Edited By ,Updated: 22 Oct, 2019 12:44 AM
प्रश्न : एक व्यक्ति को प्रतिदिन अपनी भूख मिटाने और गुजर-बसर करने के लिए कितना पैसा चाहिए? उत्तर : आपको मुम्बई में 20 रुपए में, दिल्ली में 15 रुपए में खाना मिल जाएगा और तमिलनाडु में आप एक रुपए में अपना पेट भर सकते हैं। क्या वास्तव में ऐसा है? क्या आप...
प्रश्न : एक व्यक्ति को प्रतिदिन अपनी भूख मिटाने और गुजर-बसर करने के लिए कितना पैसा चाहिए?
उत्तर : आपको मुम्बई में 20 रुपए में, दिल्ली में 15 रुपए में खाना मिल जाएगा और तमिलनाडु में आप एक रुपए में अपना पेट भर सकते हैं। क्या वास्तव में ऐसा है? क्या आप मजाक कर रहे हैं?
मजाक की बातें छोड़ो और देश की वास्तविक स्थिति पर नजर डालें। यह वास्तव में, हमारे निर्मम और उदासीन देशी मैरी एंटोइनेट की दुखद वास्तविकता को दर्शाता है जिन्होंने गरीबी और भुखमरी का मजाक बना दिया है। फ्रांस की महारानी ने एक बार कहा था कि यदि लोगों के पास रोटी नहीं है तो उन्हें केक दो। क्या हमारे नेता असली भारत की वास्तविकता जानते हैं और क्या वे इसकी परवाह करते हैं और विशेषकर तब जब 2019 के ग्लोबल हंगर इंडैक्स में भारत 117 देशों में से 102वें स्थान पर पहुंच गया है और यह स्थिति तब है जब विश्व भर में गरीबी में कमी आई है। जले पर नमक छिड़कने का काम इस बात ने किया है कि हमारे पड़ोसी बंगलादेश और नेपाल की स्थिति भी हमसे बेहतर है और केवल कुछ अफ्रीकी देश इस मामले में हमसे पीछे हैं।
भूख के सभी मानकों पर विफल
भूख के सभी चारों मानकों में भारत विफल रहा है। ये चार मानक कुपोषण, बाल कुपोषण, बाल मृत्यु दर और कमजोर बच्चों का जन्म है। कम वजन के बच्चों के जन्म के मामले में भारत विश्व में शीर्ष स्थान पर है और यहां 20.8 प्रतिशत बच्चे ऐसे पैदा होते हैं। 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में मृत्यु दर 4.8 प्रतिशत है और कद और वजन में असंतुलन वाले बच्चों की संख्या 37.9 प्रतिशत है और केवल तीन देश इस मामले में भारत से पीछे हैं।
भारत में प्रति 1000 बच्चों में से 34 बच्चे मां की कोख में ही मर जाते हैं और 5 वर्ष से कम आयु के 9 लाख बच्चे भूख को पढ़ सकने में सक्षम होने से पहले ही काल के ग्रास बन जाते हैं। देश में 3 हजार बच्चे प्रतिदिन कुपोषण के कारण काल के ग्रास बनते हैं और 19 करोड़ लोग खाली पेट सोने के लिए बाध्य होते हैं। हाल ही में मध्य प्रदेश में तीन लड़कियों की मौत के बाद उनके पोस्टमार्टम से पता चला कि उनके पेट में कुछ भी नहीं था क्योंकि उन्होंने कई दिनों से कुछ खाया नहीं था और उनके शरीर में वसा का स्तर शून्य हो गया था। झारखंड में एक और बच्चे की मृत्यु इसलिए हो गई कि उसके परिवार को राशन की दुकान से रियायती खाद्यान्न 6 महीने से नहीं मिल पाया था। महाराष्ट्र में एक बच्चा भीख मांगते हुए मर गया और ऐसी हृदय विदारक खबरें देश भर से मिलती रहती हैं।
अपने बच्चों के पोषण के मामले में हमारा रिकार्ड इतना खराब क्यों है? यह सच है कि सरकार ने समेकित बाल विकास सेवाएं और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन शुरू किए हैं किन्तु अभी इनका पर्याप्त प्रसार नहीं हुआ है। वस्तुत: केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार देश में 93 लाख अर्थात 2 प्रतिशत बच्चे गंभीर कुपोषण के शिकार हैं। किन्तु इससे जन-धन योजना, मुद्रा योजना, उज्ज्वला योजना, किसान पैंशन योजना, जीवन ज्योति बीमा योजना, जल शक्ति अभियान आदि की सफलता प्रभावित नहीं होती है।
भारत में गरीबी उन्मूलन योजनाओं पर करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं और यदि देश के गरीब लोगों को इस राशि में से आधा भी मिले तो उनका कल्याण हो सकता है। देश में 30 करोड़ गरीब लोग अपने और अपने परिवारों का भरण-पोषण नहीं कर पाते हैं। उन्हें 500 कैलोरी कम प्राप्त होती है। 13 ग्राम प्रोटीन कम मिलता है, 5 मिलीग्राम लौह तत्व कम मिलता है, कैल्शियम और विटामिन ए भी क्रमश: 250 मि.ग्रा. और 500 मि.ग्रा. कम मिलते हैं। इसके अलावा भोजन की कमी और स्वच्छता सुविधाओं तक गरीब लोगों की पहुंच न होने के कारण बच्चे कुपोषण के शिकार बनते जा रहे हैं।
प्रत्येक राज्य में भुखमरी की स्थिति
देश के प्रत्येक राज्य में भुखमरी की स्थिति है। खाद्यान्नों के दाम बढऩे के साथ गरीबी भी बढ़ रही है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत सरकार प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 5 किलो रियायती खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए बाध्य है। किन्तु इस अधिनियम के अंतर्गत लाभाॢथयों की पहचान दोषपूर्ण है जिसके चलते अनेक गरीब लोगों के नाम संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली की सूची में शामिल नहीं हो पाते हैं और जिन लोगों के नाम उस सूची में शामिल भी हैं उन्हें राशन नहीं मिल पाता है। मेरा भारत महान।
बढ़ती गरीबी से अनेक प्रश्न उठते हैं। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा कराए गए एक अध्ययन के अनुसार देश की 75.6 प्रतिशत अर्थात 82.8 करोड़ जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे रहती है। संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम की रिपोर्ट के अनुसार देश में 35 प्रतिशत लोगों को खाद्य सुरक्षा प्राप्त नहीं है। क्या यह विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की वास्तविकता है? एक ऐसा देश जहां पर अतिरिक्त खाद्यान्नों को चूहों द्वारा बर्बाद कर दिया जाता है। जब देश में इतनी गरीबी व्याप्त है तो क्या भारत को चांद मिशन पर खर्च करना चाहिए? देश में आज भी 40 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। क्या इस राशि का उपयोग गरीब लोगों को भोजन उपलब्ध कराने, गरीबी कम करने, स्वास्थ्य आदि सुविधाओं पर खर्च के लिए नहीं किया जाना चाहिए?
देश में केन्द्र और राज्य सरकारें अपनी तू-तू, मैं-मैं बंद कर गरीबी की समस्या को कब सुलझाएंगी? हमारे कानून निर्माता इस गंभीर मुद्दे पर एकजुट क्यों नहीं हो जाते हैं? यह सुनिश्चित करने के लिए कौन नेता पहल करेगा कि देश में कोई भी भूख से न मरे। वास्तव में हमारे शासक असली भारत की जगह ब्रांड इंडिया का राग अलाप कर देश के गरीब लोगों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं? आज भूखे पेट और फटेहाल आम आदमी अपने माई-बाप के दर्शन के लिए घंटों प्रतीक्षा करते हैं किन्तु इन माई-बाप के लिए ये भूखे लोग केवल एक वोट बैंक हैं। प्रधानमंत्री मोदी और वित्त मंत्री सीतारमण ने देश में बढ़ती खाद्यान्न महंगाई पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि परेशान होने की बात नहीं है। हम भी इस बारे में ङ्क्षचतित हैं और लोगों को राहत देने के लिए सभी व्यावहारिक उपाय किए जा रहे हैं। क्या वास्तव में ऐसा है?
कल्याण कार्यक्रमों के बावजूद भूख से मौतें
क्या वित्तीय वर्ष के अंत में सकल घरेलू उत्पाद की दर गिरकर 6.1 प्रतिशत पहुंचने से महंगाई से त्रस्त गरीब लोगों की समस्याएं दूर हो जाएंगी? क्या इससे प्रतिदिन 20 रुपए से कम कमाने वाले 82.8 करोड़ लोगों के खाली पेट भरे जाएंगे और क्या ऐसे 7.4 करोड़ निराश्रित बच्चे स्कूल जा पाएंगे या बाल श्रम कर रहे 4.4 करोड़ बच्चों को राहत मिलेगी?
वास्तव में, आधुनिक भारत की कटु सच्चाई यह है कि कागज पर गरीबों के लिए खाद्य सुरक्षा और कल्याण कार्यक्रम बने हुए हैं। फिर भी लोग भूख से मरते हैं क्योंकि खाद्यान्न वितरण की हमारी प्रणाली दोषपूर्ण है और इसके चलते अधिकतर खाद्यान्न सरकारी भंडार गृहों में सड़ जाता है और वह वास्तविक लाभाॢथयों तक नहीं पहुंच पाता। दोषपूर्ण सर्वेक्षण के कारण गरीब लोगों को राशन कार्ड नहीं मिल पाते। सरकार की आर्थिक नीतियां गरीबी, भुखमरी, कृषि संकट, बढ़ती बेरोजगारी आदि से निपटने के अनुरूप नहीं हैं। जनता में आक्रोश और असंतोष बढ़ता जा रहा है। सरकार द्वारा राहत उपायों के बावजूद किसानों द्वारा आत्महत्याएं बढ़ती जा रही हैं। साथ ही बेरोजगारी के कारण अपराध और हिंसा भी बढ़ रही है। स्वस्थ आर्थिक व्यवस्था खराब राजनीति और लोकप्रियतावाद के विरुद्ध है।
गत वर्षों में हमारे नेताओं ने लोकप्रियतावादी राजनीति को खराब आॢथक व्यवस्था में बदला और इस मामले में मोदी भी अपवाद नहीं हैं। हमारे नेताओं को बड़ी तस्वीर की ओर देखना होगा जहां पर उनकी ऊर्जा का उपयोग त्वरित और व्यापक विकास के माध्यम से गरीबी उन्मूलन की ओर किया जा सके। इसके साथ ही वितरण प्रणाली को भी सुदृढ़ करना होगा। साथ ही गरीब लोगों को आजीविका अर्जित करने में सक्षम बनाना होगा ताकि वे सरकारी सहायता पर निर्भर रहने की बजाय आत्मनिर्भर बनें।
किन्तु इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? निश्चित रूप से यह जिम्मेदारी हमारे नेताओं की है। समय आ गया है कि सरकार लोगों का उपहास करना बंद करे। यह आवश्यक है कि सरकार गरीबी उन्मूलन की दिशा में युद्धस्तर पर कार्य करे और लोकप्रिय उपायों के मामले में एक लक्ष्मण रेखा खींचे। कुल मिलाकर यदि भारत अपने नागरिकों को अपनी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं करा पाता है तो इससे देश के विकास में उनकी भागीदारी बाधित होगी। हमारे नेताओं को समझना होगा कि गरीबी उन्मूलन का कोई विकल्प नहीं है अन्यथा भारत हमेशा गरीबी के दुष्चक्र में फंसा रहेगा।-पूनम आई. कौशिश