संसदीय संवाद की गौरवशाली परंपरा को बहाल रखा जाए

Edited By Updated: 16 Jul, 2024 05:50 AM

the glorious tradition of parliamentary dialogue must be restored

नया संसद भवन नई लोकसभा के पहले दिन से ही विपक्ष के नेता से सुसज्जित होने लगा। इसका अभाव एक दशक तक देश ने झेला है। गांधीवादी सफेद खादी की धज में सजे राहुल गांधी नेहरू-गांधी परिवार की परंपरा की याद दिलाते हैं। फोटो शूट के पहले शालीन सत्र के बाद...

नया संसद भवन नई लोकसभा के पहले दिन से ही विपक्ष के नेता से सुसज्जित होने लगा। इसका अभाव एक दशक तक देश ने झेला है। गांधीवादी सफेद खादी की धज में सजे राहुल गांधी नेहरू-गांधी परिवार की परंपरा की याद दिलाते हैं। फोटो शूट के पहले शालीन सत्र के बाद धुआंधार पारी की शुरुआत करते प्रतीत हुए। उनके मुरीद अहलादित हैं। सामने वाले को मूर्छित मान कर खूब प्रसन्न भी। हालांकि उनके इस वक्तव्य के 13 टुकड़ों को संसदीय कार्यवाही से निकाल दिया गया है। उन्होंने लोक सभा अध्यक्ष को खत लिख कर इसका प्रतिकार किया। इस पर प्रैस कांफ्रैंस कर इन टुकड़ों को सांझा करने की चुनौती भी उनके सामने पेश है। लेकिन अगले ही दिन राहुल सामान्य परिधान और विवादास्पद मुद्दों की शृंखला के साथ अपने मूल स्वरूप में लौट आए। उन्होंने जेल में बंद अपने एक सहयोगी का नाम लिए बगैर जिक्र भी किया। 

आज राहुल गांधी लोक पाल और सी.बी.आई. निदेशक ही नहीं बल्कि चुनाव आयुक्त, सूचना आयुक्त और सतर्कता आयुक्त जैसे अहम पदों पर नियुक्ति करने वाले पैनल के सदस्य हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल में उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिल गया है। ऐसा लगता है कि सत्ता से सिर्फ एक कदम की दूरी पर हैं। अगले पांच वर्ष तक एक डग बढऩा आसान नहीं है। सत्ता को 2013 से ही जहर बताने वाले राहुल गांधी पिछले साल कश्मीर पहुंच कर सूफी हो गए थे। केंद्र सरकार की लेखापरीक्षा व व्यय समिति में शामिल होकर उन्होंने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं। सरकार के औपचारिक शिष्टाचार में उन्हें 7वां स्थान प्राप्त हो गया है। साथ ही उन्हें नई संसद में कर्मचारियों और सुविधाओं से युक्त एक सुसज्जित कार्यालय भी मिला है। विपक्ष के नेता के रूप में उन्हें बहस शुरू करने और प्रधानमंत्री के भाषण का जवाब देने का विशेषाधिकार भी प्राप्त हो गया है। उनके पिता और माता दोनों ही देश  के शीर्ष सार्वजनिक कार्यालय को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से चलाने से पहले इसी पद पर आसीन थे। उनके पहले संबोधन का असर जनता और मीडिया में साफ तौर पर देखा जा सकता है।

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव और विभिन्न दलों के अन्य सांसदों को मजबूती से खड़े होकर अपनी चिंताओं को उठाने के लिए मजबूर किया। उनके भाषण से असंसदीय संदर्भ लोक सभा की कार्यवाही के रिकॉर्ड से हटा दिए गए। लेकिन अभी भी यह संसद टी.वी. और कई अन्य मीडिया चैनल के रिकार्ड में मौजूद है। उन्होंने भगवान शिव के अहिंसक त्रिशूल  को परिभाषित किया। गुरु नानक देव जी, ईसा मसीह आदि की अभय मुद्रा का उल्लेख कर कांग्रेस के चुनाव चिन्ह हाथ से इनकी तुलना कर दी। उन्होंने कहा, शिवजी कहते हैं कि डरो मत और दूसरों को डराओ मत, अभय मुद्रा दिखाते हैं। अङ्क्षहसा की बात करते हैं और अपना त्रिशूल जमीन में गाड़ देते हैं। जो लोग खुद को हिंदू कहते हैं, वे 24 घंटे ङ्क्षहसा, नफरत और झूठ की बात करते रहते हैं। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिंदुओं की ओर से इसका जवाब दिया। फिर राहुल गांधी ने कहा, ‘‘आप ङ्क्षहदू हो ही नहीं। ङ्क्षहदू धर्म में साफ  लिखा है कि आपको सत्य का साथ देना चाहिए और उससे पीछे नहीं हटना चाहिए। सत्य से डरना नहीं चाहिए और अहिंसा हमारा प्रतीक है।’’अहिंसक त्रिशूल और निर्भयता के इस विचार को 1909 में दशहरा के दिन लंदन स्थित इंडिया हाऊस में रामायण व महाभारत के संदर्भ में सावरकर और गांधी द्वारा शुरू की गई बहस का विस्तार माना जा सकता है। इसी दोहन की प्रक्रिया में अयोध्या मक्खन की तरह उभरता है। उसी वर्ष लंदन से लौटते समय यात्रा के दौरान महात्मा गांधी ब्रिटिश संसद को वेश्या के रूप में परिभाषित करते हैं। उन्होंने सत्याग्रह ब्रिगेड की महिला पार्टी को खुश करने के लिए अपनी पुस्तक ‘हिंद स्वराज’ के संशोधित संस्करण में इसे संपादित किया था। लेकिन वेश्यालय के उनके संदर्भ को जानने के लिए इसके पीछे की कहानी समझने की जरूरत है। 

ब्रिटिश कानून निर्माताओं ने बैरिस्टर एम.के. गांधी और उनकी जीवनी लेखक जोसेफ डोक के साथ कैसा व्यवहार किया? इस सवाल का जवाब भी इस पड़ताल में है। 20वीं सदी में महात्मा गांधी ने एक औसत हिंदू को कायर और एक औसत मुसलमान को गुंडा बताया था। इस पर राहुल का गांधी के साथ विरोधाभास साफ है। अपने इन निष्कर्षों के पक्ष में राहुल कोई भी कारण और स्पष्टीकरण नहीं दे पाते हैं। भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह संसद में दोनों हाथ जोड़ कर सुरक्षा की मांग करते हैं। 

भारतीय राष्ट्र के संस्थापकों की गौरवशाली परंपरा शोर और कोलाहल के बीच एकालापों की अन्तहीन शृंखला में सिमट गई। इंटरनैट मीडिया की खुराक के लिए संसद में आज संवाद के अलावा सब कुछ संभव है। भाजपा के टिकट पर पहली बार सांसद बनी बांसुरी स्वराज ने संसद में राहुल गांधी के खिलाफ  शिकायत दर्ज की है। विपक्ष के नेता ने स्पीकर को पत्र लिखकर उनके पहले औपचारिक भाषण के हटाए गए हिस्सों पर आपत्ति जताई। इस रणनीति के साथ राहुल प्रतीकों के साथ खेल रहे हैं। ऐसा जारी रख कर क्या व्यापक जमीन हासिल कर सकते हैं? यह सवाल अब देश के सामने है। 

संसद के  8 से 10 प्रतिशत सदस्य सार्थक और विवेकपूर्ण बातें करने के लिए जाने जाते हैं। लेकिन ऐसी अधिकांश आवाजें काफी हद तक उपेक्षित और अनसुनी ही रहती हैं। आज ये लोग विधिनिर्माताओं के क्लब के मूकदर्शक बनकर रह गए हैं। ऐसी स्थिति में सत्ता पक्ष व विपक्ष दोनों को साथ बैठकर दरिद्रता दूर करने के लिए संसदीय संवाद की गौरवशाली परंपरा को बहाल करना चाहिए। इस विषय में प्रयास करते हुए नैशनल हेराल्ड के संपादक चेलापति राव का दुखांत याद रखना चाहिए।-कौशल किशोर
 

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