्प्यूटर पर लिखें लेकिन हाथ से भी लिखें। यह भी कहा जा रहा है कि हम अपने आप जो कुछ लिखते हैं, उसमें हमेशा नयापन होता है। कोई और उसे ज्यों का त्यों नकल नहीं कर सकता। फि र हम जब अपने भाव और विचार खुद व्यक्त करते हैं तो दिमाग हमें नई-नई सूचना देता है। बहुत सी पुरानी चीजें याद दिलाता है। हरदम नया सोचने को प्रेरित करता है। हम अपनी समस्याएं खुद हल करना सीखते हैं। अभी हमें ए.आई. किसी जादूगर की तरह लग सकता है जो पलक झपकते ही हमारी हर समस्या हल कर दे। लेकिन अंतत: यह हमारे दिमाग की बहुत सारी शक्तियों, हमारी रचनात्मकता, नया सोचने की शक्ति को खत्म करने की ताकत भी रखता है। इसलिए खुद लिखें, खुद सीखें। अमरीका में चल रही इस बहस से उम्मीद है कि भारत में भी लोग कुछ सीखेंगे।-क्षमा शर्मा
 

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