देश की ‘सम्प्रभुता’ चीनी अतिक्रमण द्वारा खतरे में

Edited By ,Updated: 29 Jun, 2020 03:20 AM

the sovereignty of the country is under threat by chinese encroachment

यहां तक कि प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी के आलोचकों ने चीनी घुसपैठ पर उनकी स्थिति का समर्थन किया है। इन सभी चीजों के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने अपने आपको विज्ञापित किया है।  यहां तक कि मोदी से नफरत करने वाले लोगों ने भी यह माना है कि वह एक राष्ट्रवादी...

यहां तक कि प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी के आलोचकों ने चीनी घुसपैठ पर उनकी स्थिति का समर्थन किया है। इन सभी चीजों के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने अपने आपको विज्ञापित किया है।  यहां तक कि मोदी से नफरत करने वाले लोगों ने भी यह माना है कि वह एक राष्ट्रवादी थे, फिर चाहे वे राष्ट्रवाद या फिर चरम पंथी राष्ट्रवाद के साथ सहमत हों या फिर न हों। 

भारत माता पर हमले को लेकर कोई भी भाग नहीं सकता। जैसा कि मोदी ने किया। मोदी ने केवल एक सार्वजनिक बयान चीन के मुद्दे पर दिया है जिसमें उन्होंने कहा, ‘‘न कोई वहां हमारी सीमा में घुस आया है, न ही कोई घुसा हुआ है, न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्जे में है।’’ इस बात का इस्तेमाल गलवान घाटी के ऊपर चीन के नियंत्रण के दावे को मजबूत करता है, जहां इसने घुसपैठ की थी। 

मोदी के शब्द शॄमदगी महसूस करवाने वाले हो गए हैं। यहां तक कि पी.एम.ओ. के आधिकारिक वीडियो से भी इस बयान को हटा दिया गया है। इस मामले पर इसके बाद मोदी ने कुछ भी नहीं बोला तथा यह यकीन दिलाया कि कोई भी घुसपैठ नहीं हुई। सैटेलाइट चित्रों ने यह पुष्टि की है कि टैंटों को हटाने की कोशिश में हमारे लोग मारे गए। हमारी ओर चीनी ढांचों का निर्माण हुआ है। 

ऐसी रिपोर्टें जिन्हें कि सरकार भी नकार नहीं सकती, कहती हैं कि डेपसांग में चीन ने चौथी बार घुसपैठ की जोकि भारत में 18 किलोमीटर अंदर है। इसके प्रति हमारी कार्रवाई भी झटका देने वाली है। सरकार में प्रत्येक व्यक्ति चिंतित है और विदेश मंत्रालय से एक लम्बा बयान आया। पेईचिंग में भारतीय राजदूत के साथ एक साक्षात्कार में चीन को वास्तविक नियंत्रण रेखा का सम्मान करने के लिए कहा गया है। मगर उसी समय फिर भी कोई यह कहने को तैयार नहीं कि चीन ने घुसपैठ की है क्योंकि वह मोदी की बात के विपरीत नहीं जा सकते। 

रक्षा मंत्रालय ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि सेना को खुली छूट दी गई है। मगर इसका कोई और मतलब नहीं है। सेना यह तय नहीं कर सकती कि हम चीन के साथ युद्ध को लेकर खड़े हैं या नहीं। यह तो एक राजनीतिक निर्णय है। यह मोदी हैं जो यह निर्णय लेंगे कि चीनियों को बाहर फैंकने के लिए क्या भारत बल का प्रयोग करेगा, जैसा कि नेहरू ने किया था। उसके बाद ही सेना दृश्य में दिखाई दी थी। 

इस स्थिति पर यह कहना कि सुरक्षाबलों को स्थिति से निपटने के लिए खुली छूट है, मात्र एक फर्ज निभाना है और सेना के प्रति राजनीतिक जवाबदेही तय करना है। सरकार इस मुद्दे को स्थानीय मान रही है जबकि यह चीनी रणनीति का हिस्सा है। भारत खतरे को झेल रहा है मगर सरकार न तो इसके लिए तैयार है और न ही इसे मान रही है क्योंकि हम कितनी ही विभिन्न आवाजों में बोल रहे हैं मगर चीनी संघर्ष को लेकर हम अंतर्राष्ट्रीय समर्थन पाने के मौके को खो चुके हैं। यदि हमने इस चीनी संघर्ष के बारे में कोई पारदर्शिता अपनाई होती तब हमने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के कदम वापस लौटा दिए होते। इसके विपरीत यह हुआ कि चीन ने सार्वजनिक तौर पर मोदी के बयान का इस्तेमाल किया कि कोई घुसपैठ नहीं हुई। उसने न केवल इस स्थिति पर भारत पर आरोप ही मढ़े बल्कि हमारी भूमि पर अपने दावे को और विस्तृत कर दिया। 

मोदी की बातों का समर्थन करने वाले चुप्पी साध गए हैं क्योंकि जिस तरह से स्थिति से निपटा गया है वह भी हैरानी वाला है। किसी ने भी ऐसा नहीं सोचा था कि मोदी इतने नर्म पड़े दिखाई देंगे। चीन की अस्थायी घुसपैठ के संदर्भ में मोदी ने कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया था जब यू.पी.ए. सत्ता में थी मगर जब यह घुसपैठ निश्चित तौर पर स्थायी हो गई है तो मोदी नर्म पड़े दिखाई दे रहे हैं। उनके राष्ट्रवाद के बारे में क्या कहा जा सकता है? हम इसे नकली राष्ट्रवाद की संज्ञा दे सकते हैं। डिक्शनरी राष्ट्रवाद को एक देशभक्ति के नाम से बुलाती है।  इसका मतलब है कि राष्ट्र के प्रति आपका अथाह समर्पण। यह एक ऐसी विचारधारा है जो सम्प्रभुता को प्रोत्साहित करती है तथा विदेशी प्रभाव को रोकती है। 

लद्दाख में जो कुछ हमने आंखों से देखा वह सब कुछ इसके विपरीत है। यह ऐसा राष्ट्रवाद है जो बड़ी बातें करता है और अपने ही नागरिकों पर हमला करता है और विदेशियों के सामने पर्दे डालता है। यह मुझको अचंभित करता है कि एक राजनीतिक जानकार होने के नाते मोदी ने  कोई संघर्ष की कीमत नहीं समझी। 

चीन से हमारा देश चाहे कितना ही गरीब, छोटा या फिर कम शक्तिशाली हो यह बात मायने नहीं रखती। बिना संघर्ष हम पीछे नहीं हट सकते जैसा कि अब हम कर रहे हैं। हम चीन की आंखों में आंखें नहीं डालना चाहते। इस समय मोदी को हमारी एकता की कीमत पहचाननी चाहिए। यहां तक कि जो लोग मोदी को पसंद नहीं करते वह भी उनके शब्दों का समर्थन करते हैं जब वह कहते हैं कि देश की सम्प्रभुता चीनी अतिक्रमण द्वारा खतरे में है। हमारे लोकतंत्र में सभी प्रकार की राजनीतिक लड़ाइयों को इस समय एक ओर कर देना चाहिए क्योंकि इस समय तत्काल रूप से हमारे देश पर विदेशी खतरा मंडरा रहा है। एक-दूसरे को इकट्ठा करने की जिम्मेदारी सरकार तथा प्रधानमंत्री की है। इसके विपरीत वह विरोधी के साथ खड़े हैं और यह मान रहे हैं कि यहां पर कोई अतिक्रमण हुआ  ही नहीं। ऐसे व्यवहार को हम इस संकटमयी घड़ी में राष्ट्रवाद नहीं कह सकते।-आकार पटेल

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