अदालतों में सुनवाई स्थगित करने और लम्बी छुट्टियां घटाने पर चर्चा होनी चाहिए : मुख्य न्यायाधीश

Edited By ,Updated: 31 Jan, 2024 05:38 AM

there should be discussion on postponing hearings in courts chief justice

देश भर में छोटी-बड़ी तमाम अदालतों को लम्बे समय से जजों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। इससे न्याय प्रक्रिया बुरी तरह प्रभावित हो रही है। इसी के दृष्टिगत ‘इंटरनैशनल कोर्ट आफ जस्टिस’ के सदस्य जस्टिस दलवीर भंडारी ने कहा था कि ‘‘भारतीय न्याय...

देश भर में छोटी-बड़ी तमाम अदालतों को लम्बे समय से जजों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। इससे न्याय प्रक्रिया बुरी तरह प्रभावित हो रही है। इसी के दृष्टिगत ‘इंटरनैशनल कोर्ट आफ जस्टिस’ के सदस्य जस्टिस दलवीर भंडारी ने कहा था कि ‘‘भारतीय न्याय प्रणाली पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है और यदि हमें देश में लोकतंत्र जिंदा रखना है तो यहां सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर न्यायिक सुधार करने होंगे।’’ 

उल्लेखनीय है कि अदालतों में होने वाली लम्बी छुट्टियों के कारण लम्बित मुकद्दमों में लगातार वृद्धि हो रही है। इसी कारण एक एडवोकेट के. श्याम सुंदर ने मद्रास हाईकोर्ट में 23 मई, 2013 को दायर जनहित याचिका में सवाल उठाया था कि,‘‘आज के जमाने में जब अदालतें वातानुकूलित हो चुकी हैं और जजों की कारें तथा आवास भी वातानुकूलित हैं, क्या हाईकोर्ट में गर्मी की छुट्टियों का कोई औचित्य है?’’ याचिकाकत्र्ता ने इन छुट्टियों को अंग्रेज़ों के दौर की देन बताते हुए इन्हें बिल्कुल गैर-जरूरी करार दिया और कहा कि गर्मियों, दशहरा तथा क्रिसमस आदि पर होने वाली लम्बी छुट्टियों का सिलसिला बंद किया जाना चाहिए। 

उनके अनुसार, ‘‘तब आज जैसी सुविधाएं नहीं थीं। अंग्रेज न्यायाधीश गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पाते थे परंतु आज प्रौद्योगिकी अत्यंत उन्नत हो चुकी है और इस कारण गर्मियों की लम्बी छुट्टिïयां भी अप्रासंगिक हो गई हैं।’’ इसी प्रकार भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश आर.एम. लोढ़ा ने 30 जुलाई, 2016 को मैडीकल और स्वास्थ्य सेवाओं की तरह अदालतों के भी 365 दिन काम करने की जरूरत जताते हुए कहा था कि : 

‘‘सभी न्यायाधीशों को एक ही समय में छुट्टी पर जाने की बजाय अलग-अलग न्यायाधीशों को वर्ष भर में अलग-अलग समय पर छुट्टी लेनी चाहिए ताकि अदालतें लगातार खुली रहें और मामलों की सुनवाई के लिए बैंच हमेशा मौजूद रहें। न्यायपालिका द्वारा इस पर विचार किया जाना चाहिए।’’ 3 नवम्बर, 2023 को भारत के प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने वकीलों को सलाह देते हुए कहा था कि वह नहीं चाहते कि सुप्रीमकोर्ट ‘तारीख पे तारीख’ वाली अदालत बन जाए। इसलिए जब तक बहुत जरूरी न हो, किसी मामले के स्थगन का अनुरोध नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पीठ के समक्ष मामले सूचीबद्ध होने के बाद वकील द्वारा सुनवाई के स्थगन के अनुरोध से शीघ्र सुनवाई का उद्देश्य प्रभावित होता है। 

और अब 28 जनवरी, 2024 को, जबकि इस समय भारतीय न्यायपालिका कम से कम 5 करोड़ लंबित मुकद्दमों के बोझ तले दबी हुई है, नई दिल्ली में श्री डी.वाई. चंद्रचूड़ ने एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय के ‘डायमंड जुबली’ वर्ष की शुरूआत के अवसर पर निकट भविष्य में न्यायपालिका के कामकाज को प्रभावित करने वाले मुद्दे पक्के तौर पर सुलझाने के लिए ठोस चर्चा की जरूरत पर बल देते हुए कहा : 

* हमें मुकद्दमों की सुनवाई के दौरान उनके स्थगन की संस्कृति को त्याग कर व्यावसायिकता की संस्कृति अपना कर यह यकीनी बनाना होगा कि लम्बी मौखिक दलीलों के कारण न्यायिक परिणामों में अनावश्यक देरी न हो।  

* अदालतों में होने वाली लम्बी छुट्टियों पर ‘बार’ के लोगों से चर्चा करें कि क्या वकीलों व जजों के लिए लचीले समय जैसे विकल्प संभव हैं? सुनवाई के स्थगन की संस्कृति पर रोक लगाने तथा कम छुट्टियों के समर्थक कानून के व्यवसाय से जुड़े लोगों का कहना है कि ऐसा करने पर काम के दिन बढऩे से अदालतों में लंबित मुकद्दमों की संख्या में कमी आएगी। जस्टिस चंद्रचूड़ के सुझावों पर न्यायपालिका को अवश्य जल्द विचार करना चाहिए चूंकि यह पहल श्री चंद्रचूड़ ने की है अत: यदि  वह स्वयं ही इसे आगे बढ़ाएं तो अधिक अच्छा होगा।—विजय कुमार

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