Edited By ,Updated: 01 Jun, 2023 05:51 AM
पिछले साल आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला कोई काम नहीं करने का संकल्प लेने का आग्रह किया था। उन्होंने कहा था कि महिलाओं का सम्मान...
पिछले साल आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला कोई काम नहीं करने का संकल्प लेने का आग्रह किया था। उन्होंने कहा था कि महिलाओं का सम्मान भारत के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण स्तंभ है और उन्होंने नारी शक्ति को समर्थन देने की जरूरत पर बल दिया।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारे आचरण में विकृति आ गई है और हम कई बार महिलाओं का अपमान करते हैं। क्या हम अपने व्यवहार और मूल्यों से इसे दूर करने का संकल्प ले सकते हैं।’’उन्होंने जोर देकर यह भी कहा, ‘‘हमें ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए जो भाषण और हमारे आचरण में महिलाओं की गरिमा को कम करे।’’ महीनों बाद जब उन्होंने नव-निर्मित लोकतंत्र के मंदिर के भव्य उद्घाटन की अध्यक्षता की तो देश की प्रमुख महिला पहलवानों, जिन्होंने ओलम्पिक और अन्य विश्व स्तर के खेलों में देश के लिए गौरव हासिल किया था, को एक विशाल पुलिस बल द्वारा मैदान में उतारा जा रहा था। पुलिसकर्मी उन्हें घसीटते हुए बसों में ले गए और नए संसद भवन के बाहर विरोध-प्रदर्शन करने के लिए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
साक्षी मलिक, बजरंग पूनिया और विनेश फोगाट जैसी प्रमुख पहलवानों द्वारा उठाए गए मुद्दों पर न तो प्रधानमंत्री और न ही उनके किसी मंत्री ने एक शब्द बोला है। वे महिला पहलवानों के कथित यौन उत्पीडऩ के लिए भारतीय कुश्ती महासंघ के प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए एक महीने से अधिक समय से विरोध कर रहे थे। शिकायतकत्र्ताओं में से एक, जिसने अदालत के समक्ष बयान दिया है, नाबालिग है और उसके बयान के आधार पर पुलिस को पोस्को के तहत आरोपी को गिरफ्तार करना अनिवार्य है। फिर भी सरकार और पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगा है। शक्तियों से संकेत लेते हुए अभियुक्त को पूछताछ के लिए बुलाने तक में पुलिस विफल रही है। उसे गिरफ्तार करना तो दूर की बात है।
इसी तरह के मामलों में पुलिस सीधे आरोपी को गिरफ्तार कर लेती है और उसे सलाखों के पीछे रहने की मांग करती है लेकिन बृजभूषण उत्तर प्रदेश की आधा दर्जन लोकसभा सीटों पर भाजपा के प्रदर्शन के लिए अहम साबित होते रहे हैं। अगले साल होने वाले उच्च दांव वाले चुनावों में उनके प्रभाव वाले निर्वाचन क्षेत्रों के परिणाम महत्वपूर्ण हो सकते हैं। यह देश के शीर्ष पहलवानों द्वारा विस्तारित विरोध पर शासकों की गगनभेदी चुप्पी को स्पष्ट करता है। स्पष्ट रूप से सत्तारूढ़ व्यवस्था के सामने विकल्प या तो बृजभूषण जैसे वोट बटोरने वाले का गुस्सा अर्जित करना है या पहलवानों द्वारा याचिका को अनदेखा करना है। जाहिर तौर पर यह तय हो गया है कि वोट खोने के बजाय खेल प्रेमियों के बीच विश्वसनीयता खोना बेहतर है।
संयोग से आरोपी भाजपा सांसद ने हरियाणा के कुछ वरिष्ठ नेताओं पर आरोप लगाया है जो डब्ल्यू.एफ.आई. पर नियंत्रण हासिल करने का इच्छुक है। यह पचा पाना मुश्किल है कि महिला पहलवानों ने सिर्फ एक कथित साजिश का हिस्सा बनने के लिए अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर लगा दिया होगा। नए संसद भवन के बाहर लम्बे समय तक विरोध और उनके अपमान ने पहलवानों को अपनी कड़ी मेहनत के पदक पवित्र गंगा में विसर्जित करने के लिए मजबूर कर दिया है। यह सरकार को उसकी नींद से जगाने और उसे चोट पहुंचाने वाला था। हालांकि उन्होंने खाप पंचायतों के हस्तक्षेप के बाद अपनी योजनाओं को टाल दिया है जिन्होंने रणनीति तैयार करने के लिए 5 दिनों की अवधि मांगी है।
सरकार के उदासीन रवैये की समाज के विभिन्न वर्गों ने आलोचना की है। अंतर्राष्ट्रीय खेल संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति और संयुक्त विश्व कुश्ती परिषद जिसका कुश्ती महासंघ एक हिस्सा भी है, ने भी सरकार की आलोचना की। हालांकि सरकार अपने आलोचकों और यहां तक कि हास्य कलाकारों को मामूली बहाने और बिना किसी सबूत के सलाखों के पीछे डालने में खुश दिखाई देती है लेकिन इसने अपनी एजैंसियों को पूछताछ के लिए आरोपी को बुलाने और उसे निरंतर पूछताछ के लिए बुलाने जैसा कुछ भी करने की अनुमति नहीं दी है। सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए नहीं तो हम दुनिया भर में उपहास का पात्र बन जाएंगे।-विपिन पब्बी