क्या हुड्डा ‘बगावत’ को हवा दे रहे हैं

Edited By ,Updated: 16 Jun, 2016 01:20 AM

what hooda uprising are fanning

राज्यसभा चुनावों के बाद हरियाणा में नेहरू-गांधी परिवार के वफादार भूपिंद्र सिंह हुड्डा पर बगावत को हवा देने के आरोप लगने शुरू हो गए हैं।

(अनुजा) राज्यसभा चुनावों के बाद हरियाणा में नेहरू-गांधी परिवार के वफादार भूपिंद्र सिंह हुड्डा पर बगावत को हवा देने के आरोप लगने शुरू हो गए हैं। हरियाणा के यह पूर्व मुख्यमंत्री इसलिए आरोपों की आंधी में घिरे हुए हैं कि राज्यसभा की मात्र एक सीट जिसके लिए कांग्रेस और इनैलो ने हाथ मिलाया था, वह हुड्डा के प्रति वफादारी रखने वाले विधायकों द्वारा गलत ढंग से मतदान किए जाने के कारण हाथ से निकल गई। 
 
बहुत बड़ा सवाल यह है कि क्या हुड्डा बागी हो गए हैं? इस मुद्दे को लेकर पार्टी बंटी हुई है। एक वर्ग महसूस करता है कि हुड्डा ‘इतने अधिक वफादार’ हैं कि इस प्रकार की बगावत की साजिश नहीं रच सकते। जबकि दूसरे वर्ग का दृष्टिकोण है कि पार्टी द्वारा अक्सर खुड्डेलाइन लगाए गए हुड्डा प्रदेश के मामलों में अपने महत्व के संबंध में पार्टी नेतृत्व को एक सशक्त संदेश देने का प्रयास कर रहे हैं।
 
दो बार मुख्यमंत्री और चार बार लोकसभा सदस्य रह चुके हुड्डा कांग्रेस के पुराने नेताओं में से एक हैं और उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का करीबी माना जाता है। उनके परिवार की तीन पीढिय़ां कांग्रेस के अंग-संग बीती हैं। उनके पिता रणबीर सिंह हुड्डा संविधान सभा के सदस्य थे जबकि उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा लोकसभा सदस्य हैं। हुड्डा के राजनीतिक सितारे उस समय गॢदश में आए जब 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा और हरियाणा में यह सभी की सभी 10 सीटों पर पराजित हो गई। उसके बाद गत वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में भी इसको बुरी तरह धूल चाटनी पड़ी।
 
गत शनिवार कांग्रेस को उम्मीद थी कि राज्यसभा के लिए वह हरियाणा से एक सीट जीत जाएगी। इसने इनैलो के साथ मिलकर निर्दलीय उम्मीदवार और वकील आर.के. आनंद को समर्थन दिया था। यह सर्वविदित है कि हुड्डा की राय थी कि किसी भी अन्य उम्मीदवार के प्रति अपनी वफादारी प्रदर्शित करने की बजाय पार्टी को राज्यसभा चुनाव में हिस्सा लेने से ही परहेज करना चाहिए। लेकिन चुनाव से ऐन एक दिन पूर्व एक मीटिंग का आयोजन किया गया जिसमें पार्टी ने कांग्रेस अध्यक्ष को फैसला करने के अधिकार दे दिए और फिर पार्टी अध्यक्षा ने आर.के. आनंद का समर्थन करने का फैसला लिया।
 
मतदान दिवस पर 14 कांग्रेस विधायकों के मत अवैध पाए गए। पार्टी के अनुसार इसका कारण यह था कि मतदान में जो पैन प्रयुक्त किया जाना था वह किसी तरह बदला गया था और इसी कारण 14 वोटें रद्द कर दी गईं। एक पार्टी नेता ने गोपनीयता बनाए रखने की शर्त पर कहा कि हुड्डा कांग्रेस के परखे हुए वरिष्ठ नेता हैं इसलिए वह जानबूझ कर इस प्रकार का काम नहीं कर सकते।  कुछ लोगों का मानना है कि पार्टी में कहीं न कहीं गड़बड़ जरूर है जिसका कुछ तत्वों ने अनुचित लाभ उठाया है। लेकिन एक बात तय है कि शरारत चाहे जिस किसी की भी हो, उसने यह काम बहुत सुनियोजित ढंग से किया। उक्त पार्टी नेता ने कहा, ‘‘हमें यह फैसला करने के लिए कुछ देर इंतजार करना होगा कि हुड्डा बागी हैं या नहीं। अतीत में ऐसी कोई भी घटना नहीं हुई जिसके आधार पर हुड्डा के बारे में ऐसा नतीजा निकाला जा सके।’’
 
हालांकि पार्टी में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो अक्सर शीर्ष नेतृत्व के विरुद्ध बोलते रहे हैं और पराजय की स्थिति में इसकी आलोचना करते रहे हैं लेकिन हुड्डा ऐसे लोगों के कभी भी साथी नहीं रहे बल्कि वह तो यह सुनिश्चित करते रहे हैं कि किसी प्रकार के असंतोष या आक्रोश की सार्वजनिक अभिव्यक्ति न हो। फिर भी यह बात शायद पूरी तरह सही न हो। गत अप्रैल में राष्ट्रीय राजधानी में जब हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर को किसानों की रैली दौरान संभवत: हुड्डा समर्थकों द्वारा बोलने नहीं दिया गया था वह इस तथ्य की ओर संकेत था कि हरियाणा में हुड्डा का कितना अधिक दबदबा है। 
 
आम चुनाव की तैयारियों के रूप में तंवर को हरियाणा कांग्रेस इकाई का अध्यक्ष बनाया गया था जिससे हुड्डा खेमे में खलबली मच गई थी। पुरानी और नई पीढ़ी के कांग्रेसियों के बीच बढ़ती खाई के मद्देनजर हुड्डा समर्थकों ने तंवर की नियुक्ति पर ऐतराज किया था। इसीलिए कुछ लोग कह रहे हैं कि शनिवार के घटनाक्रम के माध्यम से हुड्डा ने जानबूझ कर एक संदेश देने का प्रयास किया है। 
 
एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री ने गोपनीयता बनाए रखने की शर्त पर कहा, ‘‘एक या दो लोगों का वोट रद्द हो जाना समझ में आता है लेकिन एक साथ 14 लोगों का वोट गलत हो जाना बहुत अनहोनी बात है। आखिर केवल कांग्रेस विधायकों के ही वोट गलत क्यों हुए हैं? और केवल हुड्डा के समर्थक माने जाने वाले विधायकों के ही वोट क्यों गलत हुए? मेरा मानना है कि ये सब कुछ जानबूझ कर हुआ है और हुड्डा हाईकमान को यह बताना चाहते हैं कि हरियाणा में वही पार्टी के कर्णधार हैं और उनके हुक्म के बिना पत्ता नहीं हिल सकता।’’
 
हुड्डा के बारे में यह सर्वविदित है कि वह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के करीबी थे। जाट समुदाय का नेता होने के कारण एक प्रकार से वह हरियाणा में पार्टी के निविवाद नेता हैं और उनका जबरदस्त जनाधार है।
 
इसके विपरीत एक हुड्डा समर्थक नेता ने कहा, ‘‘हुड्डा ने इतने लंबे समय से कांग्रेस पार्टी की सेवा की है कि वह हरियाणा में पार्टी का पर्याय बन चुके हैं। उनकी आत्मा बिल्कुल साफ है। इसीलिए उन्होंने मतदान दोबारा करवाए जाने की मांग की है। वैसे तोहमतबाजी करने से किसी को रोका नहीं जा सकता क्योंकि जिनको इससे लाभ होना है वे किसी न किसी तरह यह काम करते ही रहेंगे।’’
 
सोमवार को पार्टी ने हरियाणा राज्यसभा की सीट के चुनाव को रद्द किए जाने की मांग को लेकर चुनाव आयोग के समक्ष गुहार लगाई थी। जिसके कारण ऐसा माना जा रहा है कि हुड्डा खेमे या किसी अन्य द्वारा कोई बगावत नहीं की गई बल्कि यह भाजपा द्वारा रची गई एक ‘साजिश’ थी। कांग्रेस महासचिव और हरियाणा के लिए पार्टी के पर्यवेक्षक बी.के. हरि प्रसाद ने कहा, ‘‘यह भाजपा द्वारा कांग्रेस-इनैलो समर्थक उम्मीदवार को हराने के लिए रिटॄनग अफसर के साथ सांठ-गांठ करके जानबूझ कर किया गया प्रयास है। किसी ने किसी प्रकार की न तो बगावत की है और न धोखाधड़ी। पार्टी ने एक फैसला लिया था और हर किसी ने इसका अनुसरण किया है इसलिए हुड्डा से स्पष्टीकरण मांगने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता।’’
 
दूसरी ओर दयाल सिंह कालेज करनाल के राजनीतिक विज्ञान विभागाध्यक्ष एवं एसोसिएट प्रो. कुशलपाल का कहना है, ‘‘यह पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के विरुद्ध एक बगावत है। इससे राज्य के अंदर पार्टी के अन्य संगठन भी प्रभावित होंगे जो कि पहले ही काफी बुरी हालत में हैं। इससे पार्टी वर्कर भी हतोत्साहित होंगे। यह तथ्य है कि पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा और वर्तमान कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर के बीच दुश्मनी है। इसी कारण कांग्रेस की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं।’’
 
वर्तमान स्थिति यह है कि पार्टी सारा दोष ‘पैन’ को दे रही है। पार्टी के एक विधायक और वरिष्ठ नेता का कहना है कि जब मतदान हो रहा था जामुनी स्याही वाला एक पैन डोरी से बंधा हुआ था। किसी ने इस पैन को बदल दिया था। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि पैन को किसने बदला और यह पैन वहां पर पहुंचा कैसे?                              
 
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