‘डांस बार’ से पाबंदी हटाना सुप्रीम कोर्ट का सही फैसला

Edited By ,Updated: 21 Jan, 2019 04:07 AM

supreme court decides to ban dance bars

डांस बार की परम्परा और संस्कृति मुम्बई, विशेष तौर पर सैंट्रल मुम्बई के आसपास शुरू हुई। इसी प्रकार के (और बड़े) स्थान मुम्बई के उपनगरों तथा मुम्बई के बाहर भी स्थित हैं लेकिन इनकी शुरूआत उक्त वॢणत क्षेत्र से ही हुई। डांस का संबंध सम्भवतया महाराष्ट्र...

डांस बार की परम्परा और संस्कृति मुम्बई, विशेष तौर पर सैंट्रल मुम्बई के आसपास शुरू हुई। इसी प्रकार के (और बड़े) स्थान मुम्बई के उपनगरों तथा मुम्बई के बाहर भी स्थित हैं लेकिन इनकी शुरूआत उक्त वॢणत क्षेत्र से ही हुई। डांस का संबंध सम्भवतया महाराष्ट्र के पारम्परिक नृत्य एवं संगीत कार्यक्रम लावणी से है। 

स्थानों का प्रारूप एक जैसा है। पुरुषों का एक छोटा समूह तथा कभी-कभी उनके परिवार, मेजों पर बैठे होते हैं जिनके सामने एक छोटा खुला क्षेत्र होता है जहां 6-7 महिलाएं हिन्दी गानों पर नृत्य करती हैं। इन महिलाओं ने पूरी ड्रैस पहनी होती है। वेटर शराब और सॉफ्ट ड्रिंक परोसते हैं। कई बार पुरुष लोग अपनी मेज छोड़कर खुले क्षेत्र में पहुंच जाते हैं और नाच रही महिलाओं पर नोट फैंकते हैं। पुरुषों को इस बात की इजाजत नहीं होती कि वे महिलाओं को छुएं तथा कुछ बाऊंसर्स भी होते हैं जो इस दौरान नियमन करते हैं। सम्भवतया इस बात का एक सिस्टम होता है कि फैंके गए रुपयों को कैसे और किस-किस में बांटा जाना है, हालांकि मैं नहीं जानता कि यह सिस्टम क्या है। महिलाएं इन नोटों को नहीं उठाती हैं, इसके लिए अन्य लोग होते हैं। 

आम तौर पर डांस बार में कई क्षेत्र होते हैं तथा ऊपरी धरातल वाले स्थान उन लोगों के लिए आरक्षित होते हैं जो निजता के लिए अधिक राशि अदा करने के लिए तैयार हैं। नृत्य कर रही महिलाएं कुछ गानों के बाद एक से दूसरे क्षेत्र में पहुंच जाती हैं जब तक कि कोई व्यक्ति उन्हें एक ही स्थान पर बने रहने के लिए काफी ज्यादा राशि की अदायगी न करे। मुम्बई में जब मैं एक अखबार का संपादन कर रहा था तब मैं उत्सुकतावश एक डांस बार में गया और मैंने पाया कि यह कोई खराब अनुभव नहीं था। इसी तरह के स्थान दुनिया के अन्य भागों में भी हैं, जैसे कि थाईलैंड और जापान में। हालांकि इन स्थानों को सरकार के गुस्से का शिकार नहीं होना पड़ा जैसे कि भारत में हुआ। 

डांस बार पर पाबंदी
मुम्बई में लगभग 15 वर्ष पहले विलासराव देशमुख के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के दौरान पहली बार डांस बार पर प्रतिबंध लगा था। ऐसा गृह मंत्री आर.आर. पाटिल के इशारे पर किया गया, जो एक गांव से आते थे और बड़े शहरों के तौर-तरीकों को पसंद नहीं करते थे। उन्हें खास तौर पर महिलाओं के रात को काम करने पर आपत्ति थी और उनका कहना था कि वह यह उनकी सुरक्षा के लिए कर रहे हैं। बार डांसर्स जो इस मामले में हो रही राजनीति से वाकिफ थीं, ने इसका विरोध किया लेकिन उन्होंने इसे नजरअंदाज कर दिया। इसके बाद डांस बार भूमिगत हो गए और इन स्थानों पर काम चलता रहा हालांकि सैंट्रल मुम्बई के मशहूर डांस बार बंद करने पड़े उन्हें अपना  तरीका बदलना पड़ा अथवा क्योंकि वे कानूनी तौर पर चल रहे थे। 

दृश्य बदल गया है
इस प्रतिबंध में कोई बहुत बड़ा क्षेत्र प्रभावित नहीं हो रहा था तथा जनता को भी उनके प्रति सहानुभूति नहीं थी इसलिए राजनीतिक दल प्रतिबंध जारी रखने के तरीके अपनाते रहे लेकिन अब पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस प्रतिबंध को गैर-कानूनी बताने के बाद परिदृश्य बदल गया है। सरकार नियमन कर सकती है, बंद नहीं कर सकती। मेरी रुचि खास तौर पर न्यायाधीशों द्वारा प्रयोग की गई भाषा में थी। उन्होंने कहा कि, ‘‘कोई प्रथा जो सामाजिक स्तर पर अनैतिक नहीं है, उसे किसी सरकार द्वारा अनैतिकता की अपनी धारणा के अनुसार समाज पर अनैतिक कह कर नहीं थोपा जा सकता और इस प्रकार सामाजिक नियंत्रण नहीं अपनाया जा सकता तथा समय के साथ-साथ समाज में नैतिकता का स्तर बदलता रहता है।’’ 

न्यायालय ने कहा कि डांस बार में अल्कोहल पर प्रतिबंध तर्कहीन और मनमाना है तथा अच्छे चरित्र के व्यक्ति होने का लाइसैंस भी अस्पष्ट है। न्यायालय ने यह भी कहा कि सरकार इन स्थानों पर सी.सी.टी.वी. लगाने पर जोर नहीं डाल सकती क्योंकि यह निजता का उल्लंघन है। न्यायालय ने सिक्के या कोई नोट फैंकने पर प्रतिबंध को बरकरार रखा लेकिन यह भी कहा कि डांसर्स को व्यक्तिगत तौर पर नोट सौंपना गलत नहीं है। यह मुझे अजीब लगा क्योंकि यह भारतीय परम्परा है तथा शादियों में ऐसा होता है। 

एक उदारवादी फैसला
कुल मिलाकर निर्णय बहुत उदारवादी है और यह देखना दिलचस्प होगा कि इसके परिणामस्वरूप मुम्बई में किस तरह के स्थान बनेंगे। न्यायालय ने मासिक वेतन की जरूरत भी खारिज कर दी क्योंकि इससे बार डांसर्स का एक से अधिक स्थानों पर परफार्म करने का विकल्प प्रभावित होगा। इसमें से बहुत से लोग डांस बार्स का अस्तित्व पसंद नहीं करेंगे क्योंकि हम ऐसा मानते हैं कि इससे समाज खराब होता है। हमें यह विश्वास है कि यह नैतिक तौर पर गलत है तथा महिलाओं का शोषण होता है।

हालांकि इसमें भाग लेने वाली महिलाओं से हम यह नहीं पूछते कि क्या उन्हें अपना काम करने में मजा आता है। हम इसे पसंद करें या न करें, सामाजिक उन्नति नैतिकता और इस बात से जुड़ी है कि महिलाओं को हम किस प्रकार देखते हैं। यही कारण है कि जो रूढि़वादी देश पेचीदा मामलों से बचते हैं वे तरक्की में पिछड़ जाते हैं। जो लोग इस विचारधारा के होते हैं कि महिलाओं को घर पर ही रहना चाहिए, कार्य स्थल पर नहीं, वही डांस बार का विरोध करते हैं इसलिए हालांकि यह बहुत से लोगों को असहज करेगा, लेकिन इस फैसले के माध्यम से भारत ने जिस बात की इजाजत दी है वह बिल्कुल सही है।-आकार पटेल(लेखक के विचार निजी हैं)

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