भारत को ‘जल के अधिकार’ की जरूरत क्यों

Edited By Pardeep,Updated: 28 Aug, 2018 02:53 AM

why india needs  water rights

‘‘भारत अपने इतिहास के सबसे बुरे जल संकट से गुजर रहा है। लाखों जिन्दगियां और उनकी रोजी-रोटी खतरे में है।’’ नीति आयोग की समग्र जल प्रबंधन पर चेतावनी भरी इंडैक्स रिपोर्ट इसी पंक्ति से शुरू होती है। यह एक जाना-पहचाना तथ्य है कि भारत में जल संकट किसी भी...

‘‘भारत अपने इतिहास के सबसे बुरे जल संकट से गुजर रहा है। लाखों जिन्दगियां और उनकी रोजी-रोटी खतरे में है।’’ नीति आयोग की समग्र जल प्रबंधन पर चेतावनी भरी इंडैक्स रिपोर्ट इसी पंक्ति से शुरू होती है। यह एक जाना-पहचाना तथ्य है कि भारत में जल संकट किसी भी वक्त फट पडऩे को तैयार एक बम की तरह है इसलिए नीति आयोग का साक्ष्यों पर आधारित जल प्रबंधन सूचकांक तैयार करने का प्रयास प्रशंसा के योग्य है। 

भारत में जल संकट के समाधान के लिए भारतीय संविधान की संघीय व्यवस्था और संस्थागत ढांचे की हर शक्ति का इस्तेमाल करने की जरूरत है। पानी का विषय अपने तरल स्वरूप की तरह भारत सरकार के हर मंत्रालय के क्षेत्राधिकार और भारतीय शासन संरचना के हर संघीय आधार स्तंभ के दायरे से होकर गुजरता है। यह स्थिति जल प्रशासन को बहुत मुश्किल बना देती है। हालांकि, आज ऐसे हालात बन गए हैं कि जल प्रशासन को इस देश के 1.3 अरब लोगों के व्यापक हित में तय करने की आवश्यकता है। 

भारत की सात प्रमुख नदियों के जल बंटवारे के विवाद की जद में 11 राज्य हैं। कृषि अर्थव्यवस्था पर अप्रत्यक्ष असर के साथ 60 करोड़ आबादी गंभीर जल संकट के मुहाने पर है। इसके परिणामस्वरूप होने वाली महंगाई और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं देश के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य के लिए गंभीर संकट पैदा करेंगी, इसलिए एक गहरी सोच ने हमें यह विचार करने के लिए प्रेरित किया है कि पानी का सृजन कमोडिटी यानी उपभोग सामग्री नहीं, बल्कि अधिकार है इसलिए मैं संसद के इस मानसून सत्र में जल (अभिगम्यता और संरक्षण) बिल, 2018 को पेश करने की योजना बना रहा हूं, जो पानी को लोगों के अधिकार के रूप में घोषित करने की योजना है। 

पानी जीवन की मूलभूत जरूरत है इसलिए सरकार के लिए यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि पानी आम नागरिकों को उपलब्ध हो, साथ ही इसके संरक्षण के महत्व पर भी पर्याप्त जोर दिए जाने की जरूरत है। जल विधेयक वैयक्तिक स्तर पर कई प्रावधानों के जरिए संरक्षण को प्रोत्साहित करता है, साथ ही इसमें संरक्षण के मुताबिक स्थानीय शासन की जिम्मेदारी का भी प्रावधान है। 

शिमला में भयानक जल संकट ने बढ़ती आबादी की बढ़ती जरूरत के साथ शहरों में जल प्रणालियों को हटाने, फिर से बनाने और दोबारा स्थापित करने की आवश्यकता को रेखांकित किया है। इस मामले में सरकार की कुछ आलोचना हुई है लेकिन सच्चाई यही है कि ब्रिटिश काल से इस जल प्रणाली में कोई बदलाव नहीं हुआ। हम ऐसी समस्याओं का सामना क्यों करते हैं, इसकी प्रमुख वजह स्थानीय शासन में कमी है। 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधन में सशक्तिकरण के बावजूद स्थानीय शासन सीधे वित्तीय अनुशासन को लागू नहीं कर सकते, अपने खुद के संसाधन बढ़ा और उन्हें इस्तेमाल नहीं कर सकते इसलिए जल विधेयक का मकसद जल प्रशासन को सरकार के तीसरे स्तर पर पहुंचाने का है। जल विधेयक एक जल प्रबंधन केन्द्र का प्रस्ताव करता है जोकि स्थानीय शासन द्वारा संचालित हो, उसकी शक्तियां स्थानीय शासन में निहित हों। एक प्रबंधन समिति उस क्षेत्र के जल प्रशासन के हर पहलू का फैसला करेगी। 

आज जलवायु परिवर्तन ने मौसम के स्वरूप में भारी अनिश्चितता पैदा कर दी है और नतीजतन हम कुछ स्थानों पर बादल फटने की घटना देखते हैं जबकि दूसरी जगह भयानक सूखा देखते हैं। दूर-दराज के कई गांव, जिनकी प्रशासन की रोजाना की योजनाओं में कोई मौजूदगी नहीं होती, जिन्दगी की बुनियादी जरूरतों जैसे पानी की कमी के शिकार हैं। इसलिए यह पानी का अधिकार विधेयक ऐसे गांवों और शहरी अवस्थापनाओं के लिए जल सुरक्षा योजना का प्रस्ताव करता है। जल सुरक्षा योजना की स्थापना किसी भी स्थिति में पानी की उपलब्धता का दूरदर्शी और पूर्व नियोजन सुनिश्चित करती है। 

मौजूदा जल प्रणालियों को और बढ़ावा देने के लिए पानी का अधिकार विधेयक सरकार को जल निर्भर पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने का अधिकार देता है। आज इस तरह के पारिस्थितिकी तंत्र बहुत नाजुक हो गए हैं और ऐसे तंत्र को सुरक्षित रखने पर पर्याप्त जोर नहीं दिया जा सकता है। अंधाधुंध और अनियंत्रित रेत खनन नदी के किनारे क्षरण की वजह बनता है और जैव विविधता को नुक्सान पहुंचाता है, जो बाढ़ और दूसरी प्राकृतिक आपदा लाता है। आम नागरिकों के लिए पानी की उपलब्धता को बढ़ावा देने के सरकार के प्रयासों के अनुरूप, ग्रामीण घरों के मामले में पानी के बिल का अधिकार एक किलोमीटर के दायरे में जल स्रोत की उपलब्धता अनिवार्य करता है जबकि शहरी घरों के मामलों में विधेयक लगातार एक घंटे साफ पानी का आदेश देता है। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह सुनिश्चित किया है कि प्रकृति की अनिश्चितता से निपटने के लिए सरकार पर्याप्त नीतिगत प्रतिक्रिया और नुक्सान सहने लायक खाका तैयार करेगी। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना कृषि के सिंचाई उद्देश्यों के लिए पर्याप्त पानी सुनिश्चित कराने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है। पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के अलावा, पी.एम.के.एस.वाई. को जल संरक्षण की स्थिरता की दिशा में भी डिजाइन किया गया है। जल प्रशासन के संदर्भ में नदी जोड़ो परियोजना को गेमचेंजर कहा जा सकता है। यह परियोजना नदी में बाढ़, जिससे ज्यादा पानी बेकार चला जाता है, को रोकने के अलावा, सूखी धाराओं और जलाशयों को भरकर संतुलन बना सकती है। 

एक सराहनीय पहल है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्थानीय शासन को गांवों में जल संरक्षण परियोजना के विकास कार्य को मनरेगा के कार्य से जोडऩे के लिए कहा है। मनरेगा का गांवों में बेशकीमती इकाई, जैसे रेन वाटर हार्वेसिं्टग सिस्टम बनाने में इस्तेमाल हो सकता है, जोकि जल संरक्षण की दिशा में एक लंबा रास्ता तय करेगा। जैसे कि हम देखते हैं कि पानी के मुफ्त संसाधन से उपभोग और अब लुप्तप्राय: बनने की दशा में पहुंचने में लंबा वक्त लगा है लेकिन पानी एक संसाधन के तौर पर हमेशा मनुष्यता और धरती की जरूरत बना रहेगा और जल प्रशासन इस जरूरत को बनाए रखने और पानी को सुरक्षित और सबके लिए उपलब्धता के लिए महत्वपूर्ण होगा।-अनुराग ठाकुर (सांसद)

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