किसको सुनने तथा किसको नहीं सुनने का चुनाव करता है ‘सर्वोच्च न्यायालय’

Edited By ,Updated: 10 Feb, 2020 02:22 AM

who chooses to listen and who does not listen to  supreme court

सर्वोच्च न्यायालय शाहीन बाग प्रदर्शनों के दौरान हुई एक बच्चे की मौत का मामला सुनना चाहती है। इस मामले की सुनवाई 10 फरवरी को की जाएगी। यह मामला प्रदर्शनों के कारण ट्रैफिक में पड़ी बाधा का भी है। सर्वोच्च न्यायालय ने उस मामले को नहीं सुना जहां पर 25...

सर्वोच्च न्यायालय शाहीन बाग प्रदर्शनों के दौरान हुई एक बच्चे की मौत का मामला सुनना चाहती है। इस मामले की सुनवाई 10 फरवरी को की जाएगी। यह मामला प्रदर्शनों के कारण ट्रैफिक में पड़ी बाधा का भी है। सर्वोच्च न्यायालय ने उस मामले को नहीं सुना जहां पर 25 प्रदर्शनकारी  पुलिस द्वारा मारे गए (मेरा मानना है कि उनकी हत्या हुई)। सर्वोच्च न्यायालय ने उस मामले को नहीं सुना जहां पर यू.पी. सरकार ने कथित तौर पर नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों की सम्पत्ति को जब्त करने की प्रक्रिया  निभाई। अदालत ने उस मामले में भी दखलअंदाजी नहीं की जिसमें बीदर में पुलिस ने बच्चों द्वारा खेले गए एक नाटक में प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना के चलते उनसे अनेकों बार पूछताछ की। सर्वोच्च न्यायालय ने उस मामले की भी अनदेखी की जिसमें कश्मीरी नेताओं को बिना किसी अपराध या ट्रायल के हिरासत में रखा। सर्वोच्च न्यायालय ने कश्मीरियों को इंटरनैट के इस्तेमाल का अधिकार नहीं दिया। 

हालांकि जनवरी में इसने इस मुद्दे पर कुछ टिप्पणियां कीं। न ही अभी तक अदालत ने सी.ए.ए. पर रोक लगाई। हालांकि जजों ने बताया कि इस कानून ने एक खतरे को जन्म दिया है जिससे देश में अस्थिरता और अशांति फैल गई है। सर्वोच्च न्यायालय ने असम के कैम्पों में एक हजार लोगों को न्याय नहीं दिया जिन्हें बिना किसी अपराध के जेल में डाल दिया गया, उनके परिवारों को उनसे अलग कर दिया गया और उनकी रिहाई का कोई मार्ग प्रशस्त नहीं किया। सर्वोच्च न्यायालय ने उस समय दखलअंदाजी नहीं की जब मोदी सरकार ने इस सप्ताह यह घोषणा की कि इन कैम्पों में रहने वाले सभी गैर मुस्लिमों को आजाद किया जाएगा। केवल मुस्लिम ही जेल में रहेंगे। 

सर्वोच्च न्यायालय ने उस मामले को भी नहीं सुना जब असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एन.आर.सी.) में 19 लाख लोगों को शामिल नहीं किया गया। उन्हें यह भी मौका नहीं दिया गया कि वे अपनी नागरिकता का प्रमाण दे सकें। देश की सबसे बड़ी अदालत ने अभी तक उस मामले की सुनवाई भी नहीं की जिसमें असम के एन.आर.सी. में कई अनियमितताओं को पाया गया है। इसमें भाजपा सरकार द्वारा उन कार्यकत्र्ताओं को उनके अनुबंधों के लिए दो वर्ष का एक्सटैंशन दिया गया था जिन्होंने ज्यादा से ज्यादा  लोगों को अवैध घोषित किया और न ही सर्वोच्च न्यायालय ने उन लोगों का मामला सुना जिनको विदेशी घोषित किया गया था क्योंकि उनके दस्तावेजों में भिन्न-भिन्न तारीखें तथा शब्दों की गलतियां पाई गई थीं। सर्वोच्च न्यायालय ने उस भूमि को भी ले लिया जिस पर बाबरी मस्जिद स्थापित थी तथा यह भूमि उनको दे दी गई जिन्होंने किसी समय इसका विध्वंस किया था। इसको ध्वस्त करने वाले उन आरोपियों के ट्रायल को भी आगे नहीं बढ़ाया गया। वरिष्ठ भाजपा नेता लाल कृष्ण अडवानी का मामला अभी भी चल रहा है। वह अपनी उम्र के 90 के दशक में प्रवेश कर चुके हैं तथा यह मामला करीब तीन दशक पुराना है। 

एन.आर.सी. तथा एन.पी.आर. को गैर कानूनी ढंग से आपस में जोड़ा गया है मगर सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई भी नहीं की। उसने सोचा कि इसे लिस्ट में डालना महत्वपूर्ण होगा। मैं इस लिस्ट के साथ जाना जाता हूं मगर अपने आप पर यहां विराम लगाता हूं। वास्तविकता यह है कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय को झुका हुआ माना जाता है जो मुसलमानों के खिलाफ पक्षपातपूर्ण रवैया रखती है। यह इसके व्यवहार से दिखता है कि यह किसको सुनने तथा किसको नहीं सुनने का चुनाव करता है। साधारण समय के दौरान यह ज्यादा चिंता का विषय नहीं होता। 

मगर उस समय जबकि विश्व यह देख कर भौंचक्का रह जाता है कि  भारत आखिर अपने लोगों संग क्या रवैया अपना रहा है। पूरा विश्व उस समय भी हैरान होता है जब वह देखता है कि लाखों लोग अपने अस्तित्व की लड़ाई गलियों में लड़ रहे हैं। सरकार अपनी विचारधारा पर अडिग है तथा खुले तौर पर पक्षपातपूर्ण दिखाई देती है। सर्वोच्च न्यायालय के लिए यह भी खतरनाक है कि सरकार के बहुसंख्यकवाद रवैये को भी चलता रहने दे। विश्व में भारत की ख्याति इसके कानून के नियम के तौर पर है। जहां पर अल्पसंख्यकों का बचाव किया जाता है वहीं पर मोदी तथा उनकी सरकार इसको टुकड़े-टुकड़े में बांट देती है। यह असंभव लगता है कि यूरोपियन संसद के ज्यादातर सदस्य भारतीय कानून की भत्र्सना करने के लिए एक प्रस्ताव लाने का संकल्प करेंगे। कुछ ही दिनों बाद जब भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर प्रसाद ब्रसल्स की यात्रा करेंगे तब उनको सामना करना पड़ेगा। यह असंभव है कि अमरीकी कांग्रेस के 59 सांसद उस प्रस्ताव का समर्थन कर रहे हैं जिसमें मांग की गई है कि भारत को उमर अब्दुल्ला तथा महबूबा मुफ्ती को रिहा किया जाए और कश्मीरियों को इंटरनैट की सेवाएं वापस की जाएं। 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय के जजों की गिनती 2008 में 31 कर दी गई जो 1950 में 8 थी। आज इनकी गिनती 33 हो गई है। सर्वोच्च न्यायालय में एक बैंच में भारत के मुख्य न्यायाधीश तथा 3 जज हैं तथा 13 या 14 बैंच  2 जजों के हैं। 13 अथवा 14 कोर्ट रूम भी हैं। अमरीकी सुप्रीम कोर्ट जिस के आधार पर भारत की कोर्ट का मॉडल बना था उसमें एक बैंच में 12 जज हैं। सवाल यह है कि क्या इन सभी बैंचों के होते हुए न्याय मिल रहा है। इस सवाल का जवाब हमें लोगों से मिलना चाहिए क्योंकि सरकार का रवैया दमनकारी है। क्या भारत के मुसलमानों को यह सोचना होगा कि वे अपने राष्ट्र से विशेष तौर पर सर्वोच्च न्यायालय से न्याय पा रहे हैं? मैं उनकी ओर से बोलना नहीं चाहता मगर यदि मुझे अंदाजा लगाना पड़े तो मेरा जवाब बिल्कुल ठोस होगा।(ये लेखक के अपने विचार हैं।)-आकार पटेल

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!