क्या उदयपुर में कांग्रेस का उदय होगा

Edited By Updated: 13 May, 2022 06:02 AM

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राजस्थान का उदयपुर शहर सिटी ऑफ लेक्स (झीलों की नगरी) कहलाता है। छोटी बड़ी 7 झीलें हैं जो आपस में जुड़ी हुई हैं। इसी शहर में कांग्रेस का चिंतन शिविर हो रहा है और कांग्रेस हाई कमान उम्मीद कर रही होगी कि कांग्रेस कार्यकत्र्ता 7 झीलों

राजस्थान का उदयपुर शहर सिटी ऑफ लेक्स (झीलों की नगरी) कहलाता है। छोटी बड़ी 7 झीलें हैं जो आपस में जुड़ी हुई हैं। इसी शहर में कांग्रेस का चिंतन शिविर हो रहा है और कांग्रेस हाई कमान उम्मीद कर रही होगी कि कांग्रेस कार्यकत्र्ता 7 झीलों की तरह आपस में मिलकर काम करेंगे और एक-दूसरे को मजबूत करेंगे। यानी कुल मिलाकर पूछा जा सकता है कि क्या उदयपुर से कांग्रेस का उदय होगा? 

राजस्थान में अशोक गहलोत तीसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं और राज्य कांग्रेस के तीसरे चिंतन शिविर की मेजबानी कर रहे हैं। गहलोत ने अपने हर कार्यकाल में कांग्रेस का एक चिंतन शिविर करवाया है और इस बहाने खुद को आला कमान की नजर में मजबूत किया है। यानी उदयपुर से कांग्रेस का उदय होता है या नहीं, यह तो तय नहीं, लेकिन गहलोत ने खुद का कद थोड़ा और बढ़ा लिया है। अब कांग्रेस के लिए करो या मरो की स्थिति है। ऐसे में कांग्रेस को चिंतन चर्चा प्रस्ताव पर वोटिंग जैसी लफ्फाजी में नहीं पडऩा। कांग्रेस को ताबड़तोड़ फैसले करने हैं और उन पर हमलावर अंदाज में अमल करना है। 

कुछ जानकारों का कहना है कि फिलहाल समय तो कांग्रेस वर्किंग कमेटी के चुनाव करवाने का भी नहीं है। उससे गुटबाजी को ही हवा मिलेगी, पार्टी का कोई भला नहीं होगा। अलबत्ता जिला कांग्रेस के चुनाव से लेकर प्रदेश कांग्रेस में बदलाव करने जैसे कदम उठाए जा सकते हैं। लेकिन उससे ज्यादा अहम तो हिमाचल, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा के चुनाव हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव के संदर्भ में यू.पी.ए. के साथियों के साथ बैठक भी करनी है। यू.पी.ए. को यू.पी.ए. प्लस में तबदील करना है तो जगन मोहन रेड्डी, ममता बनर्जी, चन्द्रशेखर राव, महबूबा मुफ्ती, तेजस्वी यादव आदि से बात करनी है। नारा क्या हो, नीति क्या हो, इस पर फैसले करने हैं और चिंतन शिविर में ही कर देने हैं। 

सबसे बड़ी बात है कि कांग्रेस को समझना होगा कि अब वह विपक्ष में है और बहुत संभव है कि लंबे समय तक कुछ राज्यों में वह वापसी भी न कर सके। 2024 में कुछ करके दिखाना है तो सड़क पर उतरना होगा। महंगाई और बेरोजगारी 2 ऐसे मुद्दे हैं जो मोदी सरकार ने प्लेट में सजा कर दे दिए हैं। उसे सड़क पर आना चाहिए, वह आ रही है, लेकिन इसका असर नहीं हो रहा। इसलिए, क्योंकि टुकड़ों-टुकड़ों में सड़क पर आया जा रहा है। उस पर कांग्रेस नेता कह रहे हैं कि गोदी मीडिया दिखाता नहीं है। यह बात राहुल गांधी भी कहते हैं। लेकिन शाहीन बाग में महिलाएं सड़क पर बैठीं, उनके पास कोई नेता भी नहीं था, प्रैस कांफ्रैंस करने की क्षमता तक नहीं थी। इसी तरह किसान आंदोलन हुआ। केन्द्र सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून को ताक पर रख दिया। तीन कृषि कानून वापस ले लिए। क्यों? इसलिए कि लगातार दबाव डाला गया, निरंतरता दिखाई गई, धूप, गर्मी, बरसात सर्दी में शाहीन बाग में महिलाएं और दिल्ली बार्डर पर किसान बैठे रहे।  

कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि इस समय तमाम विपरीत हालात के बावजूद मोदी की लोकप्रियता चरम पर है। लिहाजा उन पर व्यक्तिगत हमले कर के कुछ हासिल नहीं किया जा सकता, चोट सिस्टम पर की जाए, सामूहिक रूप से भाजपा पर की जाए और अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री से तुलना करते हुए अपना रोड मैप सामने रखा जाए। समझना होगा कि वह समय गया जब हाथ हिलाने से 50 हजार वोट मिल जाया करते थे। नैगेटिव प्रचार से कभी कुछ हासिल हो जाया करता था, लेकिन मोदी सरकार के खिलाफ यह हथियार कामयाब नहीं होने वाला। कुल मिलाकर नैरेटिव को बदलना है। विमर्श को बदल डालना है। कहा जा रहा है कि उदयपुर सम्मेलन में 50 फीसदी भागीदारी 50 साल से कम उम्र के नेताओं की होगी। जब ऐसा युवा साथ है तो फिर क्या बात है। लेकिन यह बात सिर्फ बात तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए। 

कांग्रेस को समझना होगा कि वह उत्तर भारत के कुछ राज्यों तक सिमट कर रह गई है। पिछले दो आम चुनावों में उसे 20 फीसदी वोट मिला जरूर, लेकिन यह हमेशा बना रहेगा जरूरी नहीं। फिर अगर 12 करोड़ वोट हासिल करने पर भी आप 50-55 लोकसभा सीटें ही निकाल पाते हैं तो इस स्ट्राइक रेट से शॄमदा ही होना चाहिए। छवि बदलने की जरूरत है। परिवारवाद का ठप्पा हटाना ही होगा। एक परिवार एक टिकट, एक व्यक्ति एक पद जैसे फैसले उदयपुर में हो सकते हैं। इसके साथ ही 75 साल बाद संन्यास का फैसला भी लेने का समय आ गया है। गांधी-नेहरू परिवार के ठप्पे से मुक्ति भी जरूरी है। क्या पी.के. के कुछ सुझावों पर कांग्रेस अमल करने का जोखिम उठा पाएगी? वक्त आ गया है कि आला कमान कुछ समय के लिए खुद को पद से अलग कर ले। संरक्षक की भूमिका में रहो लेकिन रोजमर्रा के काम में दखल नहीं दो। 

राहुल गांधी को अगर अध्यक्ष नहीं बनना है तो साफ कर देना चाहिए कि वह नया अध्यक्ष चुनने के लिए होने वाले चुनाव की कमान संभालेंगे। इसी तरह उदयपुर में ही तय हो जाना चाहिए कि विपक्षी दलों के साथ कौन से 3 या 4 नेता बात करेंगे। नेताओं को जिम्मेदारी देनी है तो जवाबदेही भी तय करनी है। सफल हुए तो ठीक नहीं तो दूसरों के लिए रास्ता साफ करो। सोनिया गांधी ने एक बार कहा था कि कांग्रेस में सबका नंबर आता है। लेकिन कोई आखिर इंतजार करे तो कब तक? इसकी भी तो कोई सीमा होनी चाहिए। गालिब का शे’र है : हमने माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन,खाक हो जाएंगे हम उनको खबर होने तक।-विजय विद्रोही
 

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